बेटी होने का फ़र्ज़ निभा रही दिव्यांग लड़की, पिता के कैंसर का इलाज हो जाए इसलिए चलाती हैं ऑटो
आज के जमाने में हर कोई यही सोचता हैं कि घर में एक बेटा जरूर होना चाहिए. बेटी होने के बावजूद लोग बेटे की चाह रखते हैं. उन्हें लगता हैं सिर्फ बेटा ही बुढ़ापे में या मुसीबत आने पर हमारा साथ देगा. हालाँकि ऐसा नहीं हैं. बेटियां भी अपने बूढ़े माता पिता का बहुत अच्छे से ध्यान रख सकती हैं. माता पिता की मुश्किल परिस्थितियों में भी उनकी देखरेख करने में लड़कियां भी पीछे नहीं हैं. इस बात का एक बेहतरीन उदाहरण आज हम आपको बताने जा रहे हैं. अहमदाबाद की रहने वाली 35 साल की अंकिता शाह को ही ले लीजिये. अंकिता को बचपन से पोलियो था. ऐसे में उसका एक पैर काटना पड़ गया था. इस तरह अंकिता दिव्यांग हो गई लेकिन उन्होंने जिंदगी से उम्मीद नहीं छोड़ी और एक सामान्य लड़की की तरह लाइफ में आगे बढ़ती रही.
अंकिता के जीवन में उस समय दुखों का पहाड़ टुटा जब उनके पापा को कैंसर की बिमारी हो गई. इस बिमारी के इलाज में बहुत पैसे खर्च होते थे. उन्हें बार बार अहमदाबाद से सूरत भी जाना होता था. ऐसे में पैसा और समय दोनों ही देना पड़ता था. अंकिता पहले एक कॉल सेंटर में जॉब करती थी. वहां उसे 12 हजार रुपए महीना मिलता था. अंकिता बताती हैं कि पापा के कैंसर की वजह से मुझे कई बार छुट्टी लेना पड़ती थी जो कॉल सेंटर में नहीं मिल पाती थी. साथ ही वे लोग सैलरी भी नहीं बढ़ाते थे. ऐसे में अंकिता ने अपनी जॉब छोड़ ऑटो चलाने का फैसला किया.
ऑटो चलाने से अंकिता महीने के 20 हजार रुपए कमा लेती हैं. वे दिन में 8 घंटे ऑटो चलाती हैं. इसके साथ ही वे जब चाहे अपने पिता के इलाज के लिए छुट्टी ले सकती हैं. अंकिता ने ये ऑटो चलाना अपने एक दोस्त से सिखा. उनका ये दोस्त भी विकलांग हैं और ऑटो चलाता हैं. उसने ना सिर्फ अंकिता को ये ऑटो चलाना सिखाया बल्कि उसे दिव्यांग लोगो के हिसाब से कस्टमाइज्ड ऑटो भी दिलवा दिया. इसमें ब्रेक हैंड से ऑपरेट होते हैं. अंकिता बताती हैं कि उन्होंने कई कंपनियों में इंटरव्यू दिए थे लेकिन उनके दिव्यांग होने की वजह से उन्हें जॉब मिलने में दिक्कत हो रही थी. ऐसे में उन्होंने ऑटो चलाने का निर्णय लिया.
अंकिता पिछले 6 महीने से ऑटो चला रही हैं. इससे कमाए पैसो से वे अपने पिता के कैंसर का इलाज करवाती हैं. भविष्य में अंकिता का सपना हैं कि वो अपना खुद का एक टैक्सी बिजनेस खोले. अंकिता सभी भाई बहनों में बड़ी हैं और एक बेटी होने का फर्ज बड़ी अच्छी तरह से निभा रही हैं.
उधर सोशल मीडिया पर जब लोगो को अंकिता की इस स्टोरी के बारे में पता चला तो उनके लिए तारीफों के पूल बनने लगे. अंकिता कई लोगो के लिए प्रेरणा बन गई हैं. उन्होंने अपने दिव्यांग होने को लाइफ की परेशानी का हिस्सा नहीं बनने दिया. आज जहाँ कई बार लड़के खुद अपने माता पिता का इतना ध्यान नहीं रखते हैं वहां अंकिता ने एक लड़की होते हुए अपने पिता के लिए बहुत संघर्ष किया हैं. उन्हें हमारा सलाम.