महाभारत: किसने किया था ‘मैं समय हूं’ का किरदार? तीसरी रिकॉर्डिंग में फाइनल हुई थी आवाज
इस बात में कोई शक नहीं है कि लॉकडाउन ने 80 के दशक की यादों को ताज़ा कर दिया है. बड़े-बुजुर्गों से अब तक हम जिन चीजों के बारे में केवल सुना करते थे, इस लॉकडाउन की वजह से अब देखने को भी मिल रही हैं. रामानंद सागर की ‘रामायण’ हो या बीआर चोपड़ा की ‘महाभारत’, उस दौर में सब इसे देखने के लिए टीवी के सामने हाथ जोड़कर बैठ जाया करते थे. पर आज के इस लेख में हम बात करेंगे ‘महाभारत’ की. दूरदर्शन पर एक बार फिर से इस धारावाहिक का प्रसारण हो रहा है. जैसे ही कार्यक्रम शुरू होता है महेंद्र कपूर की आवाज में ‘महाभारत कथा’ वाले टाइटल गीत के बाद ही ‘समय’ की आवाज सुनाई देती है. अंधेरी सी स्क्रीन पर सबसे पहले आने वाली लाइन होती थी- मैं समय हूं. ये लाइन हर किसी के जुबां पर चढ़ी होती थी. हर कोई यह जानने को बेताब रहता था कि आखिर इस दमदार आवाज के पीछे कौन है.
हरीश भिमानी ने दी आवाज
अगर आपके मन में भी कभी ये सवाल आया है तो बता दें इस आवाज को देने वाले हरीश भिमानी थे. समय को अपनी आवाज देने वाले हरीश भिमानी का नाम दिग्गज वायस ओवर कलाकरों में शामिल होता है. लोग इस आवाज के कायल हो गए थे. बताया जाता है कि सूत्रधार के लिए पहले दिलीप कुमार का नाम फाइनल किया गया था. दिलीप कुमार का नाम इसलिए क्योंकि वह चोपड़ा कैम्प के काफी करीबी माने जाते थे. लेकिन बाद में तय हुआ कि इस काम के लिए किसी प्रोफेशनल वायस ओवर आर्टिस्ट को ही लिया जाएगा. ऐसे में एक ऑडिशन रखा गया, जहां कई सफल आर्टिस्ट की आवाज सुनने के बाद बीआर चोपड़ा, राही मासूम रजा और पंडित नरेंद्र शर्मा ने हरीश भिमानी के नाम को फाइनल किया.
‘शकुनी’ का आया था फोन
हरीश ने बताया कि उनके पास गुफी पेंटल (शकुनी का किरदार निभाने वाले), जो कि महाभारत के कास्टिंग डायरेक्टर भी थे, का फोन आया और उन्होंने रात को 10 बजे उन्हें बीआर स्टूडियो पहुंचने को कहा. हरीश ने उनसे कहा ‘गूफी जी मैं सात बजे के बाद रिकॉर्डिंग नहीं करता. मेरी आवाज थक जाती है”. इस पर पेंटल ने कहा, “तू नखरे ना कर, बस सीधे आजा”.
पहले पसंद नहीं आया वीओ
एक इंटरव्यू में हरीश ने बताया कि, “एक शाम मुझे बीआर के मेन स्टूडियो में जाने के लिए गूफी पेंटल का फोन आया. मैंने काम के बारे में पूछा तो उन्होंने बताया नहीं. आमतौर पर हमारे व्यवसाय में यह बताया नहीं जाता कि क्या रिकॉर्ड होने वाला है. लोगों के सामने आने तक इसे सीक्रेट रखा जाता है”.
बात जारी रखते हुए उन्होंने आगे कहा, “वहां जाने पर मुझे एक कागज़ दिया गया, जिसे मैंने पढ़ना शुरू किया. उसे पूरा करने से पहले ही उन्हें वह डॉक्यूमेंट्री जैसा लगने लगा. मैंने पूछा- ‘तो और ये क्या है?’. उन्होंने फिर नहीं बताया, मैंने फिर से किया. मुझे लगा कि वो मेरे काम से संतुष्ट नहीं हैं. दो-तीन दिन बाद मुझे दोबारा कॉल आई. मैं दोबारा स्टूडियो पहुंचा”.
हरीश ने आगे बताया, “इसके बाद जाकर उन्होंने मुझे सब समझाया. इस बार उन्होंने बताया कि कैसे आवाज देनी है. तीसरी बार रिकॉर्डिंग होने पर मैंने एक सुझाव दिया. आप लोग कह रहे हैं कि मैं आवाज बदलकर रिकॉर्डिंग करूं, लेकिन अगर मैं आवाज बदल लूंगा तो वह मजाकिया हो जायेगी और गंभीरता खत्म हो जायेगी. फिर मैंने सुझाव दिया कि इसका टैम्पो बदल दिया जाए और आकाशवाणी के बीच का कुछ किया जाए. फिर मैंने वैसे ही बोलना शुरू कर दिया कि मैं समय हूं…बस फिर उसे वह फाइनल हो गया”.
राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार विनर
बता दें, मराठी डॉक्यू-फीचर ‘माला लाज वाटत नाही’, जिसका हिंदी में अर्थ है ‘मुझे शर्म नहीं आती’ में हरीश भिमानी ने वायस ओवर किया था और इसके लिए वह सर्वश्रेष्ठ वीओ के लिए राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार से सम्मानित हुए थे.
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