अध्यात्म

गणेशजी से लेकर माँ दुर्गा तक सभी देवी-देवताओं को कितनी परिक्रमा देनी चाहिए? जाने इसका सही तरीका

जब भी जीवन में दुःख और परेशानियाँ बढ़ जाती हैं तो हम सभी भगवान की शरण में चले जाते हैं. कहा जाता हैं कि भगवान की पूजा पाठ करने से सभी दुःख दर्द ख़त्म हो जाते हैं. भगवान यदि भक्तों से प्रसन्न हो जाए तो उनके ऊपर दया दृष्टि अवश्य दिखाते हैं. यही वजह हैं कि लोग मंदिरों में जाते रहते हैं. जब भी किसी मंदिर में जाते हैं तो वहां हम कई लोगो को भगवान की परिक्रमा लगाते हुए भी देखते हैं. इस दौरान अक्सर लोगो के मन में यही सवाल उठता हैं कि हमे कितनी परिक्रमा लगानी चाहिए? इसका जवाब इस बात पर निर्भर करता हैं कि आप किस भगवान के दर्शन करने गए हैं. शास्त्रों के अनुसार हर भगवान के लिए अलग अलग संख्या में परिक्रमा दी जाती हैं.

परिक्रमा लगाने के लाभ

परिक्रमा को भगवान की प्रदक्षिणा भी कहा जाता हैं. पूजा पाठ के उपरान्त इसे लगाना अनिवार्य होता हैं. शास्त्रों की माने तो भगवान की परिक्रमा लगाने से पापों का नाश होता हैं. वहीं विज्ञान ये कहता हैं कि मंदिर में परिक्रमा लगाने से शारीरिक उर्जा का विकास होता हैं. ये परिक्रमा आपके अंदर एक पॉजिटिव उर्जा का संचार करती हैं. इससे आप उर्जावान और सकारात्मक महसूस करते हैं.

परिक्रमा लगाने का तरिका

जब भी आप भगवान की मूर्ति या मंदिर की परिक्रमा लगाए तो इसकी शुरुआत दाहिने हाथ से ही करे. इसकी वजह ये हैं कि इन मूर्तियों में उपस्थित पॉजिटिव एनर्जी उत्तर से दक्षिण की प्रवाहित होती हैं. इसलिए यदि आप बाएं हाथ से परिक्रमा करते हैं तो इस पॉजिटिव एनर्जी का हमारी बॉडी से टकराव हो जाता हैं. इस कारण हम परिक्रमा के लाभ से वंचित रह जाते हैं. बताते चले कि दाहिने का एक मतलब दक्षिण भी होता है. यही वजह हैं कि परिक्रमा को प्रदक्षिणा भी बोला जाता हैं.

कितनी बार लगाए परिक्रमा

आपको हर भगवान के हिसाब से अपनी परिक्रमा की संख्या तय करना चाहिए. जैसे सूर्यदेव को सात बार परिक्रमा दी जाती हैं. गणेशजी को चार बार जबकि हनुमानजी को तीन बार परिक्रमा देते हैं. वहीं भगवान विष्णु और उनके सभी अवतारों को चार बार परिक्रमा देने का नियम हैं. दुर्गा माँ को सिर्फ एक ही परिक्रमा देना चाहिए. शिवजी की बात करे तो इनकी आधी प्रदक्षिणा की जाती हैं. इसकी वजह ये हैं कि शिवलिंग की जलधारी को नहीं लांघना चाहिए. जब आप जलधारी तक पंहुच जाते हैं तो इस परिक्रमा को पूर्ण माना जाता हैं. आमतौर पर परिक्रमा मूर्ति या मंदिर में चारों ओर घूमकर लगाईं जाती हैं लेकिन कई बार कुछ मंदिरों में मूर्ति की पीठ और दीवार के मध्य परिक्रमा लगाने का स्थान नहीं रहता हैं. इस सिचुएशन में आप मूर्ति के सामने ही गोल घूमकर परिक्रमा लगा सकते हैं.

परिक्रमा के दौरान ये मंत्र जपे

जब भी आप परिक्रमा लगाए तो ‘यानि कानि च पापानि जन्मांतर कृतानि च। तानि सवार्णि नश्यन्तु प्रदक्षिणे पदे-पदे।।’ मंत्र का जाप करे. इसका मतलब हैं कि आपके द्वारा जाने अंजाने में इस जन्म और पूर्व जन्म में जो भी पाप हुए हैं वो परिक्रमा के साथ नष्ट हो जाए. भगवान आपको सद्बुद्धि दे.

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