महर्षि वाल्मीकि की जीवनी (Maharishi Valmiki Biography in Hindi)
महर्षि वाल्मीकि (Maharishi Valmiki) आदिकवि के नाम से भी प्रसिद्ध हैं और इन्होंने सर्व प्रथम श्लोक बनाया था। इनके द्वारा ही महाकाव्य रामायण को संस्कृत भाषा में लिखा गया है और इनका जीवन बेहद ही प्रेरणादायक है। यह एक डाकू हुआ करते थे और लोगों से धन लूटा करते थे। लेकिन एक बार इनके जीवन में कुछ ऐसा हुआ, जिससे इनका जीवन पूरी तरह से बदल गया और यह एक कवि बन गए।
महर्षि वाल्मीकि की जीवनी (Maharishi Valmiki Biography in Hindi)
नाम | महर्षि वाल्मीकि |
जन्म | त्रेता युग |
अन्य नाम | रत्नाकर, अग्नि शर्मा |
उपलब्धि | आदि कवी, वाल्मीकि रामयण के रचयिता |
वाल्मीकि का जन्म (Maharishi Valmiki Jayanti in Hindi)
वाल्मीकि का जन्म आश्विनी माह की पुर्णिमा को हुआ था और हर साल आश्विनी माह की पुर्णिमा के दिन वाल्मीकि जयंती पूरे देश में मनाई जाती है। महर्षि वाल्मीकि जयंती को कई राज्यों में ‘प्रकट दिवस’ के तौर पर भी मनाया जाता है।
वाल्मीकि का परिवार (Maharishi Valmiki Family)
वाल्मीकि का जन्म एक ब्राह्मण्य परिवार में हुआ था और इनके पिता और माता का नाम वरुण और चर्षणी था। वरुण महर्षि कश्यप और अदिति के नौंवे पुत्र थे। कहा जाता है कि इनको भील समुदाय के लोगों ने चुरा लिया था। जिसके बाद इनका लालन पालन इस समुदाय के लोगों द्वारा किया गया था। इन्होंने अपना जीवन जंगल में गुजारा था और यह लूट पाट किया करते थे।
वाल्मीकि के जीवन की कथा
वाल्मीकि को पहले रत्नाकर नाम से जाना जाता था और यह एक डाकू हुआ करते थे। जो कि लोगों को बंदी बनाकर उनसे लूट पाट करते थे। कहा जाता है कि एक बार नारद मुनि जी जंगल से गुजर रहे थे तभी रत्नाकर ने उन्हें अपना बंदी बना लिया। बंदी बनने के बाद नारद मुनि ने रत्नाकर से सवाल करते हुए पूछा, तुम यह सब क्यों कर रहे हो? इस सवाल का जवाब देते हुए रत्नाकर ने कहा कि वो अपने परिवार के लिए चोरी करते हैं। ताकि उनका पेट भर सके। यह सुनने के बाद नारद जी ने रत्नाकर से कहा कि तुम्हारे पापों का भुगतान तुम्हारे परिवार वालों को करना पड़ेगा। क्या तुम चाहते हो कि उन्हें तुम्हारे इन पापों की सजा मिलें। रत्नाकर ने इस सवाल का उत्तर हां में दी। रत्नाकर के हां कहने के बाद नारद ने उनसे कहा कि तुम इस सवाल का जवाब अपने परिवार वालों से पूछो कि क्या वो तुम्हारा पाप भोगने के लिए तैयार हैं। उनसे पूछकर इसका जवाब तुम मुझे देना।
नारद जी के कहने पर रत्नाकर अपने परिवार वालों के पास गया और अपने परिवार वालों से यहीं सवाल किया। इस सवाल का उतर देते हुए परिवार वालों ने कहा कि वो उनके बुरे कर्मों का पापों नहीं भोगना चाहते हैं।
यह उतर मिलने के बाद रत्नाकर नारद जी के पास गया और अपने परिवार का जवाब नारद जी को बताते हुए कहा कि वो उन्हें सही राह दिखाएं। जिसके बाद नारद जी ने उन्हें राम जी के नाम का जाप करने को कहा। नारद मुनि की बात मानते हुए रत्नाकर एक वन में चले गया और राम-राम का जाप करने लगा।
इस तरह से पड़ा वाल्मीकि नाम
नारद जी ने रत्नाकर को तपस्या करने को कहा था और नारद जी की बात को मानते हुए इन्होंने तप शुरू कर दिया। लेकिन राम की जगह इनके मुंह से मरा, मरा शब्द निकल रहा था। हालांकि फिर भी इन्होंने अपना तप जारी रखा और एक दिन इनके मुंह से राम शब्द का सही उच्चारण होने लग गया और यह राम नाम में मगन हो गए। वहीं कई वर्षों तक कठोर तपस्या करने की वजह से रत्नाकर के पूरे शरीर पर चींटियों ने बांबी बना ली। जिसके कारण इनका नाम वाल्मीकि पड़ा गया।
रामायण के हैं रचिता
रामायण की रचना महर्षि वाल्मीकि द्वारा की गई है। मान्यता के अनुसार ब्रह्माजी के कहने पर ही इन्होंने रामायण महाकाव्य की रचना की थी। कथा के अनुसार एक शिकारी द्वारा क्रोंच पक्षी की हत्या कर दी गई थी जिससे दुखी होकर महर्षि वाल्मीकि ने इस शिकारी को श्राप दिया था और यह श्राप इन्होंने श्लोक के रूप में दिया था। जिससे की श्लोक की रचना हुई और यह श्लोक इस तरह था –
मां निषाद प्रतिष्ठां त्वमगमः शाश्वतीः समाः।
यत्क्रौंचमिथुनादेकम् अवधीः काममोहितम्॥
श्लोक का अर्थ: अरे बहेलिये, तूने काममोहित मैथुनरत सारस पक्षी को मारा है। जा तुझे कभी भी प्रतिष्ठा की प्राप्ति नहीं होगी।
इनके मुख से श्लोक सुनने के बाद ब्रह्माजी ने महर्षि वाल्मीकि को रामायण की रचना करने को कहा था और इसे श्लोक के रुप में लिखने का आदेश दिया था। जिसके बाद महर्षि वाल्मीकि ने रामायण की रचना की थी और पूरी रामायण को श्लोक में लिखा था।
महर्षि वाल्मीकि से जुड़े रोचक जानकारी
- रामायण लिखने के अलाव महर्षि वाल्मीकि खगोल विद्या और ज्योतिष शास्त्र के भी अच्छे ज्ञानी हुआ करते थे।
- ऐसा कहा जाता है कि त्रेता युग में जन्मे महर्षि वाल्मीकि ने ही कलयुग में भी दोबारा से जन्म लिया था और इनका दूसरा जन्म गोस्वामी तुलसीदास जी रूप में था।
- अयोध्या छोड़ने के बाद सीता जी महर्षि वाल्मीकि के आश्रम में ही रही थी और इन्होंने राम जी और देवी सीता के दोनों पुत्र लव और कुश को ज्ञान दिया था।
- रामयाण को महर्षि वाल्मीकि ने चौबीस हज़ार श्लोक से लिखा है।
- हर साल महर्षि वाल्मीकि की जयंती को देश में मनाया जाता है और इनकी जयंती के दिन कई तरह के कार्यक्रमों का आयोजन किया जाता है।
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