बीएमसी के चलते गिर न जाये फडणवीस सरकार, शिवसेना-कांग्रेस आ सकती हैं साथ!
बीएमसी के चुनावी नतीजों ने महाराष्ट्र की सरकार को खतरे में डाल दिया है. बीएमसी चुनाव में भले ही बीजेपी और शिवसेना के बीच सीधे मुकाबले में शिवसेना ने दो सीटों से बाजी मार ली हो. बावजूद इसके बीएमसी में काबिज होने के लिए बहुमत किसी के पास नहीं है. चुनावों के नतीजे आने के बाद अब भी यह सवाल बना हुआ है कि सत्ता की चाबी किसके पास जाएगी. ऐसे में अटकलें लगने लगी हैं कि कांग्रेस शिवसेना से संपर्क में है और बीजेपी को रोकने के लिए शिवसेना को समर्थन दे सकती है. बीएमसी में कांग्रेस के पास 31 सीटे हैं.
शिवसेना-कांग्रेस आ सकती हैं साथ :
शुक्रवार देर रात करीब 2 बजे तक मुंबई में भाजपा कोर कमेटी की बैठक चली. लेकिन इस पर कोई फैसला नहीं हो पाया कि बीएमसी में फंसे पेंच को दूर करने का कोई फॉर्मूला बना या नहीं. बीएमसी के मौजूदा मेयर का कार्यकाल 8 मार्च को खत्म हो रहा है यानि 9 मार्च को मेयर का चुनाव होना है. शिवसेना और भाजपा जोड़-तोड़ में लगी तो है लेकिन उसका कुछ खास असर होता नहीं दिखा रहा.
महाराष्ट्र कांग्रेस के अध्यक्ष अशोक चव्हाण ने पार्टी के वरिष्ठ नेताओं की एक बैठक बुलाई है, जिसमें सेना के प्रोपोजल के बारे में बातचीत की जाएगी. इस बैठक में पूर्व मुख्यमंत्री सुशील कुमार शिंदे, नारायण राणे, मुंबई के कांग्रेस चीफ संजय निरुपम, सांसद हुसैन दलवई और महाराष्ट्र के पूर्व मंत्री नसीम खान और बालासाहेब थोराट शामिल होंगे. शिवसेना और भाजपा दोनों ही जानती हैं कि विकल्प बेहद सीमित है, क्योंकि तीसरी सबसे बड़ी पार्टी कांग्रेस है और भाजपा का उससे हाथ मिलाना बिल्कुल नामुमकिन है. मुंबई भाजपा के अध्यक्ष आशीष शेलार ने कहा कि हम एक बात स्पष्ट कर देना चाहते हैं कि कांग्रेस के साथ गठबंधन का तो सवाल ही नहीं है, हम कांग्रेस के साथ नहीं जाएंगे.
वहीं, कांग्रेसी सूत्रों के मुताबिक पार्टी शिवसेना को बाहर से समर्थन देने का विकल्प तलाश रही है. पार्टी की महाराष्ट्र इकाई के अध्यक्ष अशोक चव्हाण ने कहा है कि बीजेपी और शिवसेना के बीच गठजोड़ पर आखिरी फैसला आने के बाद ही वो किसी नतीजे तक पहुंचेंगे. हालांकि कुछ कांग्रेसी नेताओं को लगता है कि शिवसेना से हाथ मिलाना यूपी में मुस्लिम वोटरों को नागवार गुजर सकता है.
बीएमसी की सियासत से पैदा होने वाले समीकरण राज्य सरकार की सेहत पर भी असर डाल सकते हैं. मौजूदा विधानसभा में 122 सीटों के साथ बीजेपी सबसे बड़ी पार्टी है जबकि शिवसेना के पास महज 63 सीटें हैं. लेकिन अगर इनमें कांग्रेस की 42 और एनसीपी की 41 सीटें जोड़ दी जाएं तो शिवसेना ना सिर्फ बहुमत का आंकड़ा पार करती है बल्कि राज्य में उसका मुख्यमंत्री भी हो सकता है.