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हिंदू धर्म में 8 प्रकार के होते हैं विवाह, जानिए कौन सा विवाह करना है सबसे उचित

शास्त्रों में आठ तरह के विवाहों का उल्लेख किया गया है, जिनमें से पांच तरह के विवाहों को बेहद ही अशुभ माना गया है। ब्रह्म, दैव, आर्श, प्राजापत्य, असुर, गन्धर्व, राक्षस और पिशाच आठ प्रकार के विवाहों के नाम हैं। इन आठों विवाह में से ब्रह्म विवाह को सबसे उत्तम माना जाता है। ये आठ विवाह क्या होते हैं और इन विवाहों की क्या खासियत है आज हम आपको इस लेख में बताने जा रहे हैं।

ब्रह्म विवाह

आच्छाद्य चार्चयित्वा च श्रुतिशीलवते स्वयम् ।
आहूय दानं कन्याया ब्राह्मो धर्मः प्रकीर्तितः ॥

श्लोक का अर्थ-  ब्रह्म विवाह को दोनों पक्ष की सहमति से करवाया जाता है। ये विवाह कन्या की इच्‍छा‍नुसार होता है और कन्या पक्ष के परिजन द्वारा वर पक्ष से विवाह का आग्रह किया जाता है।  इस विवाह को पूरे वैदिक रीति और नियम के तहत करवाया जाता है। ये विवाह अन्य विवाह से से सर्वश्रेष्ठ माना गया है।

देव विवाह


यज्ञे तु वितते सम्यगृत्विजे कर्म कुर्वते ।
अलङ्कृत्य सुतादानं दैवं धर्मं प्रचक्षते ॥

इस श्लोक में देव विवाह क्या होता है ये बताया गया है। इस विवाह में ऋत्विज को वर के रुप में चुना जाता है। इसके बाद इन्हें कन्या पक्ष की और से आभूषण भेंट करते हुए कन्या का हाथ सौंप दिया जाता है। इस प्रकार के विवाह को देव विवाह के नाम से जाना जाता है।

आर्श विवाह

एकं गोमिथुनं द्वे वा वरादादाय धर्मतः ।
कन्याप्रदानं विधिवदार्षो धर्मः सः उच्यते ॥

इस तरह के विवाह में वर पक्ष द्वारा कन्या पक्ष को आभूषण और गाय-बैल दिए जाते हैं। उपहार मिलने के बाद कन्या का विवाह वर के साथ  परंपराओं के तहत कर दिया जाता है। दरअसल प्राचीन काल में खेती पर ही लोगों का जीवन आधारित था। इसलिए उस समय गाय-बैलों को उपहार के तौर पर दिया जाता है। अगर आसान शब्दों में कहा जाए तो आर्श विवाह में कन्या-पक्ष वालों को कन्या का मूल्य देकर कन्या से विवाह किया जाता है।

प्रजापत्य विवाह

सहोभौ चरतां धर्ममिति वाचाऽनुभाष्य च ।
कन्याप्रदानमभ्यर्च्य प्राजापत्यो विधि स्मृतः ॥

इस तरह का विवाह कन्या के माता पिता द्वारा तय किया जाता है और इस विवाह में कन्या की सहमित नहीं ली जाती है। ये विवाह धनवान और प्रतिष्ठित वर से किया जाता है। दूसरे शब्दों में कहा जाए तो पैसों के लालच में माता-पिता अपनी कन्या का विवाह जबरदस्ती किसी धनवान लड़के से करवा देते हैं।

गंधर्व विवाह

इच्छयाऽअन्योन्यसंयोगः कन्यायाश्च वरस्य च ।
गांधर्वः स तु विज्ञेयो मैथुन्यः कामसम्भवः ॥

इस विवाह को प्रेम विवाह भी कहा जा सकता है। इस प्रकार के विवाह में परिवार वालों की सहमति के बिना वर और कन्या एक दूसरे के साथ रहते हैं और बिना किसी रीति-रिवाज के शादी कर लेते हैं। आमतौर पर इस प्रकार के विवाह को परिवार वालों की और से सहमति नहीं मिलती है।  शकुंतला और राजा दुष्यंत की पौराणिक कथा के अनुसार इन दोनों ने गांधर्व विवाह ही किया था।

असुर विवाह

ज्ञातिभ्यो द्रविणं दत्त्वा कन्यायै चैव शक्तितः ।
कन्याप्रदानं स्वाच्छन्द्यादासुरो धर्म उच्यते ॥

जिस विवाह में कन्या को खरीदा जाता है और उससे विवाह किया जाता है उसे ‘असुर विवाह’ कहते हैं। आज भी भारत के कई ऐसे हिस्से हैं जहां पर गरीब घर की कन्याओं के माता पित को पैसे देकर विवाह किया जाता है।

राक्षस विवाह

हत्वा छित्वा च भित्वा च क्रोशन्तीं रुदन्तीं गृहात् ।
प्रसह्य कन्याहरणं राक्षसो विधिरुच्यते ॥

इस तरह के विवाह में कन्या का अपहरण कर उससे जबरदस्ती शादी कर ली जाती है। प्रचानी काल में जब राजा युद्ध हार जाता था। तब जीता हुआ राजा हारे हुए राजा की पत्नी या बेटियों से जबरन विवाह कर लेता था और इस तरह के विवाह को शक्षस विवाह कहा जाता था।

पैशाच विवाह

सुप्तां मत्तां प्रमत्तां वा रहो यत्रोपगच्छति ।
सः पापिष्ठो विवाहानां पैशाचश्चाष्टमो९धमः।|

इस तरह के विवाह में कन्या से शारीरिक संबंध बनाने के बाद उससे विवाह किया जाता है। यहां तक की इसमें कन्या के परिजनों की हत्या भी कर दी जाती है। इस विवाह को  सभी आठों प्रकार के विवाह में सबसे बेकार विवाह माना जाता है।

ऊपर बताए गए आठों विवाहों में से कई सारे विवाह अब खत्म हो चुके हैं और समाज में ऐसा विवाह अब नहीं होते हैं।

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