विशेष
घोड़ा गाड़ी चलाकर जो कमाया करते थे 100 रुपये, उनकी बेटी बन गयी एथलीट ऑफ द ईयर
खेल के क्षेत्र में भी आज लड़कियां देश का नाम रोशन कर रही हैं। रानी रामपाल उन्हीं में से एक हैं। भारतीय महिला हॉकी टीम की रानी रामपाल कप्तान हैं। ये वही खिलाड़ी हैं, जिन्हें वर्ल्ड गेम्स एथलीट ऑफ द ईयर 2019 का भी खिताब मिल चुका है। रानी रामपाल को यह खिताब दिए जाने की जब घोषणा हुई थी तो पूरे देश में हर्ष की लहर दौड़ गई थी। किसी भी हॉकी खिलाड़ी के जीवन में यह दुनिया का सबसे बड़ा हॉकी के क्षेत्र का अवार्ड होता है। रानी रामपाल ने अपनी मेहनत और काबिलियत के दम पर इस खिताब को हासिल कर लिया था।
मजह 15 वर्ष की उम्र में
रानी रामपाल ने आज अपने हॉकी करियर में जो ऊंचाइयां हासिल की है, वहां तक पहुंचना उनके लिए इतना भी आसान नहीं रहा था। जब रानी केवल 15 वर्ष की थी, तभी उन्होंने भारत के लिए हॉकी खेलना शुरू कर दिया था। रानी रामपाल का नाम भारतीय हॉकी टीम में शामिल होने वाली सबसे युवा खिलाड़ी के तौर पर भी दर्ज हो चुका है। यही नहीं, रानी रामपाल ने जिस तरीके से अपने खेल पर मेहनत की है और जितनी लगन से उन्होंने तमाम प्रतिकूल परिस्थितियों के बावजूद प्रैक्टिस की है, उसके कारण वे कई रिकॉर्ड अब तक अपने नाम कर पाने में कामयाब रही हैं।
वर्ष 2018 में जब एशियाई खेल होने जा रहे थे, ठीक उससे पहले भारतीय महिला हॉकी टीम की कप्तानी रानी रामपाल के हाथों में दे दी गई थी। रानी ने अपनी जिम्मेदारियों को समझा और उन्होंने शानदार तरीके से टीम का नेतृत्व करते हुए एशियाई खेलों में भारत को सिल्वर मेडल दिलाया। फिर FIH सीरीज जो भारत ने जीती, उसमें वे प्लेयर ऑफ द टूर्नामेंट भी चुनी गई थीं। रानी रामपाल न केवल वर्ष 2016 में हुए रियो ओलंपिक में भारत की ओर से खेल चुकी हैं, बल्कि अब तक उनके नाम 200 से भी अधिक अंतरराष्ट्रीय हॉकी मैच हो चुके हैं।
हरियाणा के शाहबाद मारकंडा की रानी रामपाल मूल रूप से रहने वाली हैं। उनके परिवार ने बड़ी ही गरीबी में अपना जीवन व्यतीत किया है। उनके पिता घोड़ागाड़ी चलाकर परिवार का पेट भरा करते थे। दिनभर में मुश्किल से 100 रुपये की कमाई हो पाती थी। रानी रामपाल का मकान भी कच्चा था। इस वजह से जब बारिश होती थी तो छत से पानी टपकता रहता था। एक साक्षात्कार के दौरान रानी ने यह बताया भी था कि घर वाले भगवान से यही प्रार्थना करते रहते थे कि कभी बारिश न हो, क्योंकि जब बारिश हुआ करती थी तो उनका घर पानी से भर जाता था और सभी को बहुत परेशानी होती थी। रानी के मुताबिक उनके पिता रामपाल के पास उन्हें स्कूल भेजने तक के पैसे नहीं थे। फिर भी किसी तरीके से इंतजाम करके उन्होंने रानी को स्कूल में पढ़ने के लिए भेजा था।
जब रानी केवल 6 या 7 साल की थीं, तभी स्कूल जाते वक्त उन्होंने मैदान में लड़के हॉकी खेलते हुए दिख जाते थे। उन्हें हॉकी खेलते देखकर रानी का भी मन होने लगता था कि वे भी हॉकी खेलें। ऐसे में उन्होंने घर आकर अपने घरवालों को इस बारे में बताया था। रानी के मुताबिक यहीं से घर वालों के लिए समस्या पैदा हो गई थी। रानी एक लड़की थीं। हरियाणा के इस गांव में एक लड़की का इस तरह से हॉकी खेलना किसी को मंजूर नहीं होता। ऐसे में परिवार वाले मानने के लिए तैयार नहीं थे। फिर रानी ने रोना-गाना घर में मचाना शुरू कर दिया। किसी तरीके से अंत में पिता मान गए। इसके बाद बाकी घरवाले भी तैयार हो गए। रिश्तेदारों ने इसका बहुत विरोध किया। आसपास के लोगों ने भी इसका इस पर विरोध जताया, लेकिन रानी के घरवालों ने अब अपनी बेटी को सपोर्ट करने की ठान ली थी।
द्रोणाचार्य अवार्ड से सम्मानित कोच बलदेव सिंह ने उनके खेल को देखकर उन्हें कोचिंग देना शुरू कर दिया। रानी के मुताबिक कई बार उन्होंने हॉकी छोड़ने की सोची, क्योंकि परिवार में परिस्थितियां प्रतिकूल हो गई थीं, लेकिन कोच के साथ सभी लोगों ने उन्हें बड़ा सपोर्ट किया। आखिरकार रानी ने केवल 15 वर्ष की उम्र में भारतीय हॉकी टीम में अपनी जगह बना ली। आज रानी रामपाल क्या हैं, यह किसी से छुपा नहीं है। पूरे देश को आज उन पर नाज है।