115 साल बाद खोले गए किले के 3 कमरे, इतने बड़े खजाने के साथ जो मिला वो सब से ख़ास था
धौलपुर में 115 साल बाद जब महाराणा स्कूल के बंद कमरे खोले गए तो हर किसी के होश उड़ गए। किसी ने भी कल्पना नहीं की थी कि इन कमरों में कुछ होगा। लेकिन जब ये कमरे खोले गए तो इन कमरों से किताबों का खजाना निकला और ये किताबें 115 साल से भी अधिक पुरानी है। महाराणा स्कूल के इन कमरों में कड़ाब भरा होगा ये सोचकर इन कमरों को 115 साल खोला नहीं गया था। हालांंकि कुछ ही दिन पहले इन कमरों को खोलने का फैसला लिया गया और जब महाराणा स्कूल के ये कमरे खोले गए तो हर कोई हैरान हो गया। इन कमरों मे भारत की परंपरा से जुड़ी कई सारी किताबें मिली।
एक लाख से अधिक हैं किताबें
इन कमरों के अंदर किताबों का भंडार मौजूद था। जब इन कमरों को खोला गया तो करीब एक लाख किताबें मिली। ये किताबें 115 सालों से इन कमरों में बंद थी। इन तीन कमरों में पाई गई ये किताबें साल 1905 से पहले की हैं। यानी इतिहास से जुड़ी कई प्रकार की जानकारी इन किताबों में मौजूद है।
महाराजा उदयभान सिंह को था किताबों का शौक
दरअसल महाराजा उदयभान सिंह के किले को स्कूल बनाया गया है और महाराजा उदयभान सिंह को किताब पढ़ने का काफी शौक हुआ करता है। कहा जा रहा है कि ये किताबें महाराजा उदयभान सिंह की हैं। महाराजा उदयभान सिंह जब भी विदेश की यात्रा में जाया करते थे तो वहां से किताब जरूर खरीदा करते हैं और इस तरह से इन्होंने करीब एक लाख किताबे जमा की थी। महाराजा उदयभान सिंह दुलर्भ पुस्तकों के शौकीन थे।
सोने के पानी से लिखी गई हैं ये किताबे
कमरे के अंदर से मिली कई किताबें ऐसी भी हैं जिनको स्याही की जगह सोने के पानी से लिखा गया है। इस चीज से आप ये अंदाजा लगा सकते हैं कि ये किताबे कितनी महंगी होंगी। क्योंकि उस समय सोने की कीमत 27 रुपये तोला थी। वहीं सोने के पानी से लिखी गई इन किताबों को अगर आज बाजार में बेचा जाए तो इनकी कीमत लाखों में है।
3 फीट लंबी है किताब
1905 में इन किताबों की कीमत 25 से 65 रुपए के बीच हुआ करती थी। ये सभी किताब भारत, लंदन और यूरोप में छापी गई है। वहीं इन किताबों में देशों की रियासतों के नक्शे भी छपे हैं। इतना ही नहीं एक किताब में पूरी दुनिया का नक्शा भी है। ये किताब 3 फीट लंबी है। इन किताबों को इतिहास का खजाना बताया जाता है। इन किताबों में भारत सरकार द्वारा मुद्रित, वेस्टर्न-तिब्बत एंड ब्रिटिश बॉडर्र लेंड, सेकड कंट्री ऑफ हिंदू एंड बुद्धिश 1906, अरबी, फारसी, उर्दू और हिंदी में लिखित पांडुलिपियां हैं।
किसकी की भी नहीं गई नजर
इस स्कूल के ये कमरे कई सालों से बंद रहे। लेकिन किसी ने भी इन कमरों को खोलने का नहीं सोचा। मगर हाल ही में जब कबाड़ साफ करवाने के लिए इन कमरों को खुला गया तो हर कोई हैरान रहे गया। क्योंकि ये किताबें लाखों की कीमत की हैं। इस स्कूल के प्रधानाचार्य रमाकांत शर्मा का कहना है कि हम रैक बनवाकर कुछ दुलर्भ पुस्तकों को यहां छात्रों को दिखाएंगे। इन किताबों से छात्रों को बहुत अहम जानकारी मिलेगी।