1000 वर्षों से बिना नींव पर खड़ा है तंजौर का बृहदीश्वर मंदिर, रहस्यों से है भरा हुआ
बृहदीश्वर मंदिर का निर्माण राजाराज चोल प्रथम द्वारा करवाया गया था। ऐसा कहा जाता है कि इस मंदिर को 1004 से 1009 ईस्वी के दौरान बनाया गया था । भगवान शिव को समर्पित तंजौर का बृहदीश्वर मंदिर एक विश्व प्रसिद्ध मंदिर है और इस मंदिर को साल 1987 में यूनेस्को ने विश्व धरोहर की सूची में शामिल किया था। ये मंदिर बेहद ही अद्भुत तरीके से बनाया गया है और ये एक रहस्यमय मंदिर है। आज हम आपको तंजावुर स्थित बृहदीश्वर मंदिर से जुड़े कुछ चौंकाने वाले रहस्य बताने जा रहे हैं। जिनको पढ़ने के बाद आप भी हैरान रहे जाएंगे।
धरती पर नहीं पड़ती गुंबद की छाया
इस मंदिर को बेहद ही उत्तम तरीके से बनाया गया है। इस मंदिर की गुंबद की रचना इस तरह से की गई है कि मंदिर की गुंबद की छाया धरती पर नहीं पड़ती है। तेज धूप होने पर भी गुंबद के हिस्से की छाया धरती पर नहीं दिखाई देती है। ऐसा माना जाता है कि इस गुंबद को 88 टन के पत्थर से बनाया गया है। इसके अलावा इस गुंबद के ऊपर स्वर्ण कलश भी रखा गया है।
नहीं किया गया सीमेंट का प्रयोग
इस मंदिर को बनाने के दौरान किसी भी तरह के सीमेंट या गोंद का प्रयोग नहीं किया गया है। इस मंदिर में बनें पीलर को काटकर एक दूसरे के अंदर फिक्स किया गया है और फिक्स करने के लिए ग्लू, चूने या सीमेंट का इस्तेमाल बिलकुल नहीं हुआ है। इतना ही नहीं इस मंदिर को निर्माण लगभग 130,000 टन ग्रेनाइट पत्थर से किया गया है।
चित्रकारी
इस मंदिर की दीवारों पर बेहद ही सुंदर तरीके से चित्रकारी की गई है और इस चित्रकारी को करने के लिए प्राकृतिक रंगों का इस्तेमाल किया गया है। मंदिर के चारों और बनीं दीवारों पर देवी-देवता की मूर्ति बनाई गई हैं और मूर्ति के जरिए पौराणकि कहानियां दृशायी गई है।
नंदी
शिव भगवान को समर्पित इस मंदिर में एक विशालकाय नंदी भी बनाया गया है और नंदी की मूर्ति को एक चबूतरे रखा गया है। नंदी की इस प्रतिमा को एक ही पत्थर से बनाया गया है और नंदी की ये प्रतिमा बेहद ही विशाल है।
बिना नींव के है ये मंदिर
ये मंदिर बिना नींव के बनाया गया है। लोगों की ऐसी आस्था है कि बिना नींव के बना ये मंदिर शिव भगवान की वजह से ही खड़ा है। हैरानी की बात तो ये हैं कि साल 2004 में आई सुनामी भी इस मंदिर का कुछ नहीं बिगाड़ पाई।
मराठा शासकों ने बदला था नाम
इस मंदिर का नाम चोल शासकों द्वारा राजराजेश्वर रखा गया था। लेकिन मराठा शासकों ने जब तंजौर पर हमला किया था तो उस दौरान इस मंदिर का नाम बदलकर बृहदेश्वर रख दिया था और जब से ये मंदिर बृहदेश्वर के नाम से प्रसिद्ध हो गया।
शिव रात्रि के दौरान इस मंदिर में खासा भीड़ देखने को मिलती है और दूर-दूर से लोग आकर भगवान शिव के दर्शन करते हैं। इस मंदिर में भगवान शिव की बेहद ही बड़ी प्रतिमा रखी गई है।