अध्यात्म

700 साल पुराने इस मंदिर में टूटा था शनिदेव का पैर और देव हो गए थे पंगु, जानें पूरी कथा

शास्त्रों के अनुसार शनि देव को एक बार पैरों में चोट लग गई थी। जिसके कारण ये पंगु हो गए थे और पंगु होने से शनि देव को चलने में परेशानी होने लगी। तमिलनाडु के पेरावोरानी के पास तंजावूर के विलनकुलम में अक्षयपुरीश्वर मंदिर है और कहा जाता है कि इस जगह पर ही शनि देव पंगु हुए थे। कथा के अनुसार एक बार शनि देव इस जगह धूम रहे थे और तभी इनका पैर मंदिर में लगे बिल्व वृक्ष की जड़ों में फंस गया जिसके कारण ये गिर गए थे।

शनिदेव ने की शिव की पूजा

पंगु होने के बाद शनि देव ने इसी जगह पर शिव जी की तपस्या की। तपस्या से खुश होकर शिव जी ने शनि देव को दर्शन दिए और इनकी इस बीमारी को दूर कर दिया। साथ में ही शनि देव को विवाह का आशीर्वाद भी दिया।

पत्नि के साथ होती है पूजा

अक्षयपुरीश्वर मंदिर में शनि देव की पूजा उनकी पत्नि मंदा और ज्येष्ठा के साथ की जाती है। इन्हें यहां आदी बृहत शनेश्वर कहा जाता है। शनि देव के अलावा इस मंदिर में भगवान शिव अक्षयपुरीश्वर और देवी पार्वती अभिवृद्धि नायकी के रूप में स्थापित हैं और इनकी पूजा भी लोगों द्वारा की जाती है।

हो जाती है हर परेशानी दूर

ऐसा माना जाता है कि इस मंदिर में आकर जो लोग शनि देव की पूजा करते हैं उनकी शारीरिक परेशानी दूर हो जाती है। इसके अलावा साढ़ेसाती में पैदा हुए लोग भी अगर यहां आकर शनि देव की विशेष पूजा करें तो उनकी साढ़ेसाती से रक्षा होती है। वहीं जिन लोगों के वैवाहिक जीवन में कष्ट आ रहे हैं अगर वो भी इस मंदिर में आकर शनि देव की पूजा करते हैं, तो वैवाहिक कष्ट दूर हो जाता है। इस मंदिर में आकर लोग विशेष पूजा और अनुष्ठान भी करवाते हैं।

8 वस्तुओं के साथ की जाती है पूजा

8 अंक शनि देव को बेहद ही प्रिय है। इसलिए इस मंदिर में आने वाले भक्त 8 बार 8 वस्तुओं के साथ शनि देव की पूजा करते हैं और बांए से दाई ओर 8 बार परिक्रमा भी करते हैं।

करीब 700 साल पुराना है मंदिर

अक्षयपुरीश्वर मंदिर 700 साल पुराना मंदिर है। इस मंदिर को चोल शासक पराक्र पंड्यान द्वारा बनवाया गया है। ये मंदिर तमिल वास्तुकला से बनाया गया है। इतिहासकारों के अनुसार अक्षयपुरीश्वर मंदिर 1335 ईस्वी से 1365 ईस्वी के बीच बना होगा।

मंदिर की दीवारें बेहद ही सुंदर तरह से बनाई गई है। इस मंदिर में कई सारे छोटे मंडप और हॉल बने हुए हैं। हालांकि मंदिर का सबसे महत्वपूर्ण हिस्सा भीतरी मंडप है। जो कि बड़े पैमाने पर दीवारों से घिरा हुआ है।

नहीं पहुंचता है सूर्य का प्रकाश

इस मंदिर में एक कोटरीनुमा स्थान हैं जहां पर सूर्य का प्रकाश नहीं पहुंच पाता है। वहीं इस देवालय के बीच में गर्भगृह बनाया हुआ है। जहां भगवान शिव अक्षयपुरिश्वर के रूप में विराजमान हैं। इस मंदिर के गर्भगृह में केवल मंदिर के पुजारी ही प्रवेश कर सकते हैं।

इस मंदिर में जाकर करें पूजा

जिन लोगों को कोई भी शारीरिक कष्ट हो वो लोग एक बार इस मंदिर में जाकर शनिदेव की पूजा कर लें और शनि देव को 8 वस्तुएं अर्पित करें। शारीरिक कष्ट दूर हो जाएगा।

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