रामायण सीरियल में काम करते वक़्त हर वक़्त लक्ष्मण को सताता रहा यह डर , 30 साल बाद किया खुलासा
रामानंद सागर के निर्देशन में बने टीवी सीरियल रामायण का नाम भारतीय टेलीविजन के इतिहास में सबसे सफल शोज की सूची में आता है। एक वक्त था जब रामायण का टीवी पर प्रसारण होता था, तो इसे देखने के लिए गलियों में एकदम सन्नाटा पसर जाया करता था। अपने-अपने घरों में हर कोई टीवी के आगे रामायण देखने के लिए बैठा नजर आता था। जिन घरों में उस दौरान टीवी नहीं हुआ करती थी, वे अपने पड़ोसियों के घर पहुंच जाते थे।
भगवान जैसा देते थे सम्मान
रामायण को तो बहुत सी महिलाएं चप्पल उतार कर देखा करती थीं। अपने सिर पर वे पल्लू डाल दिया करती थीं। कलाकारों को लोग उसी तरीके से सम्मान की नजरों से देखते थे और सम्मान देते थे जैसा कि वास्तविक जीवन में वे भगवान को दिया करते हैं।
लॉकडाउन में हुआ दोबारा प्रसारण
कोरोना संकट की वजह से जब देशभर में लॉकडाउन लगा दिया गया तो इस दौरान दूरदर्शन पर फिर से रामायण का प्रसारण किया गया। रामायण को एक बार फिर से वही लोकप्रियता देखने को मिली, जो कि नब्बे के दशक में नजर आ रही थी। रामायण की शूटिंग से जुड़े किस्से भी सोशल मीडिया में इन दिनों खूब लोकप्रिय होते जा रहे हैं। इसी क्रम में रामायण में लक्ष्मण की भूमिका निभाने वाले अभिनेता सुनील लहरी के साथ भी एक बातचीत आज तक चैनल पर सामने आई है। इस बातचीत के दौरान सुनहरी यादों में खोए हुए नजर आए लहरी ने बताया कि तब चीजें कैसी थीं। उन्हें अपनी शूटिंग के दौरान किस तरह की दिक्कतें हुई। इन सभी राज से उन्होंने पर्दा हटा दिया।
भाषा की समस्या
इस दौरान सुनील लहरी ने बताया कि शूट करने से पहले वे लोग बहुत रिहर्सल करते थे। हिंदी तब भी उतनी ही ज्यादा नहीं बोली जाती थी। फिर भी डायलॉग को याद करके वे सीन दिया करते थे। जैसे कोई हीरो तमिल भाषा को सीखे बिना ही उसके डायलॉग बोल देता है, उसी तरह का कुछ उस वक्त हो रहा था। धीरे-धीरे वे लोग आराम से शुद्ध हिंदी भी बोलने लगे। सुनील लहरी ने बताया कि फिर भी कुछ शब्द ऐसे जरूर थे, जिन्हें बोलने में दिक्कत होती थी। ये शब्द सीन में अटपटे न लगे, इसके लिए वे कई बार दोहराते हुए इनकी प्रैक्टिस किया करते थे। सबसे अधिक इस बात का उन्हें ध्यान रखना पड़ता था कि कोई उर्दू शब्द मुंह से न निकल जाए।
इतनी थी टीवी के लक्ष्मण की सैलरी
सुनील लहरी ने इस दौरान यह भी बताया कि एक पूरा शो उस दौर में कर लेने के बाद भी इस बात की कल्पना नहीं की जा सकती थी कि वे अपना घर बना लेंगे। सैलरी के सवाल पर उन्होंने बताया कि वे बस इतना ही कहेंगे कि पीनट्स मिलते थे। खर्चा भी तब आज के जमाने की तरह नहीं था। सीधे तौर पर सुनील ने नंबर से तो नहीं बताए कि कितने रुपए उन्हें मिल जाया करते थे, मगर उन्होंने यह जरूर कहा कि सैलरी तब बहुत कम हुआ करती थी।
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