पति की मौत के बाद हार मानने की जगह पंचर बना कर, मैना ने दी अपनी बेटियों को अच्छी जिंदगी
मैना सोलंकी का जीवन करोड़ों लोगों के लिए प्रेरणादायक है और इनके जीवन की कहानी पढ़ने के बाद आपके हौंसले भी बुलंद हो जाएंगे। जिस तरह से मैना सोलंकी ने मेहनत कर अपनी तीन बेटियों को अच्छी शिक्षा दी वो एक मिसाल है। 45 साल की मैना सोलंकी का जीवन शुरू से ही संघर्षों से भरा रहा है। लेकिन इन्होंने कभी भी हार नहीं मानी और जिंदगी में आई हर चुनौती का सामने डट कर किया।
मैना सोलंकी मध्यप्रदेश के मंदसौर में रहा करती है और इनकी एक टायर पंचर की दुकान है। मैना सोलंकी के पिता प्रेमचंद टायर पंचर सही करने का काम करते थे और जब मैना छोटी थी तो वो भी अपने पिता की दुकान पर उनकी मदद किया करती थी। मैना सोलंकी के अनुसार उनके पिता की मदद वो और उनकी मां किया करती थी। जब वो छोटी थी तो वो पिता की पंचर की दुकान पर छोटे-मोटे काम कर देती थी।
मैना सोलंकी ने कई सालों तक अपने पिता की दुकान पर काम किया। वहीं जब वो बड़ी हुई तो उनकी शादी करवा दी गई। हालांकि शादी के बाद मैना सोलंकी के जीवन का असली संघर्ष शुरू हुआ। मैना सोलंकी की शादी मुंशी नामक व्यक्ति से हुई थी जो कि एक मजूदर था और इस शादी से मैना को तीन बेटियां हुई।
शादी के बाद भी मैना के पिता उनकी आर्थिक मदद करते थे। लेकिन कुछ समय बाद मैना सोलंकी के पिता की मौत हो गई। पिता की मौत के एक साल बाद मैना के पति का भी निधन हो गया और घर की सारी जिम्मेदारी मैना के ऊपर आ गई। मैना के मुताबिक वो अपनी तीन बेटियों को लेकर अपनी मां के घर आ गई। लेकिन मां के साथ लड़ाई होने के बाद मैना को अपना घर छोड़ना पड़ा और वहां सड़क पर आ गई। अपनी तीन बेटियों की जिम्मेदारी सही से उठाने के लिए मैना ने टायर पंचर का काम करने का फैसला किया और गाड़ियों का पंचर बनाने लगी। मैना ने मंदसौर नया खेड़ा की सड़क किनारे बनीं अपने पिता की टायर पंचर की दुकान को फिर से शुरू किया और पंचर सही करने लगी। मैना सोलंकी के अनुसार वो शुरुआती दौर में मोटरसाइकिल और साइकिलों के पंचर सही किया करती थी।
वहीं पंचर की दुकान पर काम करने साथ ही उन्होंने अपने लिए एक झोपड़ी भी बनाई। जिसमें वो अकेले अपनी तीन बेटियों के साथ रहा करती थी। पंचर की दुकान पर काम करने के लिए मैना को साड़ी छोड़कर पेंट और शर्ट भी पहननी पड़ी। पंचर की दुकान पर केवल मर्द ही आया करते थे। लेकिन मैना ने इस बात पर इतना ध्यान ना देखकर अपना मन दुकान को चलाने पर लगाया।
दिन रात खूब मेहनत करने के बाद मैना की आर्थिक हालत सही हो सकी और उन्होंने अपनी तीनों बेटियों को अच्छी शिक्षा प्रदान की। मैना 25 सालों से अपनी दुकान अच्छे से चला रही है। वहीं इस समय उन्होंनेे ने अपनी दो बेटियों की शादी भी करवा दी है और तीसरी बेटी की शादी भी जल्द होने वाली है। मैना के पड़ोस में रहने वाले मैकेनिक अब्दुल समद के अनुसार उन्होंने अपने जीवन में ऐसी महिला नहीं देखी है जिसके इतने बुलंद हौंसले हों।
मैना के मुताबिक उन्होंने अपने जीवन में जो देखा है वो नहीं चाहती की उसका सामना उनकी बेटियों को करना पड़ा। मैना के हौंसलों की कहानी पढ़ाकर ये बात एकदम सही साबित होती है कि औरतें मर्दों से कम नहीं है और वो अकेले ही अपने घर को संभाल सकती है।