6050 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है ‘किन्नर कैलाश पर्वत’, यहां हर समय बदलता रहता है शिवलिंग का रंग
हिमाचल प्रदेश के किनौर में स्थित किन्नर कैलाश पर्वत बेहद ही प्रसिद्ध शिव मंदिर है। सावन के महीने में दूर-दूर से शिव भक्त इस जगह आते हैं और किन्नर कैलाश पर्वत के दर्शन करते हैं। यहां पर स्थित शिवलिंग की 79 फीट ऊंचा है और एक विशाल पहाड़ी पर स्थित है। ये शिवलिंग इतनी ऊंचाई पर ही कि ज्यादातर समय ये बादलों से घिरा रहता है। कहा जाता है कि ये शिवलिंग प्राकृतिक तौर पर उत्पन्न हुआ है।
शिवलिंग के आकार में है पत्थर
ये शिवलिंग समुद्र तल से 6050 मीटर की ऊंचाई पर है। इस जगह पर एक पत्थर है, जो कि शिवलिंग और त्रिशूल जैसा लगता है। इतना ही नहीं ये शिवलिंग बार-बार रंग भी बदलता रहता है। इस शिवलिंग का रंग सुबह, दोपहर और शाम के समय बदलता रहता है। सूर्योदय से पहले इसका रंग सफेद होता है, सूर्योदय के बाद पीला, सूर्येअस्त से पहले लाल और सूर्येअस्त के बाद काला हो जाता है। इस शिवलिंग से कुछ ही दूरी पर पार्वती कुंड भी स्थित है। वहीं इसके आसपास की सुंदरता देखते ही बनती है।
मंदिर से जुड़ी मान्यता
किन्नर कैलाश पर्वत से कई सारी मान्यताएं जुड़ी हुई है। कहा जाता है कि यहां पर स्थित कुंड खुद देवी पार्वती ने बनाया था और ये जगह पार्वती और शिव भगवान के मिलने का स्थान हुआ करती थी। जबकि कुछ लोगों का माना है कि सर्दियों में यहां सभी देवताओं का वास होता है। इसलिए इस दौरान यहां पर भक्तों को नहीं आने दिया जाता हैं।
अक्टूबर के बाद हो जाता है बंद
अगर आप इस जगह पर जाकर शिवलिंग के दर्शन करना चाहते हैं। तो मई से अक्टूबर के बीच जा सकते हैं। क्योंकि अक्टूबर के बाद इस जगह को बंद कर दिया जाता है और मई में इस यात्रा को फिर से शुरू किया जाता है। दरअसल सर्दियों के महीने में यहां बहुत बर्फ गिरती है। जिसके कारण इस यात्रा को बंद रखा जाता है।
बेहद ही मुश्किल है ट्रेक
किन्नर कैलाश पर्वत का ट्रेक काफी मुश्किल है और इस जगह तक पहुंचने के लिए 14 किलोमीटर का सफर तय करना पड़ता है। इस ट्रेक की शुरुआती तांगलिंग गांव से होती है। जहां से 8 किलोमीटर चलने पर मलिंग खटा आता है। इसके बाद 5 किलोमीटर दूरी पर पार्वती कुंड है। जहां पर दर्शन करने के बाद आगे का रास्ता तय किया जाता है और 1 किलोमीटर के बाद किन्नर शिवलिंग आता है।
ट्रेक करते समय आपको बेहद ही खूबसूरत चीजें देखने को मिलेंगी। इस ट्रेक के आस-पास बर्फीली चोटियां है, सेब के बागान भी, सांग्ला और हंगरंग वैली भी यहां से नजार आती है।
लगते हैं दो दिन
इस यात्रा को पूरा करने के लिए दो से तीन दिनों का समय लगता है। इस यात्रा को सबसे पहले साल 1993 में शुरू किया गया था। ये यात्रा करने के लिए हजारों की सख्या में लोग आते हैं।
रखें इन बातों का ध्यान
- ये यात्रा काफी कठिन मानी जाती है। इसलिए जो लोग शारीरिक रुप से सही नहीं वो ये यात्रा करने से बचें।
- इस जगह पर ठंड काफी होती है। इसलिए गर्म कपड़े जरूर अपने साथ लेकर जाए।
- ये शिवलिंग ऊंचाई पर है और यहां पर ऑक्सीजन की कमी होती है।