पैसों के अभाव में लकड़ी के बैट से खेलीं, पिता बेचते हैं दूध, अब T-20 वर्ल्डकप में छाईं राधा यादव
महिला टी-20 वर्ल्ड कप में भारतीय महिला क्रिकेट टीम की ओर से अब तक बहुत ही शानदार प्रदर्शन किया गया है। अपने चारों ही मैच भारतीय टीम जीत चुकी है। सेमीफाइनल में इसने अपनी जगह पक्की कर ली है। ग्रुप ए में वह सब से शीर्ष पर बनी हुई है। बीते शनिवार को श्रीलंका के साथ भारत का मुकाबला हुआ था। इस मैच में भारतीय महिला क्रिकेट टीम श्रीलंका को 7 विकेट से पटखनी देने में कामयाब रही। इसमें सबसे बड़ा योगदान प्लेयर ऑफ द मैच बनीं राधा यादव का रहा। उन्होंने अपने चार ओवर के स्पेल में महज 23 रन लुटाते हुए 4 विकेट अपने नाम कर लिए। उनके लाजवाब प्रदर्शन की वजह से भारत को श्रीलंका पर जीत नसीब हो पाई।
ऐसे पहुंचीं यहां तक
राधा यादव भी उन भारतीय क्रिकेटरों में से एक हैं, जिन्हें अंतरराष्ट्रीय टीम में जगह बनाने के लिए खासी मेहनत करनी पड़ी। यही वजह है कि उनकी जिंदगी बाकी खिलाड़ियों को भी प्रेरणा देती है। राधा यादव जो कि मुंबई की कोलिवरी बस्ती में सिर्फ 220 फीट की एक झुग्गी-झोपड़ी में रह रही थीं, उन्होंने अपनी दृढ़ संकल्प की वजह से अंतरराष्ट्रीय टी-20 वर्ल्ड कप तक का सफर तय किया और यहां अपने लाजवाब प्रदर्शन की वजह से अपने लिए एक ऐसा नाम कमा लिया, जो कि इतिहास में दर्ज हो गया है। यह राधा यादव के शानदार खेल और उनकी मेहनत से की गई प्रैक्टिस का ही नतीजा रहा कि जब राजेश्वरी गायकवाड़ चोटिल हुईं तो उनकी जगह किसी और को नहीं, बल्कि राधा यादव को दक्षिण अफ्रीका जाने वाली भारतीय महिला क्रिकेट टीम में जगह दी गई।
यूपी के जौनपुर से कनेक्शन
राधा यादव ने अपने इस लाजवाब प्रदर्शन से उत्तर प्रदेश के जौनपुर का भी नाम रोशन किया है, क्योंकि वे मूल रूप से यही के अजोशी गांव की रहने वाली हैं। बांकी के केएन इंटर कॉलेज से उन्होंने 12वीं भी पास की है। उनके पिता मुंबई में एक डेयरी उद्योग से जुड़कर काम कर रहे थे। इसलिए ट्रेनिंग लेने के लिए वे मुंबई चली गई थीं। काफी प्रतिकूल परिस्थितियां होने के बावजूद बाप-बेटी ने कभी हिम्मत नहीं हारी और वे जिंदगी में आगे बढ़ते रहे। शुरुआत में मुंबई की ओर से खेलने वाली राधा यादव वर्तमान में गुजरात की टीम की ओर से खेल रही हैं। उन्होंने अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट में कदम वर्ष 2018 में रखा था।
लड़कों के साथ भी खेलीं
आपको यह जानकर शायद ताज्जुब होगा कि 6 साल की उम्र में ही राधा यादव ने क्रिकेट खेलना शुरू कर दिया था और वे मुहल्ले के लड़कों के साथ खेला करती थीं। पड़ोसियों ने बहुत ताना भी मारा कि लड़की को इतनी छूट देना ठीक नहीं, मगर पिता प्रकाश चंद्र यादव ने कभी उनकी बातों पर ध्यान नहीं दिया और उनके मुताबिक उन्होंने हमेशा अपनी बेटी को खेलने की छूट दे रखी थी।
गरीबी नहीं आयी आड़े
राधा यादव के पिता मुंबई में एक छोटी सी दुकान चलाकर चार भाई-बहनों का पेट भरते हैं, जिनमें से राधा सबसे छोटी हैं। बैट खरीदने के पैसे नहीं थे तो लकड़ी की बैट बनवाकर राधा खेलती थीं। हर तरह की प्रतिकूल परिस्थितियों से पार पाते हुए राधा ने अपने लिए खास पहचान बना ली। घर से तीन किलोमीटर दूर राजेंद्र नगर स्टेडियम में उनके पिता साइकिल से उन्हें प्रैक्टिस करने के लिए पहुंचा देते थे, जहां से राधा कभी तो ऑटो से या कभी पैदल ही चल कर वापस घर आ जाया करती थीं।
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