सिर पर साफा बाँध घोड़ी चढ़ी दुल्हन, बैंड बाजे से नाचते गाते पहुंची दूल्हें के घर
आमतौर पर जब भी शादी होती हैं तो दूल्हा ही घोड़ी पर सवार दिखाई देता हैं. हालाँकि कुछ समाज में दुल्हन के घोड़ी पर चढ़ने की परंपरा भी होती हैं. मसलन मध्यप्रदेश के बुरहानपुर में उस समय लोग हक्का बक्का रह गए जब एक लड़की सिर पर साफा पहने सजीधजी घोड़ी पर सवार होकर सड़क पर निकली. तस्वीर में दिखाई दे रही इस दुल्हन का नाम अंशुल मुंशी हैं. अंशुल की शादी अपेक्षित शाह से होने वाली हैं. ऐसे में समाज की परंपरा के मुताबिक दुल्हन घोड़ी पर सवार होकर अपने दुल्हे के घर उसे बारात लाने का न्योता देने जा पहुंची. दूल्हा एनआरआई हैं जो अमेरिका स्थित ऐपल कंपनी में इंजीनियर हैं.
दुल्हन ने बातया कि हमारे मुंशी परिवार में एक रिवाज हैं जो कई सालो से चला आ रहा हैं. इस रिवाज के तहत दुल्हन शादी के एक दिन पहले दूल्हें के घर बैंड बाजा और घोड़ी से बारात का न्योता देने जाती हैं. यही रिवाज़ पाटीदार समाज में भी होता हैं. ऐसे में दुल्हन ने भी इसी रिवाज़ को पूरी सिद्दत से निभाया. अब सोशल मीडिया पर घोड़ी पर सवार इस दुल्हन की तस्वीरें बहुत वायरल हो रही हैं. जिसने भी ये नजारा देखा वो बस देखता ही रह गया.
उधर दुल्हे अपेक्षित के पिता विजय कुमार शाह एक पर्यावरण प्रेमी हैं. नेपा लिमिटेड के प्रबंधक परियोजना पद से रिटायर हुए विजय जी बताते हैं कि उन्होंने अपने बेटे की शादी के लिए एक हजार से भी ज्यादा कार्ड्स छपवाए हैं. ये सभी कार्ड कॉटन की थैली पर छपे हैं. इस थैली के अंदर कपड़े का ही एक रुमाल हैं जिसके ऊपर विवाह संबंधित जानकारी छपी हैं. इसके अलावा उन्होंने इस कार्ड पर एक संदेश भी छपवाया हैं जिसमें कम से कम कागज़ और प्लास्टिक के इस्तेमाल की बात कही हैं.
अक्सर देखा जाता हैं कि शादी के कार्ड शादी होने जाने के बाद वेस्ट हो जाते हैं. ऐसे में थैली और रुमाल पर इन्हें छपवाने से बाद में मेहमान इनका उपयोग निजी तौर पर कर सकते हैं. इनकी खासियत ये हैं कि रुमाल को दो से तीन बार धोने पर उसके ऊपर छपा प्रिंट भी हट जाता हैं. इसके बाद आप इसे साधारण रुमाल की तरह इस्तेमाल कर सकते हैं. विजयजी के अनुसार आज के जमाने में प्लास्टिक के इस्तेमाल को कम करने के लिए इस तरह की पहल जरूरी हैं. अब तो सरकार भी कम प्लास्टिक के इस्तेमाल पर जोर दे रही हैं.
इन दिनों हर जगह शादी ब्याह का ही माहोल हैं. ऐसे में हर शादी में सभी की यही तमन्ना होती हैं कि वो कुछ हटकर करे. इस तरह समाज में यदि शादी के माध्यम से एक नेक संदेश जाता हैं तो इससे अच्छी बात क्या हो सकती हैं. अंशुला की तरह यदि और महिलाएं भी शादी में घोड़ी पर चढ़ती हैं तो इससे महिलाओं को एक तरह की पॉवर भी मिलती हैं. समाज में ये संदेश जाता हैं कि मर्द और महिला दोनों हर काम में बराबर हैं.
वैसे क्या आप शादी में लड़की को घोड़ी पर चढ़ता हुआ देखना पसंद करते हैं? अपनी राय जरूर बताए.