श्री रामकृष्ण परमहंस के शिष्य योगानंद जी की स्वर्ण आध्यात्मिक प्रथा
स्वामी योगानंद का इतिहास बेहद ही सीमित है। उनकी जिंदगी बहुत छोटी थी
श्री रामकृष्ण (Ramakrishna Paramhansa) के हर शिष्यों के जीवन की कहानी आसानी से मिल सकती है, लेकिन स्वामी योगानंद (Swami Yogananda) का इतिहास बेहद ही सीमित है। उनकी जिंदगी बहुत छोटी थी ।
स्वामी योगानंद का जन्म 30 मार्च 1861 को दक्षिणेश्वर में एक कुलीन परिवार में जोगिंद्रनाथ राय चौधरी के रुप में हुआ था। उनके पिता नवीनचंद्र राय चौधरी एक धर्मनिष्ठ ब्राह्मण थे जो आध्यात्मिक कामों में अपना लंबा समय बिताते थे। उन्होंने कभी भी अपने पैसे रुपए का बहुत ख्याल नहीं रखा और इसलिए बहुत जल्द ये सब उनसे दूर भी हो गया।
सुनहरे बंगाल का काला युग
स्वामी योगानंद
नवीनचंद्र राय चौधरी का परिवार सवर्ण राय चौधरी के परिवार से ताल्लुक रखते थे, वो परिवार जो कभी कोलकाता और उसके आसपास के महानगर का मालिक हुआ करता था, उस परिवार के बारे में श्री रामकृष्ण ऊंचे शब्दों में बताते थे। योगानंद के परिवार के इतिहास बारे में लोगों को बताने के हमें एक युग तक पीछे जाना होगा। ईसाई कार्यकाल के दसवीं सदी का बंगाल। महान सम्राट ससांका (जो की राजा हर्षवर्धन के समकालीन थे) का वो सुनहरा बंगाल जिसे इतिहास में कई बार दोहराया गया, उसका अब अस्तित्व ही खत्म हो चुका है।
उस वक्त बंगाल की स्थिति को सिर्फ एक खास शब्दे से ही समझाया जा सकता था और वो शब्द था मतस्यनन्या या मछली का नियम। उस काले युग ने भूमि के समाजिक-राजनीतिक और आर्थिक स्थिति का बिल्कुल नाश कर दिया। बंगाल में बाहर की पूजा और नए विकसित तांत्रिक संप्रदाय वैदिक धर्म- सनातन धर्म को भ्रष्ट कर रहे थे।
बंगाल पर किसी एक का शासन ना होने के कारण बंगाल की अपने पड़ोसी राज्यों से लड़ाई होने लगी। इतिहास के उस दौर में बंगाल के वाइसराय के रुए मे सामने आए अदिसुरा, जो कन्नौज में राज्य करने वाले संप्रभु के परिवार के सदस्य भी थे। बंगाल आने के बाद उन्होंने पाया की कुछ सत-सत परिवार वैदिक पूजा से अज्ञात थे। वो ब्राह्मिन जो अपने निवासियों को अध्यात्मवाद की बात सिखाते थे खुद वैदिक ज्ञान पाना चाहते थे।
कैसे शुरु हुआ बंगाल में सनातन ब्रह्मान्यधर्म
इस अज्ञानता को दूर करने के लिए और सनातन ब्रह्मान्यधर्म को बंगाल में फिर से स्थापित करने के लिए अदिसुरा ने कन्नौज से 5 ब्राहमण बुलवाएं जिन्हें वेद का ज्ञान था और साथ ही कुछ पढे लिखे परिचारक भी आए। ये ब्राह्मण बेहद ही गोरे, कट्टरवादी, युद्ध् जैसे खूबसूरत पुरुष थे जिनमें शुद्ध आर्यन के गुण नजर आ रहे थे और उनके साथ आए परिचारक जो भले ही नौकरों की तरह उनका काम कर रहे थे किसी मामले में उनसे कम नहीं दिख रहे थे।
स्वामी योगानंद (Swami Yogananda) वेदगर्भ के वंशज थे
ये लोग और उनकी संताने और फिर उनकी संताने लंबे समय के लिए बंगाल में बस गए जिससे की वो वहां के लोगों को पूजा पाठ और शिक्षा दे सकें। ये उनके ही पूर्वज थे जिन्होंने बंगाल में उच्च ब्राह्मण और कायस्थ को बहुसंख्यक बनाया। स्वामी योगानंद (Swami Yogananda) वेदगर्भ के वंशज थे, उन पांच ब्रहाम्णों में से एक जो अदिसुरा द्वारा बंगाल लाए गए थे। वेदगर्भ के वंशज गांगोपध्याय गांगुली के रुप में भी जानते हैं वो गंगा के किनारे और अजय नदी के किनारे जो की कटवा के पास है वहां उसे अपनी जागीर समझ कर रहने लगे थे। अगले 6 दशकों तक इन लोगों ने शिक्षाविदों का रोल निभाया। इस तरह से उन की आध्यात्मिक यात्रा शुरू हुई थी