अध्यात्म

इंद्र ने छलपूर्वक कर्ण से ले लिया था कवच और कुंडल, जानिये क्या हुआ इस के बाद उस कवच कुंडल का

ऐसा कहा जाता है कि अगर कर्ण ने कवच-कुंडल दान नहीं किए होते तो युद्ध में कौरव जीत जाते

महाभारत की कहानी में सिर्फ वो 18 दिन का युद्ध ही नहीं था जिस पर ये गाथा लिखी गई है। इस युद्ध भूमि में पहुंचने से पहले इन पात्रों के साथ बहुत कुछ ऐसा हुआ था जो युद्ध से भी ज्यादा दिलचस्प था। महाभारत में शायद ही कोई ऐसा पात्र होगा जिसका जीवन रोचक ना रहा हो या उससे हमें कुछ सिखने को ना मिला हो। महाभारत का ऐसा ही एक पात्र था कर्ण जिन्होंने लड़ाई कौरवों की तरफ से लड़ी थी, लेकिन अपने चरित्र, मित्रता और गुणों के कारण हमेशा धर्म के साथी कहलाए। कर्ण दानवीर थे और अपने इस गुण के कारण वो सिर्फ महाभारत की कहानी में ही नहीं बल्कि पूरे जगत में एक महान व्यक्ति कहलाए। आपको बताते हैं वो कहानी जब अपने से जुड़े इस शब्द को कर्ण ने पूर्ण रुप से सार्थक कर दिया था और इसकी वजह थे देव इंद्र।

शरीर के अंग समान थे कर्ण के कवच-कुंडल

कर्ण सूर्य और कुंती के पुत्र थे, लेकिन कुंती के विवाह से पहले उत्पन्न हो जाने के कारण उनकी मां ने उन्हें नहीं अपनाया और  नदी में बहा दिया। एक रानी के पुत्र होने के बाद भी कर्ण को वो सबकुछ नहीं मिला जो एक राजकुमार को मिलता है। सूर्य से जन्मे कर्ण को विशेष कवच और कुंडल मिले थे जो उनके शरीर का ही एक अंग थे। जैसे जैसे उनका शरीर बड़ा हुआ ये कवच और कुंडल भी बड़े होते गए।

जब महाभारत की कहानी युद्ध के स्तर पर पहुंची तो कर्ण को अपना कौशल दिखाने का अवसर मिला। पांडव ये बात अच्छी तरह से जानते थे कि उस कवच और कुंडल के साथ कर्ण को हराना अंसभव होगा। वहीं दुर्योधन भी इस बात को जानता था कि वो कर्ण की बदौलत ये युद्ध आसानी से जीत लेगा। कर्ण की शत्रुता पांडवों में से सिर्फ अर्जुन से थी। वो अर्जुन जितने ही पराक्रमी और वीर योद्धा थे, जिन्हें कभी अपना कौशल दिखाने का अवसर नहीं मिला था।

इंद्र ने कर्ण के साथ किया छल

अर्जुन देव इंद्र और माता कुंती की संतान थे जो धनुर विद्या में सबसे पारंगत थे। हालांकि वो ये बात जानते थे कि अगर कर्ण कवच कुंडल पहने उनके सामने आएंगे तो वो उन्हें हरा नहीं पाएंगे। ऐसे में उनके पिता इंद्र ने इसका एक उपाय निकाला और युद्ध होने के पूर्व कर्ण के पास ब्राह्मण वेश में जा पहुंचे। इंद्र जानते थे कि कर्ण अपने द्वार से किसी को खाली हाथ नहीं जाने देते और ब्राह्मण को तो बिल्कुल भी नहीं।

जब इंद्र भेष बदलकर कर्ण के सामने आए तो उन्होंने भिक्षा में उनसे उनके कवच और कुंडल मांग लिए। कर्ण जान गए कि ब्राह्मण वेश में उनके सामने जो खड़ा है वो साधारण मनुष्य नहीं बल्कि अर्जुन के पिता हैं। कर्ण जानते थे कि अगर वो ये कवच कुंडल दान कर देंगे तो अर्जुन को परास्त करना उनके लिए असंभव हो जाएगा। फिर भी वो अपने सामने किसी ब्राह्मण को खाली हाथ नहीं भेज सकते थे। उन्होंने अपने शरीर से कवच और कुंडल काट कर इंद्र देव को दे दिए।

इंद्र देव ने कर्ण को दिया इंद्रास्त्र

इंद्र देव ने जब कर्ण का ये रुप देखा तो वो बहुत प्रसन्न हुए। उन्होंने कर्ण से कहा- तुमने आज मुझे प्रसन्न कर दिया है। अपने शरीर से इन्हें अलग करना तुम्हारे लिए आसान नहीं था, लेकिन तुमने फिर भी मेरे मांगने पर मुझे ये कवच कुंडल दान कर दिए। आज से तुम्हें सारा संसार दानवीर कर्ण के रुप में जानेगा। मांगो तुम्हे क्या वर चाहिए।

कर्ण ने उनसे इंद्रास्त्र मांग लिया। उन्होंने कहा कि अगर वो इंद्रास्त्र चलाएंगे तो क्या अर्जुन इसे भेद पाएगा। इस पर इंद्र देव ने कहा कि अर्जुन भी इस बाण को नहीं भेद पाएगा। हालांकि कर्ण को इस इंद्रास्त्र का इस्तेमाल भीम के पुत्र घटोत्कच पर करना पड़ा और युद्ध में वो अर्जुन के हाथों वीरगति को प्राप्त हुए। इस कहानी के बारे में बहुत से लोग जानते हैं, लेकिन इसके आगे क्या हुआ ये बात कम लोग जानते हैं।

समुद्र में छिपे हैं कर्ण के कवच-कुंडल

पौराणिक कथाओं की मानें तो देवराज इंद्र ने कर्ण से ये रक्षा कवच छल से प्राप्त किया था। ऐसे में वो उसे स्वर्ग लेकर नहीं जा सकते थे। इंद्र ने उसे समुद्र में कहीं छिपा दिया। चंद्र देवता ने इंद्र को कवच और कुंडल छिपाते हुए देख लिया था। उसकी दिव्य शक्ति को पाने की लालसा में वो भी लग गए।

हालांकि समुद्र देव ने उन्हें कवच और कुंडल ले जाने से रोका। ऐसा कहा जाता है कि तब से लेकर अब तक सूर्य देव और समुद्र देव उस अद्भभुत कवच और कुंडल की रक्षा करते हैं।माना जाता है कि ये कवच और कुंडल पूरी( ओडिशा) के निकट किसी समुद्र तट में छिपाया गया है। आज तक कोई भी उस तक पहुंच नहीं पाया है।

इसके अलावा एक और कहानी है जिससे बहुत लोग अंजान है। जब देवराज इंद्र कवच और कुंडल लेकर जा रहे थे तो आकाशवाणी हुई- हे इंद्र तमने बड़ा पाप किया है। अपने पुत्र अर्जुन की जान बचाने के लिए तुमने छलपूर्वक कर्ण की जान खतरे में डाल दी। अब तुम इसी रथ के साथ यहीं धंसे रहोगे। इंद्रदेव  ने इसी समस्या से बचने के लिए कर्ण को वज्ररुपी शक्ति देते हुए कहा था कि तुम इस अमोघ वज्र को जिसके ऊपर चला दोगे वो इसके प्रभाव से नहीं बच पाएगा। इसका फल कर्ण को मिला था, लेकिन कवच और कुंडल के ना रहने से अर्जुन ने उन्हे आसानी से परास्त कर दिया और वो वीरगति को प्राप्त हुए।

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