कामाख्या देवी मंदिर में मिलता है लाल वस्त्र का प्रसाद, मंदिर के रहस्य जानकर हैरान हो जाएंगे आप
कामाख्या देवी मंदिर 51 शक्तिपीठों में से एक है और ये मंदिर असम राज्य में स्थित है। कामाख्या देवी मंदिर में मां सती की योनि गिरी थी। हालांकि इस मंदिर में दुर्गा या मां अम्बे की कोई भी मूर्ति नहीं है। कामाख्या देवी मंदिर में आने वाले लोग एक कुंड की पूजा करते हैं। दो कि हमेशा फूलों से ढका रहता है।
बेहद ही खास है ये कुंड
कामाख्या देवी मंदिर में मौजूद कुंड को चमत्कारी माना जाता है और इस कुंड में से सदा पानी निकलता रहता है। इस कुंड को देवी की योनि के तौर पर पूजा जाता है। इस मंदिर में कामाख्या देवी की पूजा भगवान शिव के नववधू के रूप में होती है। वहीं ये मंदिर तांत्रिक साधाना के लिए भी प्रसिद्ध है और ये साधाना हासिल करने के लिए लोग यहां आया करते हैं।
हो जाता है पानी लाल
कामाख्या देवी मंदिर में हर वर्ष अम्बुवाची मेला आयोजित किया जाता है। इस मेला के दौरान ब्रह्मपुत्र नदी जो कि इस मंदिर के पास ही स्थित है, उसका पानी पूरी तरह से लाल हो जाता है और ये पानी तीन दिनों के लिए लाल ही रहता है। लोगों की मान्यता है कि कामाख्या देवी के मासिक धर्म के कारण इस नदी का पानी लाल हो जाता है। वहीं इस दौरान दूर-दूर से लोग कामाख्या देवी मंदिर आते हैं और इस मेले का हिस्सा बनते हैं।
प्रसाद में दिया जाता है कपड़ा
इस मंदिर में प्रसाद के तौर पर लाल रंग का गीला कपड़ा भक्तों को दिया जाता है। दरअसल मेले के शुरू होने के दौरान एक सफेद रंग का कपड़ा मंदिर के अदंर बिछाया जाता है और तीन दिन के लिए मंदिर को बंद कर दिया जाता है। वहीं जब ये मंदिर खोला जाता है तो ये कपड़ा लाल रंग का हो जाता है। इस कपड़ें को अम्बुवाची वस्त्र कहते हैं और इसे भक्तों को प्रसाद के रूप में दिया जाता है।
साधु और अघोरियों का लगता है तांता
ये मंदिर तंत्र साधना के लिए सबसे महत्वपूर्ण माना गया है। इसलिए .यहां पर हर समय साधु और अघोरियों का तांता लगा रहता है। इसके अलावा यहां पर काले जादू को भी दूर किया जाता है। इसलिए काले जादू से ग्रस्त लोग इस मंदिर में जरूर आया करते हैं।
मनोकामना हो जाती है पूरी
ऐसा माना जाता है कि इस मंदिर में आकर अगर कन्या पूजन व भंडारा कराया जाए, तो हर मनोकामना पूर्ण हो जाती है। इसके अलावा कई लोग यहां पर पशुओं की बलि में दिया करते हैं।
हिस्सों में बंटा हुआ है मंदिर
कामाख्या मंदिर का पहला हिस्सा सबसे बड़ा है और इस हिस्से में केवल पंडित ही जाते हैं। किसी भी अन्य व्यक्ति को यहां नहीं जाने दिया जाता है। दूसरे हिस्से में एक पत्थर है जिससे हर वक्त पानी निकलता रहता है और इस पत्थर की ही पूजा की जाती है। ये मंदिर का मुख्य हिस्सा माना जाता है।
दुर्गा पूजा, पोहान बिया, दुर्गादेऊल, वसंती पूजा, मदानदेऊल, अम्बुवासी और मनासा पूजा के दौरान इस मंदिर में अधिक संख्या में लोग आते हैं और यहां पर लोगों का जमावड़ा लग जाता है। इस दौरान मंदिर में एक अलग ही माहौल देखने को मिलता है। इसलिए आप भी इस दौरान यहां जरूर जाएं। ये मंदिर असम की राजधानी गुवाहाटी से दिसपुर से लगभग 7 किलोमीटर दूरी पर स्थिति है।