शूर्पणखा ने इस कारण से दिया था भाई रावण को श्राप, रावण के कुल का हो गया था सर्वनाश
रावण के सीता हरण के पीछे शूर्पणखा का हाथ था, खत्म हो गई थी पूरी लंका
लॉकडाउन के चलते दूरदर्शन ने 33 साल बाद फिर से रामायण का प्रसारण शुरु कर दिया। इसको लेकर दर्शकों में काफी उत्साह भी है। आज के समय में इतने सारे टीवी शो आ जाने के बाद भी रामायण टीआरपी में सबसे आगे है। रामायण को लोग ना सिर्फ देखना बल्कि पढ़ना भी पसंद करते हैं। शो में कई बार कुछ कहानियां ऐसी भी होती हैं जो दिखाई नहीं जाती। वाल्मिकी द्वारा लिखी गई रामायण के बारे में बात करें तो सीता हरण, रावण वध, लंका दहन के अलावा और भी बहुत सी दिलचस्प कहानियों का उल्लेख किया गया है। इसमें से एक कहानी उस घटना से जुड़ी है जब शूर्पणखा के अपमान का बदला लेने के लिए रावण ने सीता का हरण कर लिया। इस घटना के पीछे एक श्राप छिपा था। आपको बताते हैं क्या थी वो घटना।
रावण को मिला था बहन से श्राप
रावण एक अंहकारी और ताकतवर राजा था। उसे सत्ता का इतना घमंड था की वो हर राज्य को जीतकर अपनी लंका में मिलाना चाहता था। उसने राजा कालकेय के राज्य पर भी अपनी दृष्टि डाली और उसे अपने में मिलाने के लिए युद्ध किया। राजा कालकेय का सेनापति विद्युतजिव्ह था। रावण को जब राज्य प्राप्त हो गया तो उसने कालकेय का वध कर दिया और सेनापति विद्युतजिव्ह का भी वध कर दिया। ऐसा माना जाता है कि शूर्पणखा और किसी नहीं बल्कि इसी विद्युतजिव्ह की ही पत्नी थी और उससे प्रेम करती थी।
इसके बाद भी रावण ने अपनी बहन के पति को नहीं छोड़ा और उसका वध कर दिया। जब शूर्पणखा को अपने पति के वध की खबर मिली तो वो भयंकर क्रोधित हो गई। वो दुख से विलाप करने लगी। उसे अपने भाई पर प्रचंड क्रोध आया और उसने श्राप दिया कि मेरे कारण ही तुम्हारा सर्वनाश होगा। इसी प्रण को मन में लिए शूर्पनखा ने सारा सच जानते हुए श्रीराम के सामने विवाह का प्रस्ताव रखा। जब उन्होंने मना कर दिया तो उसने सीता माता को मारने का प्रयास किया और क्रोधित होकर लक्ष्मण ने उसकी नाक काटी। इसके बाद शूर्पणखा रावण के पास गई और सारा दुख बताया। सीता हरण से शुरु हुई ये कहानी रावण के अंत के साथ ही खत्म हुई।
माता सीता से फिर मिली थी शूर्पणखा
शूर्पणखा को रावण की मृत्यु के बाद भी संतोष नहीं मिला। श्रीराम सीता माता और लक्ष्मण के साथ अयोध्या लौट आए। अयोध्या आने के बाद माता सीता की पवित्रता पर लोग सवाल उठाने लगे। इसके बाद सीता माता ने अपने गर्भ में बालक धारण किए महल छोड़ दिया और वन में आ गई। वहां पर वाल्मिकी उन्हें अपने साथ ले गए।
माता सीता एक घरेलू स्त्री की तरह सारे काम करती थीं और अपना जीवन व्यतीत करती थीं। एक दिन उनकी मुलाकात शूर्पणखा से हो गई। शूर्पणखा सीता मां को देखकर उनका उपहास उड़ाने लगी। वो चाहती थी की सीता दुखी हों। उन्हें प्रसन्न देखकर उसका मन खराब होने लगा। उसने सीता माता को बहुत कुछ सुनाया। सीता मां ने सब सुना और शूर्पणखा को समझाते हुए कहा कि रावण कुल का पूरा सर्वनाश हो गया, लेकिन तुम्हारे मन में अभी भी शांति नहीं आई। मेरे पति और देवर ने जो तुम्हारे साथ किया उन्होंने उसकी सजा भी भुगती। अब तुम भी उन्हें मन से माफ कर दो। शूर्पणखा ये बातें सुनकर रोने लगी और तब जाकर उसके मन का दुख कम हुआ।