छत्तीसगढ़ में अपने ही बनाए कानून के खिलाफ कांग्रेस, NIA को खत्म करने के लिए SC पहुँची बघेल सरकार
राजनीति में हर दिन कुछ ना कुछ नया होता रहता है जहां पर एक पक्ष दूसरे पक्ष पर तानाकसी करने का काम करता है। फिर वो कांग्रेस का बीजेपी पर वार हो या फिर बीजेपी का कांग्रेस पर पलटवार। मगर सभी एक-दूसरे को नीचा दिखाने और दूसरी पार्टी का किसी कानून का विरोध दशकों से चला आ रहा है। कुछ ऐसा ही हुआ छत्तिसगढ़ में जहां की सरकार ने अनुच्छेद 131 के अंतर्गत एक मामला दायर किया है। अनुच्छेद 131 के अंतर्गत केंद्र के साथ विवाद के मामले में राज्य सीधे सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर कर सकता है। छत्तीसगढ़ में अपने ही बनाए कानून के खिलाफ कांग्रेस, उन्होंने इसमें क्या कहा चलिए बताते हैं पूरा मामला..
छत्तीसगढ़ में अपने ही बनाए कानून के खिलाफ कांग्रेस
छत्तिसगढ़ की कांग्रेस सरकार अपने लिए ही काल बुलाने का काम कर रही है। दरअसल, सरकार ने 15 जनवरी को सुप्रीम कोर्ट में एक वाद पेश करके UPA सरकार के कार्यकाल में बनाए गए राष्ट्रीय जांच एजेंसी कानून, 2008 को असंवैधानिक घोषित करने का निवेदन किया है। राज्य सरकार ने दावा किया है कि इस कानून से राज्य की प्रधानता प्रभावित होती है औऱ ये केंद्र को निर्बाध अधिकार प्रदान करता है। डॉ. मनमोहन के नेतृत्व वाली यूपीए सरकार ने 26 नवबंर, 2008 को मुंबई में होने वाले आतंकी हमले की घटना के बाद ये कानून बनाया था। कांग्रेस नेता पी चिदबंरम उस समय देश के गृह मंत्री थे और ये कानून राष्ट्रीय जांच एजेंसी को राज्य से किसी स्पष्ट अनुमति के बिना ही देश के किसी भी हिस्से में आतंकी हमले की जांच का समवर्ती अधिकार प्रदान करता है। NIA पिछले दस सालों से इस तरह के सभी मामलों की जांच करने का काम कर रहा है। छत्तिसगढ़ सरकार ने अनुच्छेद 131 के अंतर्गत ये वाद दायर किया है कि केंद्र के साथ विवाद के मामले में राज्य सीधे सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर कर सकता है और राष्ट्रीय जांच एजेंसी कानून को चुनौती देने वाला छत्तिसगढ़ पहला राज्य बन गया है।
केरल सरकार द्वारा अनुच्छेद 131 के अंतर्गत नागरिकता संशोधन कानून, 2019 को चुनौती दिए जाने के बाद छत्तिसगढञ सरकार ने इसी अनुच्छेद के अंतर्गत NIA कानून को चुनौती दी। एनआईए कानून के खिलाफ इस तरह की याचिका दायर करना अहम है क्योंकि छत्तीसगढ़ राज्य में कांग्रेस के भूपेश बघेल की सरकार ने दलील दी है कि राज्य की सूची में शामिल अपराधों की जांच करना पुलिस का काम है। राज्य सरकार का ऐसा कदम इसलिए भी अहम बताया जा रहा है क्योंकि इसने संसद द्वारा पारित इस कानून को चुनौती दी है जब केंद्र में कांग्रेस के नेतृत्व की सरकार रही थी। राज्य सरकार ने अपनी याचिका में बताया है कि राष्ट्रीय जांच एजेंसी कानून संविधान के अनुरूप में नहीं है और ये संसद के विधायी अधिकार क्षेत्र से बाहर है क्योंकि ये कानून राज्य पुलिस द्वारा की जाने वाली जांच के लिए केंद्र को एक जांच एजेंसी के सृजन का अधिकार प्रदान करता है जबकि ये संविधान की 7वीं अनुसूची के अंतर्गत का विषय है।
छत्तीसगढ़ सरकार का ये भी कहना है कि केंद्र द्वारा राज्य सरकार से किसी भी प्रकार की सहमति लेने के बारे में कोई व्यवस्था नहीं है जो निश्चित ही संविधान में परिकल्पित राज्य की प्रधानता के विचारों के खिलाफ है। इसमें ऐसा भी कहा गया है कि एनआई कानून कुछ ऐसा है कि एक बार प्रभावी हो जाने पर उन अपराधों की जांच करने के वादी के अधिकार को पूरी तरह से अपने पास ले लेता है। ऐसे काम जिन्हें एनआईए कानून के अंतर्गत अपराधों की श्रेणी में रखा गया है और जो राज्य के अधिकार क्षेत्र में भी हुए हैं। इस वाद में ऐसा भी बताया गया है कि पुलिस संविधान में राज्य की सूची के विषयों की सूची-कक का मामला है और ये केंद्र के मामलों से संबंधित सूची का विषय नहीं है। इसमें ऐसा भी कहा गया है कि राष्ट्रीय जांच एजेंसी कानून संविधान के अनुरूप में नहीं है और ये संसद के विधायी अधिकार क्षेत्र से बाहर में आता है और इसलिे ये संविधान से काफी दूर है।