अगर आप जीवन में हमेशा खुश रहना चाहते हैं तो छोड़ दें अपनी ये आदतें!
बहुत समय पहले की बात है। किसी राज्य में एक बहुत ही धार्मिक विचारों वाले राजा रहा करते थे। एक दिन एक संत उस राजा से मिलने आये। राजा को इस बात से काफी खुशी हुई और आंखों में प्रसन्नता के आंसू लेकर राजा भाव विभोर होकर बोला, “आज मैं चाहता हूं कि आपकी कोई भी इच्छा पूरी करूं”। राजा ने संत से पूछा की बताइये आपको क्या चाहिए?
राजा केवल संरक्षक होता है राज्य का:
संत असमंजस में पड़ गए, उन्होंने सोचा कि क्या मांगा जाए। अंत में उन्होंने राजा से कहा कि आप अपने मन से जो भी देंगे मैं उसे खुशी-खुशी स्वीकार कर लूंगा। राजा यह बात सुनकर कुछ पल के लिए सोच में पड़ गया और फिर संत के सामने अपने राज्य को समर्पित करने की इच्छा जाहिर की। यह बात सुनकर संत ने राजा से कहा कि. “राज्य तो जनता का है, राजा तो केवल राज्य का संरक्षक होता है”।
शरीर पर पत्नी और बच्चों का है अधिकार:
यह सुनकर राजा दूसरे विकल्प के बारे में सोचने लगा और बोला तब मैं आपको अपना राजमहल और अपनी सवारी दे दूंगा। यह बात सुनकर भी संत ने कहा कि यह सब भी जनता का ही है। यह तो केवल आपके राज-काज चलाने की सुविधा के लिए है। इसके बाद राजा के पास कोई और चारा नहीं था। उसने तीसरे विकल्प के रूप में अपने शरीर को त्यागने की बात कही। यह सुनकर संत ने कहा नहीं राजन यह भी आपका नहीं है। आपके शरीर पर आपके पत्नी और बच्चों का अधिकार है। आप इसे कैसे दान कर सकते हैं?
बहुत जरूरी है अहंकार का त्याग करना:
राजा यह सब सुनकर परेशान हो गया। उसकी परेशानी को समझते हुए संत ने कहा कि राजन आपको कुछ भी त्यागने की जरूरत नहीं है। बस आप अपने अहंकार का त्याग कर दीजिये। अहंकार से बढ़कर सख्त बंधन और कोई नहीं है। यह बात सुनकर राजा की आंखें खुल गईं।
उसने अगली सुबह के साथ ही अपने अहंकार को छोड़कर प्रजा की सेवा करने का निर्णय लिया। इसके बाद ही राजा को शांति मिल गई। इसका मतलब यह है कि जब तक किसी भी व्यक्ति के अन्दर अहंकार रहता है, वह कुछ भी नहीं कर सकता है। इसलिए अहंकार का त्याग करना बहुत ही जरूरी है।