5 साल के ध्रुव भगवान को पाने के लिए पहुंच गए थे जंगल, गोद में बैठने की जताई थी इच्छा
भगवान को प्रसन्न करने का सबसे अच्छा तरीका उन्हें मन से याद करना है।
भगवान को प्रसन्न करने के लिए हम लोग ना जाने क्या-क्या करते हैं। कई लोग भगवान को भोग लगाकर प्रसन्न करने की कोशिश करते हैं। जबकि कुछ लोग भगवान की कृपा पाने के लिए रोज उनके मंदिर जाकर पूजा-पाठ करते हैं। वहीं कुछ लोग भगवान को केवल अपने बुरे समय में ही याद करते हैं और जब कोई मुसीबत आती है, तब भगवान की पूजा में लग जाते हैं।
शास्त्रों के अनुसार भगवान को हर पल याद करना चाहिए। मंदिर में जाकर घंटों तक पूजा करने से या भगवान को भोग लगाने से वो प्रसन्न नहीं होते हैं। भगवान को प्रसन्न करने का सबसे अच्छा तरीका उन्हें मन से याद करना है। इस संदर्भ से एक कथा भी जुड़ी हुई है। जो कि भक्त ध्रुव की है।
भक्ती से किया भगवान को खुश
भागवत गीत में भक्त ध्रुव की कथा का जिक्र किया गया है। कथा के अनुसार ध्रुव के पिता की दो पत्नियां थी और वो अपनी दूसरी पत्नी से अधिक प्रेम करते थे। क्योंकि वो देखने में ज्यादा सुंदर थी। दूसरी पत्नी से उन्हें एक पुत्र भी हुआ और वो इस पुत्र से सबसे अधिक प्यार करते थे। वहीं एक बार ध्रुव ने अपने पिता की गोद में बैठने की इच्छा जाहिर की। लेकिन सौतेली मां ने उसे रोक दिया। सौतेली मां के रोके जाने पर ध्रुव रोने लगा।
पिता की गोदी में बैठने से रोकते हुए सौतेली मां ने पांच साल के ध्रवु से कहा, जा जाकर भगवान की गोद में बैठ जा। सौतेली मां की ये बात सुनकर ध्रुव रोते हुए अपनी मां के पास गया और मां से पूछने लगा कि मां भगवान कैसे मिलेंगे? जिस पर मां ने जवाब दिया कि भगवान को पाने के लिए जंगल में जाकर घोर तपस्या करनी पड़ेगी। तभी तुमको भगवान मिल संकेगे। मां की बात सुनकर ध्रुव ने जंगल जाने की जिद पकड़ ली और भगवान की गोद में बैठने की इच्छा जाहिर की।
भगवान को पाने के लिए पहुंच गए जंगल
भगवान की गोद में बैठने के लिए ध्रुव जंगल की ओर निकल पड़ा और एक पेड़ के नीचे बैठकर ध्यान लगना शुरू कर दिया। छोटे से ध्रुव को कोई भी मंत्र नहीं आता था। तब ध्रुव की मदद के लिए नारद जी वहां पहुंचे और उन्होंने ध्रुव को गुरु मंत्र दे दिया। जो कि ऊँ नमो भगवते वासुदेवाय नम:। था। ध्रुव ने इस मंत्र का जाप करना शुरू कर दिया। ताकि भगवान उनके पास आए और वो भगवान की गोद में बैठ जाए।
ध्रुव ने मन से भगवान को याद किया और भगवान विष्णु जी प्रकट हो गए। जिसके बाद विष्णु जी ने ध्रुव से वर मांगने को कहा। ध्रुव ने विष्णु जी से कहा कि मुझे अपनी गोद में बैठा लीजिए। ध्रुव की इस इच्छा को विष्णु जी ने पूरा कर दिया और उसे अपनी गोद में बैठा लिया। वहीं जब ये बात राज्य के लोगों को पता चली तो हर किसी ने ध्रवु का खूब सम्मान किया और ध्रुव के पिता ने उसे अपना सिंहासन भेंट कर दिया।
इस तरह से ध्रुव ने भगवान को प्रसन्न कर अपनी इच्छा को पूरा कर लिया। भगवान को प्रसन्न करने के लिए ध्रुव ने उन्हें ना कोई प्रसाद चढ़ाया और ना ही उनकी पूजा की। पांच साल के ध्रुव ने सिर्फ सच्चे मन से उन्हें याद किया और मन ही मन उनके मंत्र का जाप किया।