आज है रवि प्रदोष व्रत, ये व्रत करने से मिलता है निरोगी शरीर, जानिए पूजन विधि, मंत्र एवं मुहूर्त
आज यानी 5 अप्रैल को रवि प्रदोष व्रत है और इस व्रत को शास्त्रों में बेहद ही खास बताया गया है। रवि प्रदोष के दौरान शिव जी की पूजा की जाती है और व्रत रखा जाता है। शिव जी के साथ ही इस दिन सूर्य देव की पूजा भी की जाती है। शास्त्रों के अनुसार इस दिन व्रत रखने से और शिव और सूर्य की पूजा करने से व्यक्ति का शरीर स्वस्थ रहता है और उसकी रक्षा रोगों से होती है। इसलिए आप भी इस व्रत को जरूर रखें। इस व्रत को करने से आपका जीवन सुखों के साथ यापन हो जाएगा।
रवि प्रदोष व्रत की पूजन विधि :-
पूजन सामग्री – कलश, बेलपत्र, धतूरा, भांग, दीपक,फूल दूध, जल, सफेद मिठाई, सफेद चंदन, चीनी, दही, गंगा जल, शहद और धूप
इस तरह से करें पूजा
सुबह आप शिव जी के मंदिर जाकर शिव जी को सबसे पहले कलश से जल चढ़ाएं। जल चढ़ाने के बाद शिव जी का अभिषेक करें। अभिषेक के लिए आप उनपर दूध, चीनी, शहद, घी, दही,गंगा जल चढाएं। इन चीजों को अच्छे से शिवलिंग पर लगाएं। ये चीजें शिवलिंग पर चढ़ाने के बाद फिर से शिवलिंग पर जल डालें और शिवलिंग को अच्छे से साफ कर दें।
अब शिवलिंग पर चंदन का तिलक लगाएं और उनको बेलपत्र, धतूरा, भांग और फूल अर्पित करें। ये चीजें अर्पित करते समय मंत्र ‘ॐ नम: शिवाय’ का जाप करें। इसके बाद शवलिंग के सामने घी का दीपक और धूप जला दें। सुबह पूजा करने के बाद सूर्यास्त के पश्चात पुन: स्नान करके फिर से मंदिर जाएं और शिव का षोडषोपचार पूजन करें।
शाम को रवि प्रदोष व्रत की पूजा 5 से 7.00 बजे के बीच करें। शाम को पूजा करते समय मंदिर में आठों दिशाओं में 8 दीपक भी जरूर जलाएं। शिव के अलावा पार्वती और नंदकेश्वर की भी प्रार्थना करें।
दे सूर्य भगवान को अर्घ्य
सुबह सूर्य भगवान को अर्घ्य भी जरूर दें। सूर्य देव को अर्घ्य देने के लिए एक कलश के अंदर जल भर दें और इसके अंदर चावल और लाल रंग का फूल डाल दें। इस पानी से अर्घ्य दें और सूर्य देव के नाम का जाप करें।
कैसे करें व्रत
इस दिन अगर आप व्रत रखते हैं तो केवल फल और दूध का ही सेवन करें और दिन में केवल एक बार ही इन चीजों को खाएं।
रवि प्रदोष व्रत के मंत्र-
‘ॐ नम: शिवाय’ या ‘शिवाय नम:’ मंत्र का जाप इन दिन जरूर करें और इन मंत्रों को कम से कम 108 बार पढ़ें। साथ में ही पूजा पूरी करने के बाद नीचे दी गई शिव जी की आरती भी गाएं।
जय शिव ओंकारा ॐ जय शिव ओंकारा ।
ब्रह्मा विष्णु सदा शिव अर्द्धांगी धारा ॥ ॐ जय शिव…॥
एकानन चतुरानन पंचानन राजे ।
हंसानन गरुड़ासन वृषवाहन साजे ॥ ॐ जय शिव…॥
दो भुज चार चतुर्भुज दस भुज अति सोहे।
त्रिगुण रूपनिरखता त्रिभुवन जन मोहे ॥ ॐ जय शिव…॥
अक्षमाला बनमाला रुण्डमाला धारी ।
चंदन मृगमद सोहै भाले शशिधारी ॥ ॐ जय शिव…॥
श्वेताम्बर पीताम्बर बाघम्बर अंगे ।
सनकादिक गरुणादिक भूतादिक संगे ॥ ॐ जय शिव…॥
कर के मध्य कमंडलु चक्र त्रिशूल धर्ता ।
जगकर्ता जगभर्ता जगसंहारकर्ता ॥ ॐ जय शिव…॥
ब्रह्मा विष्णु सदाशिव जानत अविवेका ।
प्रणवाक्षर मध्ये ये तीनों एका ॥ ॐ जय शिव…॥
काशी में विश्वनाथ विराजत नन्दी ब्रह्मचारी ।
नित उठि भोग लगावत महिमा अति भारी ॥ ॐ जय शिव…॥
त्रिगुण शिवजीकी आरती जो कोई नर गावे ।
कहत शिवानन्द स्वामी मनवांछित फल पावे ॥ ॐ जय शिव…॥