क्या समाज को गलत संदेश दे रही सूरज बड़जात्या की संस्कारी फ़िल्में? देखे इनकी 6 बड़ी गलतियाँ
हम आपके हैं कौन, हम साथ साथ हैं, विवाह इत्यादि कुछ ऐसी फ़िल्में हैं जो पारिवारिक और संस्कारी फिल्मों की केटेगरी में आती हैं. इन सभी फिल्मों के रचेयता बॉलीवुड के मशहूर डायरेक्टर सूरज बड़जात्या हैं. इनकी सभी फिल्मों में संस्कार कूट कूट कर भरे होते हैं. यहाँ तक कि 90 के दशक में तो इनकी फिल्मों की एक स्पेशल ऑडियंस भी हुआ करती थी. ये लोग सिर्फ सूरज बड़जात्या की फ़िल्में देखने की परिवार सहित थिएटर जाते थे. सूरज बड़जात्या की सभी फिल्मों में कुछ चीजें कॉमन होती हैं. इसमें कई बार संस्कार का तड़का लगाने के चक्कर में कुछ ऐसी चीजें भी दिखा दी जाती हैं जो आपको सही या अच्छे संस्कार वाली ना लगे. चलिए इन्हें कुछ उदाहरणों से समझते हैं.
कुँवारी उम्रदराज महिलाएं तोड़ती है फैमिली
हम साथ साथ हैं फिल्म में आपको ‘तीन तितली’ याद हैं? अरे वही जो रीमा लागू की बेस्ट फ्रेंड होती हैं. इन्हीं महिलाओं की वजह से रीमा अपने प्यार सौतेले बेटे से नफरत करने लगती हैं. इनकी वजह से पूरा परिवार बिखर जाता हैं. फिल्म में एक लाइन भी होती हैं जिसमे कहा जाता हैं कि बिना शादी वाली महिलाएं फैमिली वेल्युस कैसे समझेगी. ऐसे में सूरज बड़जात्या अपनी अधिकतर फिल्मों में घर में कुँवारी बैठी उम्र दराज महिलाओं को विलेन के रूप में ही दिखाते हैं.
लड़का और लड़की कभी दोस्त नहीं बन सकते
सूरज बड़जात्या की फिल्मों में एक पॉइंट ये भी अक्सर उठाया जाता हैं कि एक लड़का और लड़की आपस में कभी दोस्त नहीं रह सकते हैं. या तो उनके बीच प्यार होगा या शादी होनी चाहिए. हालाँकि मॉडर्न जमाने में ऐसा नहीं होता हैं. लड़का और लड़की सामान्य रूप से अच्छे दोस्त हो सकते हैं.
बड़ो का फैसला अंतिम फैसला होता हैं
सूरज बड़जात्या की फिल्मों में एक चीज ये भी दिखाई जाती हैं कि आपकी लाइफ के सभी फैसले पापा ही लेंगे. उनकी कही बात को आप टाल नहीं सकते हैं. जैसे हम आपके हैं कौन में चाचाजी ये फैसला लेते हैं कि राजेश अपनी शाली से ब्याह करेगा. वे इस बात को परिवार में जब कहते हैं तो कोई इसके खिलाफ आवाज़ नहीं उठाता हैं. ये चीज दर्शाती हैं कि अच्छी फैमिली में हमें बड़ो की चुपचाप सुन लेना चाहिए. वो जैसा कहे हमेशा वही करना चाहिए. लेकिन इसमें गड़बड़ ये हैं कि घर के बड़े हमेशा सही फैसला ले ये जरूरी नहीं होता हैं. इसलिए हमें सही और सच का साथ देना चाहिए.
शादी ही जिंदगी का अहम लक्ष्य हैं
सूरज बड़जात्या की फिल्म में शादी का ना होना ठीक वैसा ही हैं जैसे खाने में नमक का ना होना. इनकी लगभग हर फिल्म में मुख्य किरदार का लक्ष्य शादी करना ही होता हैं. इसके अलावा इनकी फिल्मों की कोई स्टोरी नहीं होती हैं. ऐसे में ये चीज यही दर्शाती हैं कि जीवन में सभी कामों से ज्यादा जरूरी शादी होती हैं. ये एक बार हो गई तो समझो गंगा नहा लिए.
शादी के लिए गोरा होना जरूरी हैं
सूरज बड़जात्या की अधिकतर फिल्मों में इसी बात पर जोर दिया जाता हैं कि लड़की गोरी हैं तो उसकी शादी जल्दी हो जाएगी और काली हैं तो उसे बहुत परेशानी होगी. चुकी अधिकतर लोग इसी तरह की फ़िल्में देखकर बड़े हुए हैं तो उनके दिमाग में भी ये कचरा भर जाता हैं और वे गौरी लड़की को ही ज्यादा महत्व देते हैं. विवाह फिल्म में तो ‘छोटी’ का सांवला रंग छुपाने के लिए उसे पाउडर से नहला दिया गया था.
पत्नी के ऊपर पति का सारा हक़ हैं
सूरज की सभी फिल्मों में पति अपनी पत्नी को डोमिनेट करते हुए दिखाए जाते हैं. उदहारण के लिए मैंने प्यार किया फिल्म में प्रेम सुमन को उसकी मर्जी के खिलाफ छोटे कपड़े पहनने के लिए फ़ोर्स करता हैं. वहीं विवाह फिल्म में तो प्रेम जोर जोर से गाना ही गाने लगता हैं मुझे हक़ हैं.