पिता के डर से दर्जी बन गए नौशाद, सालों बाद हुआ बड़ा खुलासा
बॉलीवुड के सुप्रसिद्ध संगीतकार, हिंदी सिनेमा में अपनी संगीत की वजह से प्रसिद्ध नौशाद अली को आज हम याद कर रहे हैं। उनकी 100वीं जन्म जयंती 25 दिसंबर को थी। बता दें कि उनका जन्म 25 दिसंबर 1919 को लखनऊ में हुआ था। महान संगीतकार की श्रेणी में गिने जाने वाले नौशाद अली ने कई सुपरहिट फिल्मों में अपना संगीत दिया है। हालांकि उन्होंने कुल 67 फिल्मों में ही अपना संगीत दिया। लेकिन उन्हीं संगीत की वजह से वो आज भी हिंदी सिनेमा में प्रासंगिक हैं। और लगातार याद भी किए जाते हैं। वे हिंदी सिनेमा और संगीत की दुनिया के प्रवर्तक भी माने जाते हैं। कहा जाता है कि नौशाद साहब का संगीत जीवन काफी संघर्षों से भरा था। तो आइए जानते हैं कि किस प्रकार के चुनौतियों का सामना कर वे एक महान संगीतकार बने।
नौशाद साहब को बचपन से ही संगीत का शौक था। उन्होंने बचपन में एक म्यूजिक इंस्ट्रूमेंट की दुकान में काम किया करते थे। वे वहां सिर्फ इसलिए काम करते थे ताकि उन्हें वहां हारमोनियम बजाने को मिल जाए। इसके अलावा नौशाद बचपन में मूक फिल्में देखने जाया करते थे और उसके नोट्स तैयार करते थे। इन सभी घटनाओं ने नौशाद साहब के जीवन में म्यूजिक की समझ के बीज बो दिए।
नौशाद अली ने अपनी पहली कंपोजिंग फिल्म प्रेम नगर में दिया था। और इन गानों को फिल्मी दुनिया ने खूब सराहा था।
एक दिलचस्प घटना उनके जीवन की है। वो ये कि उनके घर वालों को नौशाद अली की शादी होने तक नहीं पता था कि नौशाद साहब एक म्यूजिक कंपोजर हैं। हैरानी की बात तो ये थी कि उनकी शादी में उन्हीं के कंपोज किए गाने बजाए गए, लेकिन तब भी नौशाद साहब ये नहीं बता पाए कि ये गाने उनके ही कंपोज किए हुए हैं।
सिर्फ इतना ही नहीं उनके ससुराल वालों को भी ये बात पता नहीं था कि नौशाद एक संगीतकार हैं। उन्हें बताया गया था कि नौशाद बंबई में दर्जी हैं। इसका सिर्फ एक कारण ये था कि उस समय संगीत के काम करने वालों को खराब माना जाता था।
प्रसिद्ध फिल्म पाकीजा के गानों को कंपोज करने में भी नौशाद अली का योगदान था। क्योंकि उस फिल्म के म्यूजिक कंपोजर गुलाम मोहम्मद साहब का निधन हो गया, तो बाकी के बचे संगीत के काम नौशाद अली साहब ने ही पूरा किया। बता दें कि बाकी बते संगीत में नौशाद अली ने हिंदुस्तानी लोकसंगीत का खूब प्रयोग किया। आपको बता दें कि हिंदी सिनेमा के सौ साल के इतिहास अगर शीर्ष की कुछ फिल्मों को चुना जाएगा तो उसमें मुगल-ए-आजम का नाम पहले स्थान पर होगा। और इस फिल्म के संगीतकार नौशाद अली थे।
बता दें कि नौशाद एक मात्र संगीतकार हैं, जिन्होंने कुंदन लाल सहगल से लेकर कुमार सानू तक को प्लेबैक का मौका दिया था। मोहम्मद रफी और शमशाम बेगम जैसी आवाजों को पहला ब्रेक देने वाले नौशाद अली ही थे। इसलिए उनका हिंदी सिनेमा में बड़ा नाम है। 1981 में उन्हें दादा साहेब फाल्के पुरस्कार से सम्मानित किया गया।उन्होंने आखिरी संगीत 2005 में फिल्म ताजमहल : एन एटरनल लव स्टोरी के लिए दिया था। साल 2006 में उनकी मृत्यु हो गई। लेकिन हिंदी सिनेमा जगत में वे हमेशा अमर रहेंगे।