अध्यात्म

इनके श्राप के कारण सीता माता से अलग हुए थे प्रभु श्री राम, नहीं जानते होंगे ये कहानी

बिना हनुमान की मदद के प्रभु श्रीराम अपनी पत्नी सीता तक कभी नहीं पहुंच पाते

रामायण जीवन की वो कथा है जो हमें सीखाती है कि हमें अपना जीवन किस तरह जीना चाहिए। कैसे धर्म और वचन जीवन में अनमोल होते हैं। रामायण में बहुत सी कहानियां हमें देखने को मिली जिससे हमने बहुत कुछ सीखा भी और समझा भी। हालांकि आप में से बहुत से लोगों के मन में रामायण में हुए कांड को लेकर कई तरह की आशंका भी होगी। आपको बता दें कि आपने रामायण की जो भी कहानी पढ़ी या देखी उन सभी के पीछे कई और कहानियां जुड़ी थी। जैसे लोगों के मन में ये सवाल उठता है कि श्रीराम कर्तव्य निष्ठ थे और माता सीता एक पतिव्रता थीं फिर इन दोनों को एक दूसरे का वियोग क्यों सहना पड़ा। भगवान होकर भी वो एक दूसरे से इतने दूर कैसे रहे? आपके इस सवाल का जवाब एक कहानी में छिपा है जिसके बारे में शायद आप नहीं जानते होंगे।

नारद मुनि को हो गया था अंहकार

प्रभु श्रीराम को माता सीता से वियोग एक श्राप के कारण सहना पड़ा था। एक बार की बात है। नारद मुनि को अपने ब्रह्मचर्य पर घमंड हो गया। नारद मुनि को इस बात का घमंड था कि उनका ब्रह्मचर्य इतना ताकतवर है की स्वयं कामदेव भी उन्हें नहीं हरा पाए। अपने इस घमंड के साथ सबसे पहले वो महादेव के पास गए और अपनी बड़ाई करते हुए कहा कि मुझे तो कामदेव भी हरा नहीं सकते। महादेव उनका अंहकार समझ गए और उन्हें चेताया कि ये मुझसे तो कह दिया, लेकिन विष्णु भगवान के सामने ये बात ना कहना।

नारद मुनि अंहकार में चूर थे उन्होंने महादेव की इस बात पर ध्यान नहीं दिया और विष्णु भगवान के सामने जा पहुंचे। उन्होंने फिर से एक बार अपना गुणगान शुरु किया। विष्णु भगवान उनके अंहकार को समझ गए और उनका ये भ्रम तोड़ने के लिए एक माया रची। नारद मुनि जब विष्णु भगवान से मिलकर लौटने लगे तो उन्हें रास्ते में एक सुंदर महल दिखाई दिया।

राजकुमारी पर मोहित हो गए नारद मुनि

उस महल में विष्णुमोहिनी नाम की राजकुमारी के स्वयंवर की तैयारी चल रही थी। नारद मुनि की नजर जब राजकुमारी पर पड़ी तो उसे देखकर वो चकित रह गए। उसका सुंदर मुख देखकर नारद मुनि उस पर मोहित हो गए और उन्होंने उस राजकुमारी से विवाह का मन बना लिया। स्वयंवर में हिस्सा लेने के लिए उन्होंने सोचा की क्यों ना सबसे सुंदर चेहरा धारण कर लें।

अपनी ये इच्छा लेकर नारद मुनि विष्णु भगवान के पास पहुंचे और उनसे आग्रह करते हुए कहा- प्रभु मुझे हरि रुप दे दीजिए। इस पर भगवान विष्णु ने उनसे कहा कि हे नारद! मैं तुम्हें हरि का रुप दे तो दूं, लेकिन कहीं ऐसा ना हो कि तुम इस रुप को लेकर पछताओ। दरअसल नारद मुनि उस वक्त इस बात से अज्ञान थे की हरि का एक रुप वानर भी होता है।

फिर नारद मुनि के कहने पर भगवान विष्णु ने उन्हें हरि यानि कि वानर रुप दे दिया। नारद मुनि अपने मुख को देखे बिना स्वयंवर में पहुंच गए। उन्हें अंदर अंदर ही इस बात की खुशी थी कि उनका मुख देखते ही राजकुमारी उन्हें ही वरमाला पहना देंगी। जब राजकुमारी विष्णुमोहिनी सभा में वरमाला लेकर पहुंची तो सभी राजकुमार स्वयंवर के लिए खड़े हो गए। जब नारद मुनि के सामने विष्णुमोहनी पहुंची तो उनका बंदर का रुप देखकर उनकी हंसी छूट गई। जब सब हंसने लगे तो नारद मुनि को समझ नहीं आया की ऐसा क्यों हो रहा है।

इस श्राप के कारण अलग हुए थे श्रीराम-सीता

इसके बाद भगवान विष्णु जैसे ही पधारे विष्णुमोहिनी ने उन्हें वरमाला पहना दिया। नारद मुनि को बहुत अचंभा हुआ। उन्होंने तुरंत अपना चेहरा पानी में देखा। पानी में बंदर का चेहरा देख नारद मुनि क्रोधित हो उठे। उन्होंने भगवान विष्णु को श्राप दे दिया कि जिस तरह मैं अपनी स्त्री के लिए तड़पा हूं वैसे ही धरती पर आप को भी अपनी पत्नी का वियोग सहना होगा। तब आपको एक बंदर की ही मदद लेनी पड़ेगी और उसकी मदद से ही आप अपनी पत्नी से मिल पाएंगे।

जब विष्णु भगवान की माया खत्म हुई तो नारद मुनि का क्रोध समाप्त हो गया। उन्हें अपनी गलती का एहसास हुआ। उन्होंने तुरंत भगवान विष्णु से माफी मांगी। इसके बाद जब धरती पर भगवान विष्णु ने प्रभुश्रीराम के रुप में जन्म लिया और सीता माता से नारद मुनि के श्राप के कारण ही उन्हें अलग होना पड़ा और हनुमान जी की मदद के बाद ही वो सीता माता से दोबारा मिल पाए।

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