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पानीपूरी बेची, भूखा टेंट में सोया और अब विश्व कप में पाक के खिलाफ जमाया शतक

भारतीय अंडर-19 टीम में शामिल हुए क्रिकेटर यशस्वी जायसवाल की कहानी कुछ ऐसी है जो बुरे वक्त से गुजकर किसी शख्स की कामयाब होने को दर्शाती है, जिससे पूरी दुनिया हैरान रह जाये. शायद बहुत कम लोग की जानते हैं कि उन्होंने इस मुकाम को हासिल करने में कई मुश्किलों का सामना किया. आज हम आपको 17 साल के यशस्वी जायसवाल की कहानी बताने जा रहे हैं, जिन्होंने हाल ही में अपनी कहानी से सभी को हैरान कर दिया है. आज के समय में यशस्वी जायसवाल का नाम इंडियन क्रिकेट प्रेमियों के लिए अनजान नहीं रह गया है. अंडर-19 टीम के इस बैट्समैन के खेल के फैंस की संख्या बड़ी तेजी के साथ बढ़ती जा रही है.

आपको बता दें कि बीते मंगलवार के दिन पोचेस्त्ररूम (साउथ अफ्रीका) में यशस्वी ने पाकिस्तान के अगेंस्ट जिस तरह के खेल का प्रदर्शन किया उसे देखकर ये बात कही जा सकती है कि इंडियन क्रिकेट का भविष्य पूरी तरह से सुरक्षित हाथों में है. इस पारी में यशश्वी ने नाबाद 105 रन बनाए और अंतिम गेंद पर छक्के के साथ टीम को विजय दिलाई और साथ ही अपना शतक पूरा किया. इस बैट्समैन की कहानी मुंबई की सड़कों से शुरू होकर अब वर्ल्ड कप तक पहुंच चुकी है. लास्ट ईयर इंडिया की अंडर-19 टीम ने श्री लंका टीम को 144 रन से हराकर छठवीं बार एशिया कप को अपने नाम कर लिया. इस सीरीज के दौरान बहुत सारे खिलाड़ियों ने बहुत अच्छा प्रदर्शन किया और इन्ही खिलाड़ियों में से एक थे यशस्वी. टीम के ओपनिंग बैट्समैन यशस्वी जायसवाल ने फाइनल मैच के दौरान 85 रनों की पारी खेली थी. इसके अलावा यशश्वी ने तीन मैचों में 214 रन बनाए.

 

पूरा दिन क्रिकेट खेलने के बाद उनके अंदर इतनी ताकत नहीं बचती थी कि वो दुकान में काम कर पाए इसलिए वो दुकान में जा कर सीधे सो जाया करते था. एक दिन डेयरी के मालिक ने उनके सामान को दुकान के बाहर फेंक दिया. तीन सालों तक वो टेंट को अपना घर समझ कर रहते रहे. वो अपनी इन तकलीफो के बारे में अपने घरवालों को नहीं बताना चाहते थे. कभी-कभी उनके घरवाले कुछ पैसे भेज देते थे. पर उन पैसो से गुज़ारा करना मुश्किल था. इसलिए वो खाली समय में पानी-पूरी बेचता था ताकि कुछ पैसे आ जाएं. पर कभी कभी ऐसा होता था जब उन्हें ख़ाली पेट सोना पड़ता था.

आपको जानकर हैरानी होगी की यशस्वी मुंबई के मुस्लिम यूनाइटेड क्लब के गार्ड के साथ तीन साल तक टेंट में रहे, जो उनके संघर्ष की कहानी बताता है. इसके अलावा यशस्वी इससे पहले डेयरी में काम भी करते थे जहां उन्हें कई रातें भूखे पेट गुजारनी पड़ी. सबसे दुखद बात ये है कि यशस्वी को इस डेयरी भगा दिया गया और उस वक्त वो महज 11 साल के थे। यशस्वी ने ये मुश्किल वक्त सिर्फ इस सपने के सहारे काट लिया कि एक दिन उन्हें भारतीय क्रिकेट टीम के लिए खेलना है.

यशस्वी अपनी आँखों में क्रिकेट खेलने का सपना लेकर उत्तरप्रदेश से मुंबई आये थे. इसी सपने की वजह से उनके अंदर इतनी मुसीबते झेलने की शक्ति आती थी. आज के समय में पुरे 6 साल बीत गए है. अब यशस्वी की उम्र 17 साल हो चुकी है. अब यशस्वी एक मध्यक्रम का धाकड़ बैट्समैन है. यशस्वी का नाम जल्द ही श्रीलंका टूर के लिए इंडिया की अंडर-19 टीम के साथ जुड़ने वाला है. मुंबई के अंडर-19 कोच सतीश सामंत बताते है की यशस्वी जायसवाल के अंडर क्रिकेट की असाधारण समझ है और साथ ही उनकी एकाग्रता भी अचूक है. यशस्वी के पिता उत्तरप्रदेश के भदोही कसबे में एक छोटी सी दुकान चलाते हैं.

यशस्वी दो भाईयों में छोटे हैं ये बचपन से ही क्रिकेटर बनने का सपना देखते थे. अपने सपने को पूरा करने के लिए यशस्वी मुंबई आ गए. मुंबई में आकर वो अपने अंकल संतोष को पास रहने वाले थे. पर मुंबई आकर उन्हें पता चला की उनके अंकल के घर में अतिरिक्त मेहमान के रुकने की जगह नहीं है. इसलिए वो एक टेंट में रहने लगे. जायसवाल कहते कि ये घटना उस समय की है, जब उन्हें कलबादेवी में मौजूद एक डेयरी से निकाल दिया गया था. पूरा दिन क्रिकेट खेलने के बाद उनके अंदर इतनी ताकत नहीं बचती थी कि वो दुकान में काम कर पाए इसलिए वो दुकान में जा कर सीधे सो जाया करते था. एक दिन डेयरी के मालिक ने उनके सामान को दुकान के बाहर फेंक दिया. तीन सालों तक वो टेंट को अपना घर समझ कर रहते रहे. वो अपनी इन तकलीफो के बारे में अपने घरवालों को नहीं बताना चाहते थे. कभी-कभी उनके घरवाले कुछ पैसे भेज देते थे. पर उन पैसो से गुज़ारा करना मुश्किल था.

इसलिए वो खाली समय में पानी-पूरी बेचते थे ताकि कुछ पैसे आ जाएं. पर कभी कभी ऐसा होता था जब उन्हें ख़ाली पेट सोना पड़ता था. यशस्वी पैसे कमाने के लिए बहुत अधिक मेहनत करते थे. वो बड़े बड़े खिलाड़ियों के साथ क्रिकेट खेलकर और रन बना कर एक हफ्ते में 200-300 रूपये कमा लेते थे वो अपना लंच और डिनर टेंट में ही करते थे उनका काम रोटी बनाने का हर रात मोमबत्ती की रौशनी में वो लोग डिनर किया करते थे. क्योंकि टेंट में लाइट नहीं आती थी. अंडर-19 क्रिकेट टीम में चुनाव होने से पहले आज़ाद मैदान में ये बातें होने लगी कि एक प्लेयर को मदद की आवश्यकता है. हालातों में सुधार तब आया जब एक स्थानीय कोच ज्वाला सिंह यशस्वी की मदद के लिए आगे आए. क्रिकेट कोच ज्वाला सिंह की मदद के बाद यशस्वी जायसवाल के हालातों में थोड़ा सुधार आया अब बहुत जल्द यशस्वी श्रीलंका टूर के लिए इंडिया की अंडर-19 टीम के लिए खेलने वाले हैं.

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