जानें अजमेर शरीफ का इतिहास और इससे जुड़े रोचक तथ्य
अजमेर शरीफ दरगाह बेेहद ही पुरानी और लोकप्रिय दरगाह है। इस दरगाह पर करोड़ो लोगों की आस्था है और ऐसा कहा जाता है कि इस दरगाह में आकर जियारत करने से हर मन्नत पूरी हो जाती है। अजमेर शरीफ दरगाह में हर रोज लोग लगभग 15000 की संख्या में लोग आते हैं और जियारत करते हैं। अजमेर शरीफ दरगाह का इतिहास काफी पुराना है और ऐसा माना जाता है कि इस दरगाह पर अकबर भी आए थे और उन्होंने बेटे की मुराद मांगी थी। जो कि पूरी हो गई थी। अजमेर शरीफ का इतिहास क्या है, ये दरगाह कहां है और इस दरगाह से जुड़ी रोचक जानकारी इस लेख में दी गई है। तो आइए सबसे पहले नजर डालते हैं अजमेर शरीफ के इतिहास पर।
अजमेर शरीफ का इतिहास
अजमेर शरीफ दरगाह ख्वाजा मुईनुद्दीन चिश्ती की दरगाह। ख्वाजा मुईनुद्दीन चिश्ती एक प्रसिद्ध सूफी संत और इस्लामिक विद्धान हुआ करते थे। ख्वाजा मुईनुद्दीन चिश्ती ने इस्लाम धर्म को दुनिया भर में प्रसिद्ध करने का काम किया था। ऐसी मान्यता है कि इनके पास चमत्कारी शक्तियां भी थी और इन शक्तियों से ये लोगों की मदद किया करते थे।
इतिहास के अनुसार ख्वाजा मुईनुद्दीन चिश्ती 1192 से 1995 के बीच भारत यात्रा पर आए थे। कहा जाता है कि ख्वाजा मुईनुद्दीन चिश्ती मदीना से भारत आए थे और इस दौरान ये कुछ दिनों तक दिल्ली और लाहौर में रहे थे। वहीं लाहौर में कुछ दिनों तक रहने के बाद ये मुइज्ज़ अल-दिन मुहम्मद के साथ अजमेर के लिए निकल गए थे। अजमेर आकर इन्होंने यहां पर ही रहने का फैसला किया और अपना जीवन इस जगह पर बिताया।
ख्वाजा मुईनुद्दीन चिश्ती लोगों को संदेश देने का कार्य करते थे और लोग इनकी चमत्कारी शक्तियों से भी प्रभावित थे। इतना ही नहीं मुगल शासक भी इनके पास आया करते थे। मुस्लिम के अलावा हिन्दु भी ख्वाजा मुईनुद्दीन चिश्ती के संदेशों को सुना करते थे।ख्वाजा मुईनुद्दीन चिश्ती हमेशा गरीब लोगों का सम्मान करना, लोगों से प्रेम से बात करना, बुरी परिस्थितियों में खुश रहना और इत्यादि तरह की सीख लोगों को दिया करते थे।
ऐसा कहा जाता है कि जब ये 114 साल की आयु के थे तब इन्होंने अपना शरीर त्याग दिया था। इतिहास के अनुसार इन्होंने ध्यान करने के लिए अपने आपको एक कमरे में बंद कर लिया था और 6 दिनों तक इन्होंने किसी से बात नहीं की थी। इसी जगह पर इन्होंने अपना शरीर त्याग दिया था। जिसके बाद यहां पर ख्वाजा साहब का मकबरा बनाया गया छा। जिसे अजमेर शरीफ की दरगाह, ख्वाजा मुईनुउद्दीन चिश्वती की दरगाह और ख्वाजा गरीब नवाज की दरगाह के नाम से भी जाना जाता है।
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अजमेर शरीफ की दरगाह
अजमेर शरीफ की दरगाह का निर्माण 1465 में किया गया था। इनकी दरगाह को मुगल सम्राटों द्वारा बनाया गया था और समय समय पर इसका विकास किया गया था। ये दरगाह बेहद ही सुंदर तरीके से बनाई गई है। इस दरगाह के प्रवेश दरवाजे भव्य और सुंदर है। इस दरगाह में प्रवेश के लिए चारों तरफ दरवाजे बनाए गए हैं। अजमेर शरीफ की दरगाह के अंदर बेहद सुंदर शाह जहानी मस्जिद भी बनी हुई है और जिसे मुगलकालीन वास्तुकला से बनाया गया है। इस मस्जिद पर अल्लाह के 99 पवित्र नामों के 33 खूबसूरत छंद लिखे गए हैं। अजमेर शरीफ की दरगाह के अंदर ही शफाखाना और अकबरी मस्जिद भी हैं।
अजमेर शरीफ की दरगाह के अंदर दो कढ़ाहे रखे गए हैं, जो कि बेहद ही बड़े हैं। ऐसा कहा जाता है कि चितौड़गढ़ का युद्ध जीतने के बाद मुगल सम्राट अकबर ने एक बड़ा कढ़ाहा दान में दिया था। जबकि अन्य कढ़ाहा जहांगीर द्धारा भेंट किया गया था। इन दोनों कढ़ाहे में बनाए जाने वाले खाने को ही प्रसाद के रुप में बांटा जाता है। बड़े कढ़ाहे में एक बार में 31.8 किलो चावल बनाए जा सकते हैं। जबिक छोटे कढ़ाहे में 12.7 किलो चावल को पकाया जा सकता है।
अजमेर शरीफ में उर्स
अजमेर शरीफ की दरगाह में सूफी संत मोईउद्दीन चिश्ती के पुण्यतिथि पर भव्य कार्यक्रम का आयोजन किया जाता है और ये कार्यक्रम 6 दिनों तक चलता है। इस उर्स यानी कार्यक्रम की शुरुआत बुलंद दरवाजा पर ध्वज फहराकर की जाती है। दरअसल ख्वाजा साहब ने अपने जीवन के अंतिम 6 दिन अकेले बंद कमरे में बिताए थे। इसलिए इस पर्व को 6 दिनों तक मनाया जाता है।
अजमेर शरीफ की दरगाह से जुड़ी कुछ रोचक बातें
ऐसा कहा जाता है कि एक बार निजाम सिक्का नामक व्यक्ति ने हुमायूं की जान बचाई थी। जान बचाने के लिए हुमायूं ने इस व्यक्ति के इनाम के तौर पर अजमेर शरीफ की दरगाह का एक दिन का नवाब बनाया था और इस दरगाह में निजाम सिक्का का मकबरा भी बना हुआ।
अजमेर शरीफ की दरगाह में रोजना शाम को नवाज से 15 मिनट पहले दीपक जलाए जाते हैं और फारसी छंद गाये जाते हैं। रोज किए जाने वाली इस पूजा को ‘रोशनी’ कहा जाता है।
पाकिस्तान के पूर्व राष्ट्रपति आसिफ अली जरदारी साल 2012 में जब भारत के दौरे पर आए थे तब वो अजमेर गए थे और इस दरगाह के दर्शन किए थे।
अजमेर शरीफ दरगाह के नियम
अजमेर शरीफ की दरगाह में प्रवेश लेने से पहले इस दरगाह के कुछ नियमों का पालन करना पड़ता है। जो लोग इन नियमों का पालन करते हैं केवल उन्हें ही इस दरगाह में प्रवेश करने की अनुमित मिलती है।
- पहले नियम के तहत केवल वो ही लोग इस दरगाह के अंदर प्रवेश कर सकते हैं जिनका सिर कपड़े से ढका हो। यानी कोई भी व्यक्ति सिर खोलकर इस दरगाह के अंदर नहीं जा सकता है।
- मजार के दर्शन करते समय अंदर फोन, कैमरा और बैग जैसी चीजें ले जाने पर रोक है।
- ख्वाजा के दर पर जाने से पहले हाथों और पैरों को पानी से साफ किया जाता है। इस जगह पर आने वाले लोगों के हाथ और पैर साफ करवाने के लिए यहां पर जहालरा बनाए गए हैं।
कहां है अजमेर शरीफ दरगाह
अजमेर शरीफ दरगाह भारत के राजस्थान राज्य के अजमेर शहर में स्थित है। ये दरगाह जयपुर से 145 किलोमीटर पर है। रेलवे, बस और ट्रैन मार्ग के जरिए इस जगह पर आसानी से पहुंचा जा सकता है।
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