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आज है योगिनी एकादशी, इस व्रत से मिलता है अदभुत लाभ, जानें शुभ मुहूर्त, पूजा विधि और व्रत

इस व्रत को करने से समस्त पाप दूर होते हैं और सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं

हमारे हिंदू धर्म में बहुत से व्रत और पूजा बताए गए हैं जिसे करने से कई कष्ट दूर होते हैं। ऐसे में एकादशी का व्रत करना बहुत ही शुभ और फलदायी माना जाता है। भगवान विष्णु की पूजा के लिए सबसे शुभ तिथि एकादशी मानी जाती है। हर महीने में 2 एकादशी पड़ती है। एक शुक्ल पक्ष में और एक कृष्ण पक्ष में मनाई जाती है। आषाढ़ मास के कृष्ण पक्ष में पड़ने वाली एकादशी को योगिनी एकादशी कहते हैं। इस बार योगिनी एकादशी 17 जून को पड़ रही है। इस व्रत को करने से समस्त पाप दूर होते हैं और सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं। आपको बताते हैं क्या है व्रत का शुभ मुहर्त, पूजा विधि और व्रत कथा।

 

क्यों महत्वपूर्ण है योगिनी एकादशी

एकादशी का व्रत करने का एक नियम ये है कि व्रत के एक दिन पहले से सात्विक होना प्रारंभ कर देना चाहिए। इसके लिए एक दिन पहले से ही प्याज लहसून खाना छोड़ देना चाहिए। ये व्रत दशमी तिथि की रात्रि से लेकर द्वादशी तिथि की सुबह दान कर्म के साथ ही समाप्त होती है। ऐसे में व्रत के समय तामसिक यानी की प्याज लहसून और मसाले वाले भोजन का इस्तेमाल बंद कर देना चाहिए।

पुराणों मे इस व्रत का विशेष महत्व इसलिए है कि इस एकादशी तक भगवान विष्णु जागृत रहते हैं। इसके बाद दूसरी एकादशी आती है उसे देवशयनी एकादशी कहते हैं। उसके बाद श्रीहरि 4महीने के लिए दीर्घ शयन पर चले जाते हैं। मान्यता है कि जो व्यक्ति इस व्रत को विधि पूर्वक कर लेता है उसे 88 हजार ब्राह्मणों के भोजन कराने के बराबर पुण्य मिलता है।

योगिनी एकादशी शुभ मुहूर्त

17 जून, 2020

तिथि का समय- 1 जून 2020 को सुबह 5 बजकर 40 मिनट पर शुरु और 17 जून 2020 को 4 बजकर 50 मिनट पर समाप्त

परायण- 18 जून 2020 को सुबह 5 बजकर 28 मिनट से 8 बजकर 14 मिनट तक

व्रत की पूजा विधि

योगिनी एकादशई के दिन सुबह घर की साफ सफाई करके स्नान करना चाहिए। इसके बाद साफ-स्वच्छ वस्त्र धारण करना चाहिए। इसके बाद भगवान विष्णु की मूर्ति स्थापित करें। पूजा के वक्त फूल, अक्षत, नारियल और तुलसी पत्ता अर्पित करें। इसके बाद पीपल के पेड़ की पूजा करें। योगिनी एकादशी व्रत की कथा सुनना भी बेहद जरुरी होती है। इसके बाद अगले दिन परायण करें।

इस मंत्र का जाप करें

मम सकल पापक्षयपूर्वक कुष्ठादिरोग।

निवृत्तिकामनया योगिन्याकादशीव्रतमहं करिष्ये।।

सबसे पहले भगवान विष्णु को पंचामृत से स्नान कराएं। साथ ही भागवान विष्णु के मंत्र का जाप भी करते रहें। उसके बाद चरणामृत को व्रती अपने और परिवार के सदस्यों पर छिड़कें और फिर पी लें। मान्यता है कि इससे शरीर के रोग दूर होते हैं और पीड़ा खत्म होती है।

व्रत कथा

पद्मपुराण में योगिनी एकादशी की कथा इस तरह से बताई गई है। धनाध्यक्ष कुबेर भगवान शिव के परम भक्त थे। कुबेर ने भगवान शिव की पूजा के लिए हेम नाम के माली को फूल चुनकर लाने का काम दिया था। एक दिन हेम अपनी पत्नी संग समय बीताने के लिए विहार करने लगता है और समय से फूल नहीं ला पाता है। इससे क्रोधित होकर कुबेर महाराज सैनिकों को हेम माली के घर भेज देते हैं।

सैनिक जब हेम के घर से लौटकर आते हैं तो कुबेर को बताते हैं कि काम पीड़ित होकर हेम ने सेवा के नियमों का पालन नहीं किया है। इसे सुनकर कुबेर का क्रोध और बढ़ जाता है। राजा कुबेर क्रोध में हेम को शाप दे देते हैं कि वो कुष्ट रोग से पीड़ित होकर पत्नी संग धरती पर चला जाएगा। कुबेर के शाप से हेम को अलकापुरी से पृथ्वी पर आना पड़ता है। यहां पर उनकी मुलाकात ऋषि मार्केंडेय से होती है। उनका दुख देखकर उन्हें वो योगिनी एकादशी का व्रत करने की सलाह देते हैं। इस व्रत से हेम शाप मुक्त हो जाते है और पत्नी संग सुखपूर्वक रहने लगते है।

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