18 साल के इस लड़के के Idea पर फिदा हुए रतन टाटा, खरीद ली कंपनी में 50 फीसदी हिस्सेदारी
देश की नवरत्न कंपनियों में टाटा शामिल है और टाटा समूह के प्रमुख रतन टाटा ने 18 साल के एक युवा अर्जुन देशपांडे की दवा बेचने वाली कंपनी जेनेरिक आधार में आधी हिस्सेदारी खरीद ली है। दिलचस्प बात ये है कि दूसरी ऑनलाइन दवा बेचने वाले कंपनी के तुलना में जेनेरिक आधार काफी सस्ती कीमतों पर दवाएं बेचती है। जेनेरिक आधार खुदरा दुकानदारों को बाजार से सस्ती दरों पर दवाएं बेचती है।
अर्जुन देशपांडे के अनुसार, टाटा समूह के मालिक रतन टाटा ने नए इस प्रस्ताव को 3 से 4 महीने पहले ही अपने संज्ञान में ले लिया था। रतन टाटा, जेनेरिक आधार कंपनी के साझेदार बनना चाहते थे। साथ ही वे अर्जुन देशपांडे के मेंटोर भी बनने के इच्छुक थे। रतन टाटा और जेनेरिक आधार कंपनी एक दूसरे के पार्टनर बनेंगे और इसकी औपचारिक घोषणा करना बाकी है।
दो साल पहले शुरू हुई कंपनी
अर्जुन देशपांडे ने जेनेरिक आधार कंपनी की शुरुआत दो साल पहले की थी। तब वे महज 16 साल के थे और अब उनकी कंपनी हर साल 6 करोड़ रुपए के रेवेन्यू का दावा करती है।
कई स्टार्ट अप में निवश कर चुके हैं रतन टाटा
रतन टाटा ने जेनेरिक आधार कंपनी में निजी तौर पर निवेश किया है। ये टाटा ग्रुप से जुड़ा नहीं है। रतन टाटा ने इससे पहले भी देश के कई बड़े स्टार्टअप में निवेश किया है, जिसमें ओला, पेटीएम, स्नैपडील, क्योरफिट, अर्बन लैडर, लेंसकार्ट और लाइब्रेट शामिल हैं।
प्रॉफिट शेयरिंग मॉडल पर आधारित है जेनेरिक आधार
आपकी जानकारी के लिए बता दें कि जेनेरिक आधार प्रॉफिट शेयरिंग मॉडल से चलती है। यह कंपनी अभी धीरे धीरे बढ़ रही है। मुंबई पुणे बेंगलुरू और ओड़िशा के करीब 30 से अधिक रिटेलर 18 वर्षीय युवा के इस कंपनी से जुड़े हुए हैं। जेनेरिक आधार में फार्मिस्ट, आईटी इंजीनियर और मार्केटिंग को मिलाकर करीब 55 कर्मचारी कार्यरत हैं। ऐसा माना जा रहा है कि ये कंपनी युवाओं के लिए एक इंसपिरेशन के समान है, जिसने इतने कम समय में ही रतन टाटा जैसे बिजनेसमैन से हाथ मिला लिया है।
अर्जुन देशपांडे ने कहा कि अगले एक साल में 1000 छोटे फ्रेंचाइजी खोलने की रणनीति बनाई गई है। अभी कंपनी मुख्य रूप से डायबिटीज और हाइपरटेंशन की दवाओं की आपूर्ति करती है, लेकिन कंपनी का कहना है कि बहुत जल्द कम दरों पर कैंसर की दवाएं भी मिलेंगी। अर्जुन ने कहा कि इस योजना से हमने देश में पालघर, अहमदाबाद, पांडिचेरी और नागपुर में चार ब्ल्यूएचओ-जीएमपी प्रमाणिन निर्माताओं के साथ टाइअप है। इसके अलावा कैंसर की दवाएं खरीदने के लिए हिमाचल प्रदेश के एक निर्माता से टाइअप किया जाएगा।
फार्मास्युटिकल इवेंट से आया बिजनेस का विचार
अर्जुन के माता पिता भी बिजनेस चलाते हैं, तो इन्हीं को मिले फंडिंग के आधार पर अर्जुन ने बिजनेस शुरू किया। आपको बता दें कि देशपांडे की मां एक फार्मास्यूटिकल मार्केंटिंग कंपनी की प्रमुख हैं। ये कंपनी विश्व भर के बाजार में ड्रग्स बेचती है। वहीं अर्जुन के पिता की ट्रैवल एजेंसी है। अर्जुन ने बताया कि जब वो अपनी मां के साथ अमेरिका, दुबई और दूसरे देशों में फार्मास्यूटिकल इवेंट में शामिल हुए। वे बताते हैं कि मां के साथ इन्हीं इवेंट में शामिल होने के बाद बिजनेस का आइडिया आया।
सरकार दवाओं के रेट में कंट्रोल करने का प्रयास कर रही है। गौरतलब हो कि देश में करीब 80 फीसदी दवाएं ऐसी बेची जाती हैं, जिन दवाओं को देश की 50000 से अधिक कंपनियां बनाती हैं। आपको बता दें कि ये सभी कंपनियां करीब 30 फीसदी मार्जिन चार्ज करती हैं, जो 30 प्रतिशत में 20 प्रतिशत व्यापारी का और 10 प्रतिशत रिटेलर का मार्जिन होता है।