मनोज बाजपेयी का खुलासा: सुसाइड के बहुत करीब था, डायरेक्टर ने फाड़ दी थी फोटो और फिर..
सुशांत सिंह राजपूत (Sushant Singh Rajput) के सुसाइड केस के बाद सोशल मीडिया पर मेंटल हेल्थ को लेकर बहस छिड़ गई है. ऐसे में हर कोई अपना ‘खुदखुशी के ख्याल’ आने का किस्सा साझा कर रहा है. इस बीच बॉलीवुड के बेहतरीन अभिनेता मनोज बाजपेयी (Manoj Bajpayee) ने भी अपना अनुभव साझा करते हुए बाताया है कि कैसे काम न मिलने पर उन्हें भी आत्महत्या करने के ख्याल आया करते थे. इंडस्ट्री में उन्हें ताने सुनने को मिलते थे कि उनका फेस आइडल हीरो जैसा नहीं है.
बचपन से एक्टर बनना चाहते थे
दरअसल हाल ही में मनोज बाजपेयी ने एक इंटरव्यू दिया जिसमे उन्होंने अपने संघर्ष के उन दिनों को याद किया जब उन्हें भी सुसाइड करने का ख्याल आया करता था. मनोज जी ने बाताया कि जब वे 9 साल के थे तब से ही उन्हें एक्टर बनने का भूत सवार था. वे बिहार के एक छोटे से गाँव में पले बढ़े थे. झोपड़ी वाले स्कूल में जाते थे. जब भी उनका शहर जाना होता था तो वे थिएटर जरूर जाते थे. उन्हें अमिताभ बच्चन की फ़िल्में पसंद थी. तभी से उन्होंने एक्टर बनने का सपना देखना शुरू कर दिया था.
आत्महत्या के करीब थे
दिल्ली रहकर थिएटर करने वाले मनोज बाजपेयी को देश के बेहतरीन एक्टिंग स्कूल ‘नेशनल स्कूल ऑफ़ ड्रामा’ में एडमिशन नहीं मिला था. वे तीन बार रिजेक्ट हो चुके थे. वे बताते हैं – मैं सुसाइड करने के बहुत करीब था. इसलिए मेरे दोस्त हमेशा मेरे पास ही सोते थे. वे मुझे कभी अकेल नहीं छोड़ते थे. उन्होंने मुझे आगे बढ़ते रहने के लिए प्रेरित किया. उसी साल मैं एक दिन चाय की दूकान पर था. तब तिग्मांशु अपनी खटारा स्कूटर से मुझे ढूंढते हुए आए. दरअसल शेखर कपूर मुझे ‘बैंडिट क्वीन’ फिल्म में कास्ट करना चाहते थे. तब मुझे लगा कि हाँ अब समय आ गया है और मैं मुंबई शिफ्ट हो गया.
पहले शॉट में निकाल दिया गया
मुंबई शिफ्ट होने के बाद मनोज पांच अन्य लोगों के साथ एक चॉल में रहते थे. वे तब अपने लिए काम ढूंढ रहे थे लिकिन उन्हें कोई रोल नहीं मिल रहा था. अपने स्ट्रगल के शुरूआती दिनों के बारे में वे कहते हैं – एक बार असिस्टेंट डायरेक्टर ने मेरी फोटो फाड़ दी थी. ऐसे में 4 प्रोजेक्ट्स एक ही दिन मेरे हाथ से चले गए थे. पहले शॉट के बाद ही मुझे कहा गया ‘निकल जाओ.’ मेरा चेहरा एक आइडल हीरो जैसा नहीं था, उन्हें लगता था मैं कभी बड़े पर्दे तक नहीं पहुँच पाऊंगा. उस समय मेरे पास किराया देने के पैसे नहीं थे. यहाँ तक कि वड़ा पाव तक मुझे महंगा लगता था. लेकिन मेरे पेट की भूख मेरी सफलता की भूख को नहीं मिटा पाई.
चार साल के संघर्ष के बाद मनोज को महेश भट्ट के टीवी सीरियल ‘स्वाभिमान’ में रोल मिला था. मनोज बताते हैं – ‘मुझे हर एपिसोड के 1500 रुपए मिलते थे. ये मेरी पहली स्थिर इंकम थी. फिर मेरे काम को नोटिस इया गया और मुझे मेरी बॉलीवुड की पहली फिल्म ‘सत्या; मिली.’ इसके बाद मनोज ने कभी पीछे मूड के नहीं देखा और एक के बाद एक फिल्म कर सफलता के पायदान पर चढ़ते चले गए.