लिंगाई माता मंदिर : स्त्री के रूप में होती है शिव की पूजा, संतान प्राप्ति की मन्नत करते हैं पूरी
साल में सिर्फ एक ही बार खुलता है इस मंदिर का कपाट, बैठकर या लेटकर ही किया जा सकता है प्रवेश
लिंगाई माता मंदिर( Lingai Mata Mandir) भारत देश में न ही मंदिरों की कमी है और न ही भक्तों की। इस देश का कोई ऐसा कोना नहीं होगा, जहां मंदिर स्थापित न हो। और खास बात ये है कि हर मंदिर का अपना एक इतिहास है। साथ ही प्रत्येक मंदिर के प्रसिद्धि का कारण भी अलग अलग है। कुछ मंदिरों के प्रसिद्धी के कारणों के बारे में तो आप जानते ही होंगे। आज हम आपको एक शिवमंदिर, लिंगाई माता मंदिर के बारे में बताने जा रहे हैं, जहां भोलेनाथ की पूजा स्त्री रूप में की जाती है। जी हां, सही सुना आपने। आइये जानते है कि आखिर ये मंदिर देश के किस कोने में स्थापित है…
गौरतलब हो कि, देश के ज्यादातर ऐतिहासिक और रहस्यमयी मंदिर झारखंड और छत्तीसगढ़ के दुर्गम और जंगली इलाकों में ही स्थित हैं। यही वजह है कि इन मंदिरों में स्थानीय लोगों के अलावा दूसरे लोग जल्दी से नहीं पहुँच पाते हैं, इसलिए ऐसे मंदिरों के बारे में ज्यादातर लोगों को नहीं पता होता है। ऐसा ही एक मंदिर है, लिंगाई माता मंदिर। यह मंदिर आलोर गांव की गुफा में स्थित है। दिलचस्प बात ये है कि मंदिर में एक शिवलिंग स्थापित है, लेकिन इसकी पूजा स्त्री रूप में की जाती है। इसी वजह से इस मंदिर को लिंगाई माता का मंदिर कहा जाता है।
आलोर गांव में स्थित है लिंगाई माता मंदिर
बैठकर या लेटकर ही प्रवेश किया जा सकता है
छत्तीसगढ़ के फरसगांव से लगभग 8 किमी दूर पश्चिम से बड़ेडोंगर मार्ग पर ग्राम आलोर स्थित है। आलोर से लगभग 2 किलोमीटर दूर उत्तर पश्चिम में एक पहाड़ी है, जिसे लिंगई गट्टा के नाम से जाना जाता है। लिंगई गट्टा पहाड़ी के ऊपर एक विशाल पत्थर है। बाहरी लोगों के लिए ये एक सामान्य पत्थर हो सकता है, लेकिन ये पत्थर स्तूप-नुमा है। इस पत्थर को ऊपर से देखने से ऐसा लगता है कि मानो कोई विशाल पत्थर को कटोरानुमा तराश कर चट्टान के ऊपर उलट दिया गया है। इस खास मंदिर के दक्षिण में एक सुरंग है, यही इस गुफा का प्रवेश द्वार है। इस प्रवेश द्वार की एक खासियत ये है कि इसमें बैठकर या लेटकर ही प्रवेश किया जा सकता है। साथ ही इस गुफा के अंदर एक समय में सिर्फ 25 से 30 आदमी ही बैठ सकते हैं। गुफा के अंदर चट्टानों के बीचों बीच शिवलिंग निकला है, इस शिवलिंग की ऊंचाई लगभग 2 फीट है। इस शिवलिंग के बारे में कई श्रद्धालुओं का मानना है कि यह पहले काफी छोटा था, लेकिन समय के साथ इसकी ऊँचाई बढ़ती गई।
साल में सिर्फ एक दिन खुलते हैं मंदिर के कपाट
लिंगाई माता मंदिर में बाकी मंदिरों की तरह पूरे साल पूजा अर्चना नहीं होती है। साल में सिर्फ एक ही दिन मंदिर के कपाट श्रद्धालुओं के लिए खोले जाते हैं और इसी दिन यहां मेला लगता है। इस मंदिर में खासकर संतान प्राप्ति की मन्नत लेकर श्रद्धालु यहां पहुँचते हैं। आपकी जानकारी के लिए बता दें कि हर साल सिर्फ भाद्रपद महीने के शुक्ल पक्ष नवमी तिथि के बाद आने वाले बुधवार को लिंगाई माता मंदिर के द्वार खोले जाते हैं।
क्या है मान्यताएं?
लिंगाई माता मंदिर से जुड़ी दो प्रमुख मान्यताएं हैं। पहली मान्यता संतान प्राप्ति से जुड़ी है। इस मंदिर में अधिकतर श्रद्धालु संतान प्राप्ति की मन्नत मांगकर आते हैं। आपको जानकर आश्चर्य होगा कि इस मंदिर में मन्नत मांगने का तरीका भी निराला है। दरअसल मंदिर का ये नियम है कि जो भी श्रद्धालु संतान प्राप्ति की मन्नत मांगने आता है उसे खीरा चढ़ाना आवश्यक होता है। खीरा चढ़ाने के बाद मंदिर का पुजारी उसे दंपत्ति को वापस दे देता है। खीरा चढ़ाने का तरीका भी इस मंदिर में अलग ही है। दरअसल, दंपत्ति को शिवलिंग के सामने खीरा को अपने नाखून से चीरा लगाकर टो टुकड़ों में तोड़ना होता है। इसके बाद वहीं इस प्रसाद को दोनों को ग्रहण करना पड़ता है। अगर मन्नत पूरी हो जाती है, तो अगले साल मंदिर में अपने श्रद्धानुसार चढ़ावा चढ़ाना होता है। बता दें कि इस मंदिर में किसी भी प्रकार के पशु की बलि देना या शराब चढ़ाना वर्जित है।
इस मंदिर के बारे में दूसरी मान्यता ये है कि, मंदिर में भविष्य का अनुमान लगाया जाता है। एक दिन की पूजा करने के बाद मंदिर बंद कर दिया जाता है। इसके बाद रेत पर जो चिह्न मिलते हैं, उससे पुजारी अगले साल के भविष्य का अनुमान लगाते हैं। मान्यता है कि यदि रेत पर कमल के निशान हों तो उससे धन संपदा में बढ़ोतरी होती है। हाथी के पांव के निशान हो तो उन्नति होती है, घोड़े के खुर के निशान हों तो युद्ध, बाघ के पैर के निशान हों तो आतंक, बिल्ली के पैर के निशान हों तो भय और मुर्गियों के पैर के निशान होने पर अकाल होनें का संकेत माना जाता है।