अध्यात्म

सिर्फ ‘सीता हरण’ ही नहीं, बल्कि इस वजह से भी हुआ था रावण का वध, बहुत कम लोग जानते हैं यह बात

अगर आपसे पूछा जाए कि रावण का वध क्यों हुआ? तो आपका जवाब यही होगा कि उसने सीता का हरण किया, जिसकी वजह से उसका वध हुआ, लेकिन इसके पीछे कई अन्य कारण भी मौजूद हैं। दरअसल, रावण के वध के पीछे सीता हरण ही नहीं, बल्कि कई कारण है, जिनका जिक्र शास्त्रों में किया गया है। तो आज हम आपको बताएंगे कि रावण वध और किन किन कारणों की वजह से हुआ?

यह बात उस समय की है, जब भगवान शिव से रावण को वरदान मिला था और शक्तिशाली खड्ग पाने के बाद वह और अधिक अहंकारी हो गया था। आखिर में यही अहंकार उसके अंत का कारण बना। एक बार रावण पृथ्वी के भ्रमण करता हुआ हिमालय के जंगलों में गया। वहां उसे एक खूबसूरत कन्या दिखी, जो तपस्या में लीन थी। कन्या को तपस्या में लीन देख रावण का आतातायी राक्षस रूप जाग उठा और उसने उस कन्या की तपस्या को भंग करना चाहा।

रावण, उस रूपवती कन्या की तपस्या को भंग कर उसका परिचय जानना चाह रहा था। वह उस समय कामवासना से भरा हुआ था और और कुछ अचंभित करने वाले सवाल कर रहा था। इन सवालों को सुनकर उस कन्या ने अपना परिचय देते हुए रावण से कहा, हे राक्षस राज मेरा नाम वेदवती है। मैं परम तेजस्वी महर्षि कुशध्वज की पुत्री हूँ।

रावण की कहानी

वेदवती रावण से कहती हैं कि मेरे व्यस्क होने पर मुझसे देवता, गंधर्व, यक्ष, राक्षस, नाग सभी विवाह करना चाहते थे, किंतु मेरे पिता कुशध्वज की इच्छा थी कि मेरे पति स्वयं श्री विष्णु हों। मेरे पिता की वह इच्छा सुनकर शंभु नामक दैत्य क्रुद्ध से भर गया और उसने मेरे पिता की रात को सोते समय हत्या कर दी। उसके बाद मेरी माता ने पिता के वियोग में जलती चिता में कूदकर अपनी जान दे दी। इस वजह से अब मैं अपने पिता की इच्छापूर्ति के लिए तप में बैठी हूँ।

वेदवती ने रावण से आगे कहा कि मैं इस तप को पूरा करके अपने पिता की इच्छा को पूरी करूंगी। इतना ही नहीं, उस सुंदर स्त्री ने यह तक कह दिया कि मैं अपने तप के बल पर आपकी गलत इच्छा को पहचान गई हूँ। इतना सुनते ही अहंकारी रावण क्रोध से भर गया और अपने दोनों हाथों से उस कन्या के बाल पकड़कर अपनी ओर खींचने लगा। अपनी पीड़ा की वजह से वेदवती ने रावण को श्राप दे दिया।

वेदवती ने रावण को यह श्राप दे दिया कि तेरे वध के लिए मैं फिर से जन्म लूँंगी और इतना कहकर वह अग्नि में समा गई। रावण संहिता में यह उल्लेख मिलता है कि अपने दूसरे जन्म में वही तपस्वी सुंदर कन्या एक सुंदर कमल से उत्पन्न हुई और जिसकी संपूर्ण काया कमल के समान थी। इस जन्म में भी रावण फिर से उस कन्या का हरण करना चाहा और अपने बल के दम पर कन्या को अपने महल में ले गया। महल में उपस्थित ज्योतिषियों ने उस कन्या को देखा और रावण से कहा, अगर यह कन्या इस महल में रही तो अवश्य ही आपके मृत्यु का कारण बनेगी। यह बात सुनकर रावण ने उस कन्या को समुद्र में फेंकवा दिया।

तब वह कन्या पृथ्वी पर पहुँची और राजा जनक के हल जोते जाने पर उनकी पुत्री बनकर प्रकट हुई। शास्त्रों के अनुसार कन्या का यही रूप रावण के वध का कारण बनी।

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