स्नान करते समय रखें इन बातों का विशेष ध्यान, इस तरह से स्नान करने पर बरसती है लक्ष्मी की कृपा!
स्नान करना हर व्यक्ति को पसंद है। स्नान करने का अपना अध्यात्मिक महत्व भी होता है। बिना स्नान किये इंसान अशुद्ध रहता है। स्नान करने से तन ही नहीं मन भी शुद्ध हो जाता है। कुछ लोगों के मुंह से रात को सोते समय लार निकलती है। इस वजह से अगले दिन वह पूरी तरह से अशुद्ध हो जाते हैं। ऐसे लोगों को उठते ही प्रातः काल स्नान कर लेना चाहिए। आज के समय में लोग खाना खाकर स्नान करने जाते हैं, यह शास्त्रों के हिसाब से बिल्कुल भी ठीक नहीं है। स्नान करने की एक विधि है, जो बहुत कम लोग अपनाते हैं।
नहाते समय सबसे पहले सिर पर गिरायें जल:
स्नान करते समय पानी सबसे पहले सिर पर डालना चाहिए, उसके बाद ही पूरे शरीर पर पानी गिराना चाहिए। इसके पीछे अध्यात्मिक ही नहीं वैज्ञानिक कारण भी हैं। ऐसे नहाने से सिर और शरीर के ऊपरी हिस्से में जो गर्मी होती है, वह पैरों से होते हुए बाहर निकल जाती है। प्रतिदिन सुबह सूर्योदय से पहले स्नान करना चाहिए। जब भी आप नहाने जाएं, नहाने के पानी में काला तिल मिला लें, ऐसा करने से आपके जीवन से अभाग्य दूर हो जाता है और भाग्य के दरवाजे हमेशा के लिए खुल जाते हैं।
निरोगी और खूबसूरत काया के लिए जरूरी है स्नान:
निरोगी और खूबसूरत काया के लिए यह आवश्यक है कि प्रतिदिन स्नान किया जाए। स्नान करते समय अगर कुछ बातों को ध्यान में रखा जाए तो निरोगी काया के साथ-साथ कई अन्य तरह के भी फायदे हो सकते हैं। नहाने से लक्ष्मी की कृपा, तेज दिमाग और अच्छी त्वचा भी पायी जा सकती है। सुबह तारों की छाया में स्नान करने से लक्ष्मी की कृपा होती है इसेक साथ ही बुरी शक्तियों और सभी परेशानियों से मुक्ति भी पायी जा सकती है।
स्नान के प्रकार:
*- ब्रह्म स्नान:
यह स्नान सुबह 4-5 बजे के बीच भगवान का नाम लेते हुए किया जाता है। इस तरह का स्नान करने से जीवन खुशियों से भर जाता है साथ ही जीवन की कई परेशानियां भी दूर हो जाती हैं।
*- देव स्नान:
जब भी कोई सूर्योदय के बाद स्नान करता है तो उस स्नान को देव स्नान कहते हैं। इस समय स्नान करने वाला सभी प्रमुख नदियों का नाम लेते हुए स्नान करता है। ऐसे स्नान से आपके जीवन में आने वाली सभी परेशानियां दूर हो जाती हैं।
*- दानव स्नान:
जो स्नान नाश्ता या भोजन करने के पश्चात् किया जाता है, उसे दानव स्नान कहा जाता है। इस स्नान से व्यक्ति को घोर विपत्तियों का सामना करना पड़ता है।
*- यौगिक स्नान:
योग के माध्यम से अपने इष्टदेव का ध्यान करते हुए जो स्नान किया जाता है, उसे यौगिक स्नान कहते हैं। यौगिक स्नान को आत्मतीर्थ स्नान भी कहा जाता है, क्योंकि इस स्नान को करने वाले को तीर्थ यात्रा के सामान ही पुण्य लाभ मिलता है।