CAA के समर्थन में उतरी हजारों हस्तियां, कहा-‘लोग फैला रहे हैं डर…’
सीएए यानी नागरिकता संशोधन कानून के खिलाफ देश भर में चल रहे आम लोगों और राजनीतिक पार्टियों के विरोध के बीच देश का एक बुद्धिजीवी तबका इसके समर्थन में उतर आया है। जब तमाम विपक्षी पार्टियां इस कानून के खिलाफ सरकार के विरूद्ध मोर्चा खोले हुए हैं, इसी बीच एक बुद्धिजीवीयों का एक धड़ा इसके समर्थन में उतरा है। बता दें कि 1100 शिक्षाविदों, वैज्ञानिकों, रिसर्च स्कॉलरों ने मिलकर एक समर्थन पत्र जारी किया है।
इन 1100 लोगों में देश के शिक्षाविदों के अलावा विदेश के प्रोफेसरों, एशोसिएट प्रोफेसरों तथा असिस्टेंट प्रोफेसरों की है। और नागरिकता संशोधन कानून का समर्थन करने वालों में देश के कुछ नामचीन संस्थानों जैसे आईआईएम, आईआईटी के रिसर्च स्कॉलर और वैज्ञानिक भी शामिल हैं। तो आइए जानते हैं कौन कौन लोग इसमें शामिल हैं।
सीएए के समर्थन में बयान जारी करने वालों में से वरिष्ठ पत्रकार कंचन गुप्ता, जेएनयू के आनंद रंगनाथन, प्रोफेसर प्रकाश सिंह, इंस्टीट्यूट ऑफ पीस एंड कॉन्फि्लक्ट स्टडीज के सीनियर फेलो अभिजीत अय्यर मित्रा, सुप्रीम कोर्ट के एडवोकेट जे साईं दीपक, पटना यूनिवर्सिटी के लॉ डिपार्टमेंट के गुरू प्रकाश, एमिटी यूनिवर्सिटी के मानद प्रोफेसर जीतेन जैन, मणिपुर यूनिवर्सिटी के वाइस चांसलर प्रोफेसर एपी पांडेय, डीयू के भास्कराचार्य कॉलेज की डॉ. गीता भट्ट, आईसीएसआर की सीनियर फेलो मीनाक्षी जैन, मणिपुर यूनिवर्सिटी के वाइस चांसलर एपी पांडेय समेत कई ऐसे बुद्धिजीवीयों के नाम इस पत्र के समर्थन में शामिल हैं।
इस पत्र के जरिए सीएए का समर्थन किया गया है और भारतीय संसद तथा सरकार को इस कानून को पास करवाने के लिए बधाई भी दी गई है। साथ ही इस पत्र में कहा गया है कि सरकार अल्पसंख्यकों के साथ खड़ी हुई है, जो दुनिया भर में अलग अलग देशों से उत्पीड़ित होते हैं। और कहा गया है कि सरकार उन लोगों के साथ खड़ी हुई है जो धर्म के नाम पर उत्पीड़ित होते हैं। इसके लिए सरकार को बधाई
सीएए के समर्थन में जारी पत्र में लिखा गया है कि 1950 में लियाकत और नेहरू के बीच हुए समझौते ( जिसमें दोनों देशों ने वादा किया था कि वे अपने अल्पसंख्यकों का ध्यान रखेंगे) के विफल होने के बावजूद सभी विचारधारा के अलग अलग राजनीतिक पार्टियों द्वारा लगातार यह मांग की जाती रही कि पाकिस्तान और बांग्लादेश के धार्मिक अल्पसंख्यकों को नागरिकता दी जाए।
पत्र के अनुसार ये धार्मिक अल्पसंख्यक ज्यादातर दलित समुदाय से ताल्लुक रखते हैं। बयान में इस बात पर भी संतोष जताया गया है कि सरकार ने उत्तर पूर्वी राज्यों के लोगों की चिताओं के लिए समुचित समाधान पर ध्यान दिया है।
इस बयान में आगे कहा गया है कि ‘हमें विश्वास है कि यह कानून पूरी तरह से भारत के सेक्यूलर संविधान के अनुरूप है। और भारतीय नागरिकता चाहने वाले किसी भी देश के शख्स को नहीं रोकता। न ही ये नागरिकता के मापदंडो को बदलता है।
इस बयान में ऐसा कहा गया है कि यह कानून भारत के तीन पड़ोसी देशों अफगानिस्तान, बांग्लादेश, पाकिस्तान से धर्म के नाम पर उत्पीड़ीत हुए और वहां से पलायन करने वालों की समस्याओं को दूर करता है। इस बयान में यह भी कहा गया है कि देश में कुछ लोगों द्वारा जानबूझकर डर का महौल पैदा किया जा रहा है। इसके कारण देश में हिंसा की स्थिति बनी हुई है। बयान में बुद्धिजीवीयों द्वारा भारत के लोगों से अपील की गई है कि देश के लोग शांति का माहौल पैदा करें और अराजकतावाद और सांप्रदायिकता की चपेट से बाहर रहें।