समुद्र मंथन से प्रकट हुई थी रंभा अप्सरा, श्राप के कारण बन गई थी शिला, पढ़ें रंभा की कथा
पुराणों और वदों में अप्सराओं का जिक्र मिलता है और इनके अनुसार अप्सरा बेहद ही सुंदर हुआ करती थी। ग्रंथों के अनुसार अप्सराएं इंद्र देव की सभा में अक्सर मौजूद रहती थी। अप्सराओं को लेकर कई तरह की कथाएं प्रचलित हैं।
अथर्ववेद में अप्सराओं का उल्लेख करते हुए लिखा गया है कि ये पीपल और वट वृक्ष पर रहा करती हैं। जबकि यजुर्वेद के अनुसार अप्सराओं का वास पानी में हुआ करता है। वहीं सामवेद में अप्सराओं का जिक्र करते हुए लिखा गया है कि ये गायन और नृत्य में बेहद ही कुशल होती है।
समुद्र मंथन से हुई थी प्रकट
पुराणों में कई सारी अप्सराओं के बारे में बताया गया है। पुराणों मेंं रंभा, उर्वशी, पूर्वचित्ति, कृतस्थली, पुंजिकस्थला, मेनका, प्रम्लोचा, अनुम्लोचा और तिलोत्तमा नाम की अप्सराओं का जिक्र है। इन अप्सराओं में से रंभा सबसे प्रमुख थी। वहीं ऋग्वेद में उर्वशी को प्रसिद्ध अप्सरा माना है।
विश्वामित्र ने दिया था श्राप
पुराणों में रंभा अप्सरा के बारे में कहा गया है कि ये समुद्र मंथन से प्रकट हुई थी जिसके बाद इंद्र ने रंभा को अपनी राजसभा में स्थान दिया था। ये हमेशा इंद्र देव की सभा में उपस्थित रहती थी। रंभा बेहद ही सुंदर हुआ करती थी। हालांकि एक बार जब रंभा ने विश्वामित्र की तपस्या भंग करने की कोशिश की, तब विश्वामित्र ने गुस्से में आकर रंभा को श्राप दे दिया और कई सालों तक ये पत्थर बनकर रही। रंभा ने इस श्राप से मुक्त होने के लिए शिव-पार्वती की पूजा की और कई सालों बाद शिव-पार्वती ने रंभा को इस श्राप से मुक्त करवाया। हालांकि वाल्मीकि रामायण के अनुसार विश्वामित्र के श्राप से रंभा को एक ब्राह्मण द्वारा मुक्त करवाया गया था।
बेहद ही सुंदर थी रंभा
- रंभा समुद्र मंथन के दौरान निकली थी और ये बेहद ही सुंदर हुआ करती थी। जिसकी वजह से ये अपने सौन्दर्य के लिए तीनों लोकों में प्रसिद्ध थी।
- ऐसा भी कहा जाता है कि इन्द्र ने देवताओं से रंभा को अपनी राजसभा के लिए प्राप्त किया था।
- महाभारत में रंभा को तुरुंब नाम के गंधर्व की पत्नी बताया गया है।
- अन्य पुराणों में रंभा को कुबेर के पुत्र नलकुबर की पत्नी कहा गया है।
- रावण संहिता में रंभा का जिक्र करते हुए लिखा गया है कि एक बार रावण ने रंभा के साथ बल का प्रयोग करना चाहा। जिससे गुस्से में आकर रंभा ने रावण को श्राप दे दिया था।
- स्वर्ग में जब अर्जुन आए थे तो रंभा ने नृत्य करके अर्जुन का स्वागत किया था।
अप्सरा रंभा का व्रत
अप्सरा रंभा के नाम से दो व्रत रखते हैं जाते हैं, जिसमें से पहला व्रत हर साल ज्येष्ठ महीने के शुक्लपक्ष की तृतीया को आता है, जिसे रंभा तीज कहा जाता है। इस व्रत को रखने से नारी को सौभाग्य और संतान सुख मिलता है। साथ में ही पति की उम्र भी बढ़ जाती है। वहीं दूसरा व्रत कार्तिक महीने के कृष्णपक्ष की एकादशी को आता है। जिसे रंभा एकादशी व्रत कहा जाता है। ये एकदाशी चातुर्मास की आखिरी एकादशी भी होती है। इस व्रत को भी महिलाएं रखती हैं और परिवार के सदस्यों के स्वस्थ जीवन की कामना करती हैं।