कभी टीपू सुल्तान को शिवसेना ने बताया था हिंदुओं का कातिल, अब पोस्टर बनवाकर खुद दे रही श्रद्धांजलि
जिस पार्टी की नींव आक्रांता के खिलाफ रखी गई हो वो पार्टी आज उसी संहारक को अपना आदर्श मानने लगी है
हमेशा रफ्तार में रहने वाली और बिना पलक झपकाए घंटों दौड़ने वाली मुंबई अचानक से एक दिन रुक गई थी। वो तारीख थी 17 नंवबर 2012 जब मुंबई शहर में एकदम से सन्नाटा छा गया था और वजह थी बाला साहेब ठाकरे का निधन। 2 करोड़ से ऊपर की आबादी वाला शहर शांत था क्योंकि बाल ठाकरे की सांस थम चुकी थी। भारतीय राजनीति में प्रबल हिंदुत्व प्रवर्तकों में बाला साहब का नाम बड़े ही अदब से लिया जाता है। भारत की राजनीति में बाला साहेब सिर्फ एक नाम नहीं बल्कि हिंदुत्व की एक बड़ी पहचान माने जाते थे। भारत के इतिहास में शायद बाला साहेब पहले ऐसे व्यक्ति रहे होंगे जिन्हें मुसलमानों के विरुद्ध बोलने पर वोट देने से अधिकार देने तक से वंचित कर दिया गया था। आज उन्हीं की संतान और पार्टी नेता सत्ता के लालच में उन्हीं के आदर्शों और मूल्यों को भूल चुके हैं।
टीपू सुल्तान का पोस्टर हुआ वायरल
रामटेक से शिवसेना सांसद कृपाल तुमाने का एक पोस्ट सोशल मीडिया पर चर्चा का विषय बना हुआ है। हाल ही में तुमाने ने टीपू सुल्तान जयंती का बैनर बनवाया। चर्चा की बात ये भी रही कि इस पर तुमाने ने पार्टी का नाम भी लिखवाया और फिर बाल ठाकरे का चित्र भी लगाया। जिस पार्टी की नींव ऐसे आक्रमणकारी के विरोध पर रखी गई हो, जो छत्रपति शिवाजी महाराज को अपना प्रेरणास्त्रोत मानती हो उसी ने उस आक्रांता को अपना आदर्श मान लिया। जिस बाला साहेब ठाकरे की आवाज सुनकर विरोधियों के पसीने छूट जाते थे उस शिवसेना पार्टी को ऐसी स्थिति में देखकर बाला साहेब की आत्मा को जरुर बहुत दुख पहुंचा होगा।
भारत की संस्कृति को धवस्त कर इस्लामिक जिहाद को बढ़ावा देने वाले सेनापतियों का गुणगान कर मुसलमानों का वोट हासिल करने की ये चाल बिल्कुल भी नई नही है हां ये काम अभी तक कांग्रेस और वामपंथी दल ही किया करते थे। जिस टीपू सुल्तान का बैनर बनवा कर शिवसेना उसकी पूजा कर रही है और उसे अपना आदर्श मान रही है उसके बारे में आपको भी जानना चाहिए।
ऐसा था टीपू सुल्तान
अपने 17 साल के शासनकाल में टीपू सुल्तान ने दक्षिण के लगभग सभी जगहों को बर्बाद कर दिया था। इनमें कोडागु( कुर्ग) कालीकट(कोझिकोड) और मालाबार शामिल थे। उसने 1788 में कुर्गनगर में भी तोड़फोड़ के बाद आग लगा दी थी। उसने मंदिर तोड़ डाले और पूरे नगर को वीरान कर दिया। इतना ही नहीं वो हिंदुओं का कन्वर्जन भी करवाता था। कुर्नूल के नवाब को लिखे उसके पत्र में इस बात की पुष्टि हुई थी। टीपू ने उस पत्र में लिखा था कि उसने 4 हजार कोड़वा लोगों को बंदी बनाकर उनका धर्म बदलकर मुसलमान बनाया था। कोडागु को बर्बाद कर वहां बाहर से 7 हजार शेख और सैय्यद मुस्लमानों को लाकर वहां बसाया।
टीपू सुल्तान के शासनकाल में कोडागु के सभी मंदिर तोड़ दिए गए थे। एक मंदिर को पत्तों से ढक गया था जिस कारण वो बच गया था। वो मेडकरी का ओंकारेश्वर मंदिर था जिसे नष्ट होने से बचाने के लिए वहां के शासक ने उसका गोपुरम तोड़कर पहले ही गुंबद का आकार दे दिया था जिसे लगे कि वहां मस्जिद है। आज भी उस मंदिर का गुंबद उस जगह पर हुई बर्बता की याद दिलाता है। कोडागु के कन्वर्टेड मुसलमान आज भी अपना हिंदू उपनाम ही लगाते हैं।
बर्बता पार कर गया था टीपू
कालीकट जिसे आज के समय में कोझिकोड के नाम से जानते हैं उसके विनाश का वर्णन कई पुर्तगाली, जर्मन ब्रिटि मिशनरियों और सेना के अधिकारियों ने संस्मरणों में किया है। इसमें लिखा गया है कि 30 हजार आक्रांता लोगों को आगे आगे मारते हुए चलते थे और पीछे से 30 हजार की सेना लेकर हाथी पर सवार टीपू हिंदुओं को हाथियों के पैरों से बांध कर उन्हें मार डालता था। बच्चों और माओं को भी नहीं बख्शा जाता था। दोनों को मार कर पेड़ से लटका दिया जाता था।
टीपू सुल्तान ने अपने राज में पुरुषों को इस्माम में तब्दील कर दिया था और बेटियों का निकाह जबरन मुसलमानों से करा देता था। हर तरफ मौत का तांडव हो रहा था। मिशनरी गुनसेट ने लिखा था कि टीपू ने कालीकट को जमीन में मिला दिया था। टीपू ने सय्यद अब्दुल ढुलाई को पत्र लिखा, अल्लाह के करम और मुहम्मद की प्रेरणा से कालीकट के सभी हिंदू मुसलमान हो गए हैं। चीन की सीमा में जो कुछ हिंदू बचे हैं उन्हें भी जल्दी ही मुसलमान बना दिया जाएगा।
आगे लिखा था, आपका पत्र मिला आपने नायर ब्राह्मणों को मारा और उन्हें मुसलमान बनाया। मालाबार में 4 लाख हिंदुओं को मुसलमान बनाया, 800 मंदिरों को तबाह कर दिया, आप अल्लाह का काम कर रहे हैं।। विलियम लोगस ने मालाबार मैनुअल्स में इसका विवरण दिया है। अगर किसी मलबारी को इसकी स्मृति करवानी हो तो केवल एक शब्द पद्योत्तम बोलकर देखें।
कांग्रेस ने गाना शुरु की थी आक्रांता की महिमा
जिस शासक ने लोगों को पैर की जूती के नीचे कुचल दिया हो और ऐसी बर्बता दिखाई हो उसका महिमामंडन सुन पाना किसी भी देशभक्त के लिए खून का घूंट पीने के बराबर है। हालांकि ये जानना जरुरी है कि इस महिमामंडन की शुरुआत हुई कहां से।
ये 70 के दशक का वक्त था जब तुष्टिकरण की नीति के तहत कांग्रेस ने टीपू सुल्तावन पर एक डाक टिकट जारी किया। भगवन गिडवानी ने द सोर्ज ऑफ टीपू सुल्तान नाम का उपन्यास लिखा और इस फैसले को सही बताया। इसके बाद गिरीश कर्नाड ने टीपू विनाकाणा सुगालु नाम का एक नाटक लिखा इसे अंग्रेजी में The Dreams of Tipu Sultan नाम दिया गया। नई पीढ़ी इस किताब का लिखा ही सच मानती है।
गिडवानी ने इस उपन्यास में टीपू सुल्तान के बारे में कई झूठ लिखे। इस उपन्यास में लिखा गया कि टीपू एक महान देशभक्त, कुशल रणनीतिकार था। उसे हिंदू-मुस्लिम एकता का प्रतीक, मंदिरो का उद्धारक बताया गया। 1799 की श्रीरंगपट्टनम की अंतिम लड़ाई में टीपू के मरने तक पूरे राज्य में केवल दो मंदिरों में पूजा होती थी। उसने दक्षिण की प्रमुख भाषा कन्नड़ को हटाकर फारसी को राजभाषा बना दिया गया।
उसके मरने के बाद कर्नल विलियम को 22 हजार हस्तलिखित पत्र मिले। इनमें हिंदुओं को काफिर और विधर्मी बताया गया। पूरे देश में केवल कन्नड़ मुसलमान ही ऐसा है जो अपनी मातृभाषा कन्नड़ नहीं बोल सकता। इसका पूरा श्रेय भी गिडवानी के टीपू को जाता है। आज भी कन्नडड में जबरदस्ती के डाले गए शब्द जैसे खाता, खिरडी, खानसुमनरी, गुदास्ता आदि काफी बोले जाते हैं। टीपू ने मुहम्मद के जन्म से शुरु कर एक कैलेंडर बनाया था, जिसके महीनों के नाम अरबी से शुरु होते हैं।
देशभक्त नहीं था टीपू सुल्तान
कई लोगों का कहना है कि टीपू ने मंदिर के पास महल बनाया ये दिखाने के लिए वो हिंदुओ का सम्मान करता था, लेकिन हकीकत कुछ और ही है। महल के पास मंदिर बनाने का उसका मकसद ये जताना था कि मंदिर आने वाला व्यक्ति जाने कि उसका भगवान है ही नहीं, केवल अल्लाह है। धिम्मी हिंदुओं को ये बात समझने की जरुरत है।
जो लोग टीपू सुल्तान को देशभक्त और स्वतंत्रता संग्राम सेनानी बताने वाले लोगों को ये नहीं पता है कि उसने अंग्रेजों के खिलाफ लड़ाई सिर्फ इसलिए लड़ी क्योंकि वो फ्रांसिसियों का आधिपत्य स्वीकार कर चुका था। उसने फ्रांस से संधि की थी की जीतने के बाद आधा राज्य टीपू और आधा फ्रांसिसियों का होगा।
जब मराठा साम्राज्य चरम पर था तब भयभीत टीपू ने 1797 में अफगान शासन जमनशाह को भारत पर उत्तर की ओर से हमला करने के लिए पत्र लिखा था। इसमें उसने लिखा था कि दक्षिण की तरफ से हमला वो करेगा। वो भारत से इस्लाम के दुश्मन काफिरों को खत्म करना चाहता था। ये पत्र ही काफी है उसे कट्टरपंथी घोषित करने के लिए।
क्यों बदल गई शिवसेना?
अंग्रेजों से अपने साम्राज्य को बचाने के लिए दुश्मन से हाथ मिलाने वाले एक क्रूर शासक को आज स्वतंत्रता सेनानी का नाम दिया जा रहा है। अगर ऐसा है तो मराठों, मेवाड़ के राजपूतों और गोरखाओं को ये सम्मान क्यों नहीं मिला? क्या सिर्फ इसलिए क्योंकि वो हिंदुओं के अस्मिता और सम्मान के लिए लड़े थे। वीर सावरकर से शुरु कर शिवसेना आज टीपू सुल्तान तक पहुंच गई। लगता है वो दिन भी दूर नहीं जब इसके सहयोगी इसे छत्रपति शिवाजी से भी उसे दूर कर देंगे। हैरानी की बात ये है कि शिवसेना ने अपने राजनीतिक इतिहास में सबसे नई फजीहत टीपू सुल्तान को लेकर ही कमाई है।