महाराष्ट्र में 96% प्रवासियों को दिया ही नहीं सरकारी राशन और कोरोना फैलाने में रहे सब से आगे
महाराष्ट्र की उद्धव सरकार कोरोना को रोकने में पूरी तरह से फ़ैल रही और प्रवासी मजदूरों की दुर्दशा भी सब से ज़्यादा यहीं है
राजस्थान के रहने वाले प्रवासी मजदूर रामसिंग को दो दिनों में केवल एक बार ही भोजन नसीब हो पा रहा है। वे मुंबई के चेंबूर में ठक्कर बप्पा कॉलोनी में स्थित एक चप्पल फैक्ट्री में काम कर रहे थे। यहां उन्हें रोजाना 200 रुपये मिला करते थे, जिससे कि उनकी जिंदगी चल रही थी। जब से लॉकडाउन हुआ है, तब से वे और उनका परिवार भोजन के लिए संघर्ष कर रहा है।
बचा लेते हैं बच्चों के लिए
रामसिंग बताते हैं कि जब सामाजिक कार्यकर्ताओं से उन्हें भोजन मिलता है तो वे इसे अपने बच्चों के लिए रख लेते हैं। वे और उनकी पत्नी दो दिनों में केवल एक बार ही भोजन करते हैं। उनके पास स्थानीय राशन कार्ड मौजूद नहीं है, जिसकी वजह से रियायती दरों पर सरकारी योजना के तहत मिलने वाले अनाज और राशन प्राप्त करने के अवसर से उन्हें वंचित कर दिया गया है।
रिपोर्ट में जताई गई चिंता
यह हालत महाराष्ट्र में केवल एक प्रवासी मजदूर की नहीं है, बल्कि एक स्वयंसेवी समूह स्ट्रैंडेड वर्कर्स एक्शन नेटवर्क यानी कि स्वान की ओर से किए गए एक रिपोर्ट के मुताबिक प्रदेश भर में बड़ी संख्या में प्रवासी मजदूर इसी तरह की समस्या का सामना कर रहे हैं। इस रिपोर्ट में बताया गया है कि किस तरीके से प्रवासी मजदूरों को सरकारी राशन का लाभ नहीं मिल पा रहा है। इस रिपोर्ट के मुताबिक राज्य में रहने वाले 96 फ़ीसदी प्रवासी मजदूरों को लॉकडाउन के दौरान सरकारी राशन नहीं मिल पाया है। साथ ही 69% प्रवासी मजदूर ऐसे हैं, जिनका राशन एक ही दिन में समाप्त हो गया है।
सरकारी राशन तक पहुंच नहीं
रिपोर्ट में बताया गया है कि महाराष्ट्र में सरकारी राशन तक लोगों की पहुंच बहुत ही दूर की बात बनी हुई है। इस रिपोर्ट को बनाने के दौरान स्वान की ओर से देशभर में प्रवासी मजदूरों को फोन करके लॉकडाउन के दौरान 26 अप्रैल तक की जानकारी ली गई है। राज्य में 4 हजार 823 मजदूरों से प्राप्त जवाब के आधार पर इस रिपोर्ट में विश्लेषण किया गया है। रिपोर्ट में बताया गया है कि 75 फ़ीसदी प्रवासियों ने स्वान को बताया है कि उनके पास 100 रुपये से भी कम पैसे बचे हैं और 81 फ़ीसदी लोगों को लॉकडाउन के दौरान अपने मालिकों से अपने काम के लिए पैसे नहीं मिले। रिपोर्ट में बताया गया है कि 51 फ़ीसदी लोगों ने, जो कि राज्य में रहते हैं और जिनके पास न पैसे बचे हैं न राशन, उन्होंने एक वक्त का भोजन न करने की बात कही है।
लौट जाना चाहते हैं 38 फीसदी लोग
रिपोर्ट में कहा गया है कि 38 फ़ीसदी लोगों ने बताया है कि लॉकडाउन के बाद वे घर चले जाना चाहते हैं, जबकि 41 फ़ीसदी लोग अब तक इसे लेकर किसी निष्कर्ष पर नहीं पहुंचे हैं। स्वान की रिपोर्ट यह भी कह रही है कि महाराष्ट्र में राहत पहुंचाना खासकर मुंबई में बहुत ही मुश्किल हो गया है। मुंबई में प्रवासी मजदूरों की संख्या सबसे अधिक है।
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