अध्यात्म

सुख और पैसा दोनों चाहिए तो 21 शुक्रवार तक ऐसे करें मां वैभव लक्ष्मी पूजा

शुक्रवार के दिन घर में माँ वैभव लक्ष्मी की पूजा करने से कई तरह की समस्याओं से छुटकारा मिलता है. इसे करने से न सिर्फ घर में सुख और शांति रहती है बल्कि अपार धन की प्राप्ति भी होती है. यदि आप यह पूजा शुक्रवार के दिन पूर्ण विधि विधान के साथ करें तो माँ लक्ष्मी प्रसन्न होकर भक्तों की मनचाही मुराद पूरी करती है. आज हम आपको माँ वैभव लक्ष्मी की पूजा और व्रत कथा पढ़ने का सही तरीका बताएंगे.

ऐसे करें मां वैभव लक्ष्मी की पूजा

पूजा के दौरान माँ लक्ष्मी की ऐसी तस्वीर का इस्तेमाल करें जिसमे उनके हाथों से धन की वर्षा हो रही हो. यदि आपके घर पैसा टिकता नहीं है या खर्च अधिक होता है तो उस स्थिति में खड़ी और हाथों से धन बरसाती माँ लक्ष्मी की तस्वीर लगाएं. इस तस्वीर के समक्ष घी का दीपक प्रज्वलित करे. याद रहे इसे माँ के सामने हमेशा जलते रहने दें.

इसके अलावा रोजाना माँ लक्ष्मी के चरणों में एक का सिक्का भेंट करें. जब महीने का अंत आ जाए तो यह धन किसी धनवान महिला को दें. किसी कारणवश यदि रोजाना लक्ष्मीजी की पूजा पाठ नहीं हो पा रही हो तो शुक्रवार मां लक्ष्मी की व्रत कथा का पाठ पढ़ना लाभदायी होता है. इससे आपके सभी कष्ट दूर होते हैं.

व्रत कथा

एक समय की बात है. एक शहर में कई लोग निवास करते थे. हर कोई अपने काम में लगा रहता था. किसी को किसी दूसरे की कोई फिक्र नहीं थी. शराब, जुआ, चोरी डकैती जैसी चीजों के चलते शहर में बुराइयां बढ़ने लगी. भजन-कीर्तन, भक्ति, दया, परोपकार जैसी चीजें कम हो गई. हालाँकि शहर में कुछ अच्छे लोग भी थे. शीला और उनके पति की गिनती इन्हीं लोगों में होती थी. शिला का स्वभाव धार्मिक और संतोष प्राप्ति वाला था. जबकि उनके पति विवेक से काम लेने वाले और सुशिल थे. ये दंपत्ति ईश्वर की भक्ति में लीन रहते थे और कभी किसी की बुराई भी नहीं करते थे. इस कारण शहर के लोग भी उनकी तारीफ़ करते थे.

शीला का पति हुआ बुरी लत का शिकार

समय बिताता गया और चीजे बदलने लगी. अब शीला का पति बुरी सांगत में पड़ गया. उसके सिर पर करोड़पति बनने का भूत सवार हो गया. नतीजन उसे शराब, जुआ, रेस, चरस-गांजा जैसी बुरी आदतें लग गई. जल्द ही वे लोग रोड पर आ गए. भिखारी जैसी हालत हो गई. पति का ये बर्ताव देख शीला बहुत दुखी हुई. हालाँकि उसे ईश्वर पर यकीन था, इसलिए सबकुछ सहती रही. वो अपना ज्यादातर समय ईश्वर भक्ति में लगाने लगी.

दरवाजे पर आई मांजी

एक दिन दोपहर में शीला को अपने दरवाजे पर दस्तक सुनाई दी. जब उसने दरवाजा खोला तो वहां एक मांजी खड़ी थी. उसके चेहरे पर एक अलग ही तेज दिख रहा था. आँखें तो ऐसी मानो अमृत बह रहा हो. चेहरे से भी करुणा और प्यार के भाव छलक रहे थे. उसे देख शीला का मन शांति भाव से भरा उठा. उसे आनंद की अनुभूति हुई. शीला ने मांजी को अंदर आमंत्रित किया. लेकिन घर में उसे बैठाने को कुछ न था, इसलिए शीला संकुचित मन से एक फटी चद्दर ले आई और उसे बैठा दिया.

प्रेम भरी बातों से भर आया दिल

मांजी ने शिला से कहा – ‘शीला! तूने मुझे पहचाना नहीं? प्रत्येक शुक्रवार माँ लक्ष्मी के मंदिर में भजन कीर्तन के समय आती हूं.’ शीला दुविधा में पड़ गई और कुछ समझ नहीं पाई. मांजी फिर बोली- ‘बहुत दिन बीत गए तुम मंदिर नहीं आई.. इसलिए तुझे देखने चली आई.’ मांजी की ये प्रेम भरी बातें सुन शीला का दिल भर आया. वो अपने आंसू नहीं रोक सकी और फूट फूट कर रोने लगी. मांजी बोली- ‘बेटी! सुख व दुख धूप-छांव की तरह होते हैं.  धैर्य रख! और मुझे तेरी परेशानी बता.’ मांजी की बात सुन शिला को हिम्मत मिली और उसने सुख पाने की आस में अपनी पूरी कहानी सुना दी.

लक्ष्मीजी का व्रत कर, सब ठीक हो जाएगा

शीला की कहानी सुन मांजी बोली- ‘हर व्यक्ति को अपने कर्म भुगतने पड़ते हैं. तू चिंता मत कर. तू अपने कर्म भुगत चुकी, अब तेरे अच्छे दिन आएंगे. माँ लक्ष्मी को प्रेम और करुणा का अवतार माना जाता है, तू उनकी भक्तन भी है. इसलिए धीरज रख और माँ लक्ष्मीजी का व्रत कर. सब ठीक हो जाएगा.’ जब शीला ने माँ लक्ष्मी के व्रत की विधि पूछी तो मांजी ने बताते हुए कहा- ‘लक्ष्मीजी का व्रत बहुत आसान है. इसे ‘वरदलक्ष्मी व्रत’ या ‘वैभव लक्ष्मी व्रत’ कहते हैं. इसे करने से मनचाही मुराद पूरी होती है. सुख, यश और समृद्धि की प्राप्ति होती है.’

मांजी ही थी माँ लक्ष्मी

मांजी की ये बातें सुन शीला बहुत खुश हुई. उसने आँख बंद कर व्रत का संकल्प लिया. आँख खोली तो मांजी गायब थी. उसे शीघ्र अहसास हुआ कि मांजी स्वयं माँ लक्ष्मी थी. अब अगले ही दिन शुक्रवार था. शीला ने सुबह स्नान किया, साफ़ कपड़े पहने और मांजी की बताई विधि से व्रत किया. अंत में जब प्रसाद चढ़ाया तो वितरण के समय सबसे पहले इसे अपने पति को खिलाया. प्रसाद ग्रहण करते ही पति के नेचर में बदलाव आया. वो अब न तो शीला को मारता था और न ही परेशान करता था. शीला खुश हो गई. उसकी ‘वैभवलक्ष्मी व्रत’ के प्रति श्रद्धा बढ़ गई.

21 शुक्रवार तक किया ‘वैभवलक्ष्मी व्रत’

शीला ने 21 शुक्रवार तक ‘वैभवलक्ष्मी व्रत’ किया. फर 21वे शुक्रवार को मांजी के बताए अनुसार विधिवत उद्यापन किया और सात महिलाओं को ‘वैभवलक्ष्मी व्रत’ की पुस्तकें बांटी. वो लक्ष्मीजी से पार्थना करते हुए बोली- ‘हे मां धनलक्ष्मी! ‘वैभवलक्ष्मी व्रत’ करने की जो मन्नत मानी थी वो व्रत आज पूर्ण हुआ. हे माँ! मेरी परेशानी दूर करो. सबका कल्याण करो. निसंतान को संतान दो. सौभाग्यवती स्त्री का सौभाग्य बनाए रखो. कुंवारी कन्याओं को मनचाहा पति दो.

सुख-शांति वापस आई

शीला ने आगे कहा- ‘हे मां! जो भी आपका यह चमत्कारी वैभवलक्ष्मी व्रत करे, उसकी सभी समस्या दूर करना. सभी को सुखी रखना. आपकी महिमा अपार है.’ यह बोल उसने माँ लक्ष्मी को प्रणाम किया. जल्द ही व्रत ने अपना असर दिखाया और शीला का पति फिर से एक नेक इंसान बन गया. वो कड़ी मेहनत करने लगा. शीला के गिरवी रखे गहने भी जल्द छूट गए. उसका व्यवसाय ऐसा चला कि घर में धन की वर्षा सी हो गई. सुख शान्ति भी लौट आई. यह देख मोहल्ले की अन्य महिलाएं भी ‘वैभवलक्ष्मी व्रत’ करने लगीं

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