महाभारत काल के ये 5 लोग आज भी हैं जिंदा, कहलाते हैं यह चिरंजीवी
भारत वर्ष का सबसे बड़ा युद्ध जिसे महाभारत के नाम से भी जाना जाता है। महाभारत का युद्ध पांडवों और कौरवों के मध्य हुआ। इस युद्ध में कई बड़े बड़े योद्धा मारे गए। जबकि इस युद्ध के अंत में कई योद्धा ऐसे थे, जो बच गए। इनमें से 18 लोग प्रमुख थे। इन 18 में से 15 योद्धा पाडंवों के ओर से और सिर्फ 3 योद्धा कौरवों की ओर से बच गए। कौरवों की ओर से युद्ध करने वाले तीन योद्धाओं में से, कृतवर्मा, कृपाचार्य और अश्वत्थामा थे। जबकि पांडवों की ओर से, युयुत्सु, युधिष्ठिर, भीम, अर्जुन, नकुल, सहदेव,श्रीकृष्ण, सात्यकि आदि थे। लेकिन आज हम बताने जा रहे हैं, पांच ऐसे लोगों के बारे में, जो महाभारत काल में भी थे और आज भी मौजूद हैं। जी हां, आज भी मौजूद हैं। तो आइये जानते हैं, आखिर कौन हैं, वो पांच महान लोग।
1.महर्षि वेद व्यास– महर्षि वेद व्यास का नाम कृष्म द्वैपायन था। वे ऋषि पराशर और सत्यवती के पुत्र थे। उनका नाम वेदव्यास इसलिए पड़ा क्योंकि उन्होंने वेदों का भाग किया था। वेद व्यास ने महाभारत भगवान श्रीगणेश से लिखवाई थी। धृतराष्ट्र, पांडु और विदुर ऋषि वेद व्यास के ही पुत्र थे। इन्हीं तीन पुत्रों में से जब धृतराष्ट्र के घर कोई पुत्र नहीं हुआ तो, वेद व्यास के आशीर्वाद से 99 पुत्र और 1 पुत्री हुई। ऐसी मान्यता है कि वेद व्यास इस युग यानि कलि काल के अंत तक जीवित रहेंगे। माना जाता है कि वेदव्यास ने महाभारत के युद्ध के बाद कई दिनों तक सार्वजनिक जीवन व्यतीत किया। लेकिन इसके बाद वे तप और ध्यान के लिए हिमालय की चोटी पर पहुँच गए।
हालांकि कलियुग के शुरू होने के बाद इनके बारे में कोई ठोस जानकारी नहीं मिलती है। लेकिन ऐसा कहा जाता है कि प्रथम जातक कथा में उन्हें बोधिसत्व के नाम से जाना गया है। जबकि दूसरे जातक कथा में उन्हें महाभारत के रचियता के रूप में मान गया।
2. महर्षि परशुराम- परशुराम का जीवन काल रामायण के युग से ही माना जाता है। परशुराम, जमदग्नि और रेणुका के पुत्र थे। रामायण में उका उल्लेख मिलता है जब भगवान राम, सीता स्वंयवर में शिव धनुष पर प्रत्यंचा चढ़ाते हैं और वो टूट जाता है। तभी परशुराम सभा में आते हैं और ये देखते हैं कि भगवान शिव के धनुष को किसने तोड़ा। जबकि महाभारत में भी कई बार परशुराम का उल्लेख है। महाभारत में पहली बार उनका उल्लेख तब होता है, जब वे भीष्म पीतामह के गुरू बनते हैं। और महाभारत में एक प्रसंग भी है, जिसके अनुसार भीष्म और परशुराम का युद्ध भी हुआ था। महाभारत में दूसरी बार उनका उल्लेख तब मिलता है, जब वो भगवान श्रीकृष्ण को सूदर्शन चक्र देते हैं। और तीसरी बार, सूर्यपुत्र कर्ण को ब्रह्मास्त्र की शिक्षा देते हैं।
ऐसा माना जाता है कि परशुराम चिरंजीवी हैं। परशुराम ने कठिन तप कर, विष्णु से ये वरदान प्राप्त किया है कि वे कल्प के अंत तक तपस्यारत भूलोक पर रहेंगे।
3. ऋषि दुर्वासा- ऋषि दुर्वासा महाभारत में द्रौपदी के कुटिया में अपने दस हजार शिष्यों के साथ पहुँचे थे। इसके अलावा उन्होंने एक बार कृष्ण पुत्र साम्ब को श्राप दिया था। महाभारत काल में उनकी कई जगह चर्चा की गई है। उन्हें भी अमर होने का वरदान प्राप्त है। ऋषि दुर्वासा भी चिरंजीवी हैं।
4. जामवन्त- जामवन्त की उम्र हनुमान और परशुराम से भी अधिक है। जामवंत त्रेतायुग में श्रीराम के साथ थे। जबकि द्वापर युग में श्रीकृष्ण के ससुर बने। क्योंकि उनकी बेटी जाम्बवती, श्रीकृष्ण की पत्नी थी। दरअसल श्रीकृष्ण को स्यमंतक मणि के लिए जामवन्त से युद्ध करना पड़ा था। उस समय श्रीकृष्ण युद्ध जीत रहे थे तो जामवंत ने अपने प्रभु श्रीराम को पुकारा। और फिर जामवंत की पुकार सुनकर श्रीकृष्ण को अपने राम रूप में आना पड़ा। तब जामवंत ने अपनी भूल स्वीकार की और श्रीकृष्ण से माफी मांगी। और स्यमंतक मणि दे दी। और उनसे आग्रह किया कि मेरी पुत्री जाम्बवती से विवाह करें। इन्हीं दोनों के पुत्र का नाम साम्ब था। जामवंत को अपने प्रभु राम से वरदान प्राप्त है। वो हमेशा चीरंजीवी रहेंगे। वे कल्कि अवतार के समय उनके साथ रहेंगे।
5. हनुमान- हनुमान की बल और बुद्धि का यश तो चारों दिशाओं में फैला है। वे प्रभु श्रीराम के सबसे बड़े भक्त थे। और रावण की सेना को पराजित करने में उनकी बड़ी भूमिका थी। वे द्वापर युग में श्रीकृष्ण के साथ भी थे। कौरवों के साथ पांडवों की जीत में हनुमान जी का अहम योगदान था। हनुमान ने, अर्जुन और कृष्ण को उनकी रक्षा का वचन दिया था। हनुमान भी चीरंजीवी हैं। उन्हें भी अपने भगवान राम का वरदान प्राप्त है।