गाय की नस लगा कर बचाई गई 1 साली की बच्ची की जान, इस बिमारी से थी पीड़ित
भारत में गाय को एक महत्वपूर्ण जानवर के रूप में देखा जाता हैं. जहाँ एक तरफ धार्मिक मान्यताओं के अनुसार इसे माता कहा जाता हैं तो वहीं प्रैक्टिकल लाइफ में भी ये हमारे बहुत काम आती हैं. गाय का दूध बड़ा पोष्टिक होता हैं. इससे पनीर, घी जैसे कई पदार्थ बनते हैं. फिर गाय के गोबर के भी अपने अलग फायदे हैं. कुल मिलाकार ये गाय हमारी जिंदगी आसन कर देती हैं. लेकिन हाल ही में गाय की वजह से एक साल की बच्ची की जान भी बच सकी हैं. दरअसल इस छोटी सी बच्ची के शरीर में गाय की नस लगाकर उसकी लाइफ सेव की गई. आइए विस्तार से जाने आखिर ये पूरा मामला क्या हैं.
दरअसल हरियाणा के गुरुग्राम में हाल ही में डॉक्टरों द्वारा एक बहुत ही अनोखा लिवर ट्रांसप्लांट किया गया. ये लीवर ट्रांसप्लांट सऊदी अरब की एक साल की बच्ची का हुआ था. सऊदी के डॉक्टरों ने इस बच्चे के पेरेंट्स को सलाह दी थी कि वो ये लिवर ट्रांसप्लांट सर्जरी भारत में करवाए. ऐसे में बच्ची के माता पिता उसे लेकर भारत आ गए थे. ऐसे में डॉक्टरों ने बच्ची के लीवर तक ब्लड सर्क्युलेट करने के लिया गाय की नस का इस्तेमाल किया. ये अनोखी सर्जरी करीब 14 घंटों तक चली. इस सर्जरी के बाद बच्ची को दो सप्ताह के लिए डॉक्टर्स की निगरानी में रखा गया था. अभी बीते बुधवार ही उसे डिस्चार्ज किया गया हैं.
बाइल डक्ट्स के बिना पैदा हुई एक वर्षीय बच्ची की साजरी करने वाले लिवर ट्रांसप्लांट सर्जन डॉ. गिरिराज बोरा ने बताया कि बच्ची की पोर्टल नस (पित्त नलिका) अविकसित होने के कारण बोवाइन जग्युलर नस (गाय के गले की नस) का उपयोग किया गया हैं. ये वहीं नस हैं जो ट्रांसप्लांट किए गए नए लीवर से रक्त प्रवाहित करने का कार्य करेगी. चुकी बच्ची की उम्र बहुत ही कम थी इसलिए उसकी सर्जरी के दौरान देखरेख बड़ा चुनौती वाला कार्य था. हालाँकि डॉक्टर और उनकी टीम ने इसे सफलतापूर्वक कर दिखाया.
जानकारी के लिए बता दे कि हूर नाम की ये बच्ची साराह और अहमद नाम के माता पिता की बेटी हैं. ये उनकी तीसरी संतान हैं. जब हूर पैदा हुई थी तो उसके तीन महीने बाद ही बच्ची इस बिमारी से पीड़ित हो गई थी. चुकी सऊदी के डॉक्टर कोई भी रिस्क लेने से बचना चाहते थे इसलिए उन्होंने बच्ची के माता पिता को बिलियरी बाइपास सर्जरी की असफलता के पश्चात भारत में सर्जरी कराने की सलाह दी थी.
भारत में ये सर्जरी कामयाब रही. ऐसे में बच्ची के पिता अहमद ने इंडिया और इलाज करने वाले डॉक्टर्स एवं हॉस्पिटल को धन्यवाद कहा.
डॉ. गिरिराज बोरा के अनुसार सऊदी अरब की ये बच्ची बिलियरी एट्रेसिया नामक बिमारी से पीड़ित थी. ये एक ऐसी बिमारी हैं जो 16हजार में से किसी एक नवजात बच्चे को होती हैं. इस बिमारी में नवजात की बाइल डक्ट्स (पित्त वाहिका) का पूर्ण विकास नहीं होता हैं. इस वजह से ट्रांसप्लांट जैसी जटिल प्रक्रिया से होकर गुजरना पड़ता हैं. बच्ची का वजन 5.2 किलो था. फिलहाल वो स्वस्थ हैं.
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