माउंट एवरेस्ट पर 24 वर्षों से पड़ा है इस ITBP जवान का शव, जानिए क्या है इस का रहस्य
दुनिया की सबसे ऊंची और खतरनाक चोटी है माउंट एवरेस्ट। माउंट एवरेस्ट देखने में जितना खूबसूरत नजर आता है, उतने ही गहरे राज भी यह अपने आप में समेटे हुए हैं। यहां हम एक ऐसे ही राज से पर्दा उठा रहे हैं, जिसे जानकर आप भी दांतों तले उंगली दबा लेंगे।
ये है एवरेस्ट का ग्रीन बूट्स
माउंट एवरेस्ट की चोटी से लगभग 200 से 300 मीटर नीचे एक शव 24 साल से यहां पड़ा हुआ है। यह शव है शेवांग पलजोर का। माउंट एवरेस्ट पर जो यह शव पड़ा हुआ है, इसके बारे में पर्वतारोही बताते हैं कि इसे देखकर तो यही लगता है जैसे कोई थक कर यहां सो रहा है।
कहते हैं ग्रीन बूट्स
यह जो शव यहां 24 वर्षों से पड़ा हुआ है, इसके ग्रीन जूते से पर्वतारोही इसकी पहचान करते हैं। यही कारण है कि अब ग्रीन बूट्स के नाम से शेवांग को जाना जाने लगा है। जहां ग्रीन बूट्स को देखकर बहुत से लोग डर जाते हैं और वहां से तुरंत हट जाते हैं, वहीं बहुत से लोग ऐसे भी हैं, जो इसके साथ यहां बैठकर फोटो खिंचवाते हैं।
ITBP जवान का शव
ग्रीन वुड्स के नाम से चर्चित हो चुका जो शव यहां पड़ा हुआ है, वह ITBP जवान और भारत के पर्वतारोही शेवांग पलजोर का है। शेवांग अपने साथियों के साथ 10 मई, 1996 को माउंट एवरेस्ट फतह करने के लिए चले थे। तभी बर्फीला तूफान आ गया था और इसकी चपेट में आकर शेवांग की जान चली गई थी।
मौत को लेकर विवाद
शेवांग की मौत को लेकर आज भी विवाद है। उनकी मौत के बारे में कई पर्वतारोहियों का कहना है कि बर्फीले तूफान में शेवांग बच सकते थे, मगर उस वक्त कोई भी उनकी मदद के लिए आगे नहीं आया। पर्वतारोहियों का कहना है कि जब बर्फीला तूफान आया, उसके बाद वे और उनका एक और साथी मदद की गुहार लगाते रह गए, लेकिन वहां जो पर्वतारोही मौजूद थे, उन्होंने उनकी मदद नहीं की।
जीतने के चक्कर में
पर्वतारोहियों का कहना है कि जितने भी पर्वतारोही वहां उस वक्त मौजूद थे, वे माउंट एवरेस्ट को जीतने के चक्कर में थे। यही वजह रही कि कोई भी पर्वतारोही इनकी मदद के लिए आगे नहीं आया। तब से लेकर आज तक शेवांग का शव उसी जगह पर पड़ा हुआ है।
मां लगाती रहीं चक्कर
शेवांग की मां की भी शिकायत है कि उन्हें केवल इतना बताया गया कि बेटा उनका एवरेस्ट पर लापता हो गया। लद्दाख में ITBP के ऑफिस के काफी चक्कर लगाने के बाद उन्हें पता चला कि एवरेस्ट पर ही उनके बेटे का शव पड़ा हुआ है।
कहलाता है डेथ जोन
8848 मीटर के करीब ऊंचाई वाले माउंट एवरेस्ट पर 8000 मीटर से ऊपर वाले हिस्से में ऑक्सीजन कम होने से यह डेथ जॉन कहलाता है। उसी तरह से बर्फीले तूफान भी यहां पर्वतारोहियों की जान ले लेते हैं। इतनी ऊंचाई से शव को नीचे लाना मुमकिन नहीं होता तो पर्वतारोही अपने साथियों की लाश को वहीं छोड़कर चले आते हैं। कपड़ों और जूतों से इन लाशों की पहचान होती है। अब तो ये लाश ही पर्वतारोहियों को रास्ते की पहचान कराने लगे हैं।
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