माता कुंती की इस गलती की सजा आज भी भुगत रही हैं सारी महिलाएं, युधिष्ठिर ने दिया था श्राप
माता कुंती की गलती इतनी बड़ी थी कि उसकी सजा समस्त नारी जाति को झेलनी पड़ती है
औरतों को लेकर कहा जाता है कि वो कोई भी बात बहुत समय तक छिपा कर नहीं रख सकती हैं और किसी ना किसी को सारी बातें बता देती हैं। अक्सर लोग महिलाओं को इसलिए ही अपने राज नहीं बताते क्योंकि उनसे ये राज छिपाते नहीं बनता है और वो किसी ना किसी के सामने ये बातें कह देती हैं। इसे औरतों की प्रवृत्ति माना जाता है कि उनके पेट में कोई बात नहीं पचती। हालांकि महिलाओं की इस प्रवृत्ति का राज महाभारत काल से जुड़ा है। धर्मराज युधिष्ठिर ने अपनी ही माता कुंती को एक ऐसा श्राप दिया था जिसका दंड आज तक सभी महिलाएं भुगत रही हैं।
सूर्य और कुंती के पुत्र थे कर्ण
महाभारत की कहानी पढ़ने और देखने वाले जानते हैं कि कुंती और कर्ण में माता-पुत्र का संबंध था। एक बार की बात है। माता कुंती ने ऋषि दुर्वासा का बहुत ही आदर सत्कार किया । उनकी सेवा से प्रसन्न होकर ऋषि ने उन्हें एक मंत्र दिया । उन्होंने कहा था इस मंत्र को पढ़कर तुम जिस भी देवता को स्मरण करोगी उससे तुम्हें संतान प्राप्ति होगी और तुम्हारी मनोकामना पूर्ण होगी। कुंती एक राजकुमारी थी उन्हें इस बात पर यकीन नहीं हुआ कि ये मंत्र इतना कारगर हो सकता है।
ऐसे में कुंती ने सूर्य देव को स्मरण कर मंत्र पढ़ दिया। मंत्र पढ़ते ही सूर्य देव ने कुंती के गोद में एक बालक रख दिया। कुंती लज्जित हो गईं। उनका विवाह नहीं हुआ था ऐसे में बिना विवाह के पुत्र रखना समाज में उनके लिए बहुत ही घृणित बात होतीं। कवच और कुंडल पहने सूर्य के तेज समान वाले इस बालक को कुंती ने एक मंजूषा में रखकर गंगा में बहा दिया।
जब कर्ण को पता कि कुंती हैं उनकी मां
इसके बाद कुंती का विवाह पांडु से हुआ और फिर उन्हें युधिष्ठिर भीम और अर्जुन हुए। वहीं पांडु और माद्री से नकुल-सहदेव का जन्म हुआ। कुंती माता ने जब पहली बार कर्ण को देखा तो वो समझ गईं कि ये ही उनका पुत्र हैं। वो सबके सामने कुछ कह भी नहीं सकती थीं। वहीं सूत द्वारा पाले जाने के कारण कर्ण को कभी वो सम्मान और शिक्षा नहीं मिली जो बाकी पांडवों को मिली।
जब महाभारत का युद्ध आरंभ हुआ तब माता कुंती ने कर्ण को बताया कि वो उनका ही पुत्र है। माता की बात सुनकर कर्ण उस वक्त असमंजस में पड़ गए। उन्होंने माता कुंती को वचन दिया कि अर्जुन को छोड़कर वो किसी और पांडव का वध नहीं करेंगे। इसके बाद कर्ण ने अपने वचन अनुसार युद्ध में सिर्फ अर्जुन से युद्ध किया और उनके हाथों वीरगति को प्राप्त हुए।
इस वजह से माता कुंती को युद्धिष्ठिर ने दिया श्राप
युद्ध समाप्त होने के बाद पांडव धृतराष्ट्र, गांधारी और माता कुंती से मिलने पहुंचे। उसके बाद धृतराष्ठ्र के कहने पर पांडवों ने युद्ध में मारे गए अपने परिवारजनों का श्राद्ध और तर्पण का काम किया। माता कुंती से रहा ना गया और उन्होंने पांडवों के सामने अपना वर्षों पुराना राज खोल दिया। उन्होंने बताया कि कर्ण तुम्हारा ही भाई था और उसका भी अंतिम संस्कार का काम तुम्हें ही करना है।
जब पांडवों को इस बात का पता चला तो वो हैरान रह गए। युधिष्ठिर को ये जानकर बहुत ही धक्का लगा कि वो अपने बड़े भाई को पहचान भी नहीं पाए। क्रोध से भरे युधिष्ठिर ने माता कुंती को इतने वर्षो तक इस रहस्य को छिपाए रखने के लिए श्राप दे दिया। युद्धिष्ठर ने कहा, हे मां! आज तुम्हारे इस रहस्य के कारण हमें इतना बड़ा दुख झेलना पड़ा है। आज के बाद से समस्त नारी जाति को मेरा ये श्राप है कि उनके मन में कोई बात ज्यादा देर तक रहस्य के रुप में नहीं रह पाएगी। अगर वो कई रहस्य रखना भी चाहेंगी तो नहीं रख पाएंगी। युद्धिष्ठिर के इसी श्राप के कारण महिलाएं रहस्य नहीं छिपा पातीं और उनके पेट में ज्यादा देर तक कोई बात नहीं पचती है।