ये हैं सिंधु ताई सपकाल, जो पाल रहीं हैं हजारों अनाथ बच्चों को, इन की कहानी भी सब से अलग है
जब वह अपना जीवन खत्म करने के लिए रास्ते पर चल रही थी तब उन्होंने देखा कि मार्ग में बुखार से तड़पता हुआ एक बूढ़ा व्यक्ति लेटा हुआ है
मां का स्थान दुनिया में कोई भी नहीं ले सकता है, हर एक मनुष्य के जीवन में एक माँ ही होती है जो हमारा अच्छे और बुरे समय में साथ देती है, मां जीवन में दूसरों से अधिक हमेशा हमारा ध्यान रखती है और हमसे सबसे ज्यादा प्यार करती है, मां हमारे सुख-दुख की हर वजह जानती है और मां हमेशा यही कोशिश करती है कि हम हमेशा खुश रहे, मां और बच्चों के बीच एक खास बंधन होता है, जो कभी भी खत्म नहीं हो सकता है, मां एक शब्द भर नहीं है, मां की भूमिका हमेशा अपने बच्चों के लिए ममता भरी रहती है, आज हम आपको एक ऐसी मां के बारे में बताने वाले हैं, जो एक या दो नहीं बल्कि हजारों बच्चों की मां है, इनकी ममता के आंचल की छांव में कई अनाथ बच्चे पल रहे हैं, हम हजारों बच्चों का सहारा बनने वाली मां सिंधुताई सपकाल (Sindhutai Sapkal) के बारे में बात कर रहे हैं, तो चलिए जानते हैं सिंधु ताई (Sindhu Tai) के बारे में।
सिंधुताई सपकाल का जन्म 14 नवंबर 1948 को महाराष्ट्र के वर्धा जिले के पिंपरी गांव में हुआ था, इनके पिता चारवाहा थे, जब इनका जन्म हुआ तब इनके पिताजी इनको बिल्कुल भी पसंद नहीं करते थे, क्योंकि यह लड़की थी और इनके पिताजी को लड़की नहीं चाहिए थी, इसी वजह से इनके पिताजी ने इनका नाम चिंदी रखा था, चिंदी का मतलब होता है किसी कपड़े का कुतरा हुआ टुकड़ा, जिसका कोई मोल ना हो, यह बहुत ही गरीब परिवार से ताल्लुक रखती थी, जिसकी वजह से इनकी पढ़ाई-लिखाई और अच्छी परवरिश भी ना हो सकी, और महज 10 वर्ष की आयु में इनका विवाह 30 वर्षीय श्री हरी सपकाल से करा दिया गया था, जब यह 20 वर्ष की आयु में पहुंची तब यह 3 बच्चों की मां बन गई थी, जब इनके पेट में चौथा बच्चा था तब इनके पति ने झूठ के खिलाफ आवाज उठाने पर घर से बाहर निकाल दिया था, जब इनके पति ने इनको घर से बाहर निकाला था तब इनका नौवां महीना चल रहा था और इस अवधि में बच्चा किसी भी समय हो सकता है, परंतु 9 महीने की गर्भवती होने के बावजूद भी किसी को भी कोई फर्क नहीं पड़ा था, यहां तक कि खुद सिंधु ताई के घर वालों ने ही उनको उल्टा सीधा बोला था।
सिंधुताई हर तरफ से बेसहारा हो गई थी और 9 माह के दौरान गर्भावस्था के दौरान यह बाहर सड़क पर तड़पती रही परंतु इनकी मदद के लिए कोई भी सामने नहीं आया था, आखिर में इन्होंने किसी तरह गाय के लिए बने गए फूस के घर में अपने खुद के बच्चे को जन्म दिया था और अपने बच्चे के साथ ही रेलवे स्टेशन पर भीख मांगने लगी, भीख मांग कर ही यह अपने बच्चे और अपना पेट पालने लगी थी, जैसे-जैसे समय गुजरता गया वैसे-वैसे इनकी हिम्मत जवाब देने लगी, परंतु इन्होंने अपना हौसला नहीं तोड़ा।
सिंधुताई ने एक दिन बहुत सारा खाना इकट्ठा किया, जब तक इनका पेट और मन नहीं भर गया तब तक उन्होंने यह खाना खाया, बाकी बचे हुए खाने को उन्होंने बांधकर अपने पास रख लिया और अपने बच्चे के साथ रेल की पटरी की तरफ अपना जीवन समाप्त करने के लिए निकल पड़ी परंतु उनको क्या पता था कि उसी दौरान इनके जीवन में एक बहुत बड़ा बदलाव आने वाला है, जब वह अपना जीवन खत्म करने के लिए रास्ते पर चल रही थी तब उन्होंने देखा कि मार्ग में बुखार से तड़पता हुआ एक बूढ़ा व्यक्ति लेटा हुआ है।
सिंधुताई के मन में यह विचार आया कि उनके पास जो बचा हुआ खाना है वह इस बूढ़े व्यक्ति को दे दे, तब सिंधु ताई में उस व्यक्ति को अपना बचा हुआ खाना दिया, तब उस इंसान ने हाथ जोड़कर बहती हुई आंखों से उनका शुक्रिया अदा किया था, तभी सिंधुताई के मन में यह विचार उत्पन्न हुआ कि उसने अपने जीवन में बहुत कुछ सहन किया है परंतु इन सबके बावजूद भी वह अभी भी जिंदा है, अगर वह चाहे तो बेसहारा लोगों को जीवन जीने का मार्ग दिखा सकती है और उसके बाद से ही सिंधु, सिंधुताई बन गई, जो भी रेलवे स्टेशन पर बच्चा बेसहारा पड़ा हुआ मिलता था वह उस बच्चे की मां बन जाती थी।
सिंधुताई ने अपना जीवन अनाथ बच्चों के लिए समर्पित कर दिया है, इन्होंने अब तक हजारों बच्चों को सहारा दिया, यह जिस भी अनाथ बच्चे को गोद लेती थी उनको इन्होंने आगे बढ़ाया और उन्हीं बेसहारा अनाथ बच्चों में से आज कोई इंजीनियर है तो कोई वकील है और कोई डॉक्टर भी है, सिंधुताई के इस नेक कार्य को देखते हुए इनको कई राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय पुरस्कार से भी सम्मानित किया जा चुका है।