ऐसा था विकास दुबे का जलवा: कोर्ट के सामने लगती थी विकास दुबे की कचहरी, मंत्री तक करते थे फोन
कानपुर में आठ पुलिसकर्मियों की हत्या के मामले में मुख्य आरोपी माफिया सरगना विकास दुबे अभी भी पुलिस की गिरफ्त से बाहर है। बता दें कि 2 जूलाई को हिस्ट्रीशीटर विकास दुबे के घर पुलिस दबिश देने गई थी जब उसने पुलिस वालों पर हमला कर दिया। इस घटना में शिवराजपुर एसओ महेश यादव समेत 8 पुलिसकर्मियों की मौत हो गई थी। वहीं बहुत से पुलिसकर्मी घायल हो गए। विकास दुबे के पुराने दिनों के बारे में अधिवक्ता शिवाकांत ने कई बातें बताईं। बीजेपी के दर्जा प्राप्त राज्यमंत्री संतोष शुक्ला की थाने की भीतर हत्या करने का आरोपी विकास दुबे पांच साल बाद सबूतों के अभाव में बरी हो गया था। इससे ही अंदाजा लगाया जा सकता है कि उसका रसूख क्या रहा होगा। उन दिनों को याद करते हुए शहर के वरिष्ठ अधिवक्ता शिवाकांत ने कुछ बातें साझा की हैं।
कोर्ट के बाहर लगती थी विकास दुबे की कचहरी
शिवाकांत ने बताया कि संतोष शुक्ला हत्याकांड के समय ही ककवन में दो पाल बंधुओं की हत्या हुई थी। इन दोनो मामलों का ट्रायल कानपूर देहात की एक अदालत मे चल रहा था। जब वो पाल बंधुओं के मामले में कानपुर देहात की कोर्ट जाते थे तो वहां विकास दुबे के जलवे देखने को मिलते थे।
उन्होंने बताया कि कोर्ट परिसर के बार ही उसकी कचहरी सजा करती थी। उससे मिलने वाले लोगों की भीड़ लगती थी। लोग लाइन लगाकर उससे मिलने आते थे जैसे वो कोई मंत्री हो। उसका रुतबा कुछ ऐसा था कि पुलिस वाले भी उससे दबे दबे से नजर आते। उससे ऐसा व्यवहार करते जैसे वो अपराधी नहीं है। कोर्ट के बाहर विकास दुबे के गुर्गों की फौज देखकर गवाहों की हालत खराब हो जाती थी।
हत्याकांड के आरोप से बरी हो गया था दुबे
शिवाकांत उन दिनों काफी जूनियर थे इसलिए कोर्ट कचहरी के माहौल को समझने के लिए हर चीज पर काफी ध्यान देते थे। इसके बाद उन्होंने संतोष शुक्ला हत्याकांड का भी बहुत बारीकी से अध्ययन किया था। उन्होंने पाया कि जांच इतने ढीले तरह से किया गया था कि पूरा मामला कोर्ट में ठहर ही नहीं पाया था।
अधिवक्ता ने बताया कि कोर्ट में न तो गोलियों का मिलान हुआ था ना असलहे का। गवाह भी एक एक कर अपने बयान से पलट गए। इस मामले की जिला जज की अदालत से फैसला आने के बाद हाईकोर्ट में अपील भी की जा सकती थी, लेकिन ऐसा हुआ नहीं। ऐसे में समझ सकते हैं कि विकास दुबे के मैनेजमेंट और खौफ का क्या आलम रहा होगा।
जिस वक्त संतोष शुक्ला की हत्या हुई थी उन दिनों बीजेपी की ही सरकार थी। उस समय विकास दुबे बसपा नेताओं का करीबी था, लेकिन जमीन के अवैध कब्जे के धंधे में वो बहुत आगे था। इस वजह से वो कुछ बीजेपी नेताओं का भी प्रिय बन गया था। इसका अंजाम ये हुआ कि बीजेपी नेता की हत्या में सजा से बचाने के लिए मंत्रियों तक की पैरवी की बात सामने आ गई थी। इसके बाद की कहानी सब जानते है। विकास बाइज्जत बरी हो गया था।
अभी पुलिस के गिरफ्त से बाहर है विकास दुबे
अब एक बार फिर विकास पुलिस के निशान पर हैं, लेकिन उनके हाथ नहीं आ पाया है। वहीं कल्याणपुर में पुलिस मुठभेड़ के बाद विकास दुबे के गुर्गे दया शंकर अग्निहोत्री को गिरफ्तार कर लिया गया है। शंकर ने बताया कि दो/ तीन जुलाई की रात को बिकरु गांव में वारदात से पहले विकास दुबे के पास चौबेपुर थाने से किसी का फोन आया था। इसके बाद उसने पुलिस से सीधे भिड़ने के लिए उसे और अपने दूसरे दोस्तों को भी घर पर बुलाया था। गौरतलब है कि शंकर का ये बयान उस वक्त में आया है जब चौबेपुर के थानाध्यक्ष विनय तिवारी को मुखबिरी के आरोप में निलंबित किया गया है।
बता दें कि कानपुर में हुए एनकाउंटर के बाद से विकास दुबे की तलाश जाकी है। पुलिस की 25 टीमें विकास को खोज रही हैं। 100 जगहों पर विकास को पडकड़ने के लिए छापे मारी की गई है। इसके अलावा विकास के सिर पर पुलिस ने इनाम की राशि भी बढ़ा दी गई है। अब उस पर 1 लाख रुपए तक का इनाम हैं। हालांकि तमाम प्रयासों के बाद भी विकास दुबे अभी तक पुलिस की गिरफ्त से बाहर है।