जानिये कौन हैं वास्तु पुरुष और कैसे हुआ था इन का जन्म, इन के पूजा सीमित जाता है हर वास्तु दोष
निर्माण कार्य, अनुष्ठान, नींव खनन, कुआं खनन, शिलान्यास, द्वार स्थापन और गृह प्रवेश के दौरान वास्तु देव पूजन का विधान है। ऐसा माना जाता है कि वास्तु देव की पूजा करने से वास्तु दोष नहीं लगता है और घर में शांति बनीं रहती है। हालांकि ये वास्तु देव कौन हैं और इनकी उत्पत्ति कैसे हुई थी। इसके बारे में बेहद ही कम लोगों को जानकारी है।
कौन हैं वास्तु देव
वास्तु देव को वास्तु पुरुष भी कहा जाता है। इनसे जुड़ी कथा के अनुसार इनकी उत्पत्ति भगवान शिव जी के पसीने से हुई थी। मत्स्य पुराण में इनका जिक्र करते हुए लिखा गया है कि देवताओं और असुरों का युद्ध हो रहा था। इस युद्ध को देवताओं की ओर से भगवान शिव जबकि असुरों की ओर से अंधकासुर लड़ा रहा था। युद्ध करते समय भगवान शिव और अंधकासुर को पसीना आने लगा और इन दोनों की कुछ बूंदें भूमि पर गिर गई। जिससे एक विराट पुरुष की उत्पत्ति हुई और इस विराट पुरुष ने पूरी धरती को ढंक लिया।
बीच में रुक गया युद्ध
विराट पुरुष की उत्पत्ति से देवता और असुर हैरान हो गए और बीच में ही युद्ध रुक गया। दरअसल देवताओं को लगा की ये कोई असुर है। वहीं असुरों को लगा कि ये कोई देवता है जो उनसे युद्ध करने आया है। लेकिन जब इनको पता चला कि ये विराट पुरुष ना देवता है और नहीं असुर। तो देवता-असुर इसे पकड़कर ब्रह्मा जी के पास ले गए।
ब्रह्मा जी ने दिया ‘वास्तु पुरुष’ नाम
ब्रह्मा जी ने देवता और असुरों को बताया कि ये विराट पुरुष भगवान शिव और अंधकासुर के पसीने से जन्मा है। इसलिए आप लोग इसे धरतीपुत्र कह सकते हैं। वहीं ब्रह्मा जी ने इस विराट पुरुष के बारे में कहा कि इसे ‘वास्तु पुरुष’ के नाम से भी जाना जाएगा। ये संसार के कल्याण के लिए धरती में समाहित होगा और धरती के अंदर वास करेगा।
दिया ‘वास्तु पुरुष’ को वरदान
ब्रह्मा जी ने वास्तु पुरुष को वरदान भी दिया और कहा कि जो भी व्यक्ति धरती के किसी भी भू-भाग पर कोई भी निर्माण कार्य करते हुए वास्तु पुरुष की पूजा करेगा उसको सफलता और हर कार्य में सिद्धि मिलेगी। वहीं जो तुम्हारा पूजन किए बिना कोई निर्माण कार्य करेगा, तो उसे तकलीफें और अड़चनों का सामना करना पड़ेगा।
वास्तु पुरुष ने ली विशेष मुद्रा
वरदान मिलने के बाद वास्तु पुरुष धरती पर आ गए और धरती पर आकर इन्होंने एक विशेष मुद्रा ले ली। अपने दोनों हाथों को जोड़कर ये पिता ब्रह्मदेव व धरती माता को नमस्कार करते हुए औंधे मुंह धरती में समाने गए। इस मुद्रा के अनुसार इनकी पीठ नैऋत्य कोण व मुख ईशान कोण में हैं।
इनके पैर नैऋत्य कोण यानी दक्षिण-पश्चिम दिशा की और हैं। जबकि इनकी भुजाएं पूर्व एवं उत्तर दिशा और टांगें दक्षिण एवं पश्चिम दिशा की ओर हैं।
करते हैं मकान का संरक्षक
वास्तु पुरुष को मकान का संरक्षक माना गया है और इनकी पूजा देवता के रुप में की जाती है। किसी भी तरह का निर्माण कार्य करने से पहले इनका पूजन होता है और इनसे घर के संरक्षण की कामना की जाती है। इसलिए आप जब भी कोई निर्माण कार्य करें तो इनकी पूजा अवश्य करें।