किसी भी पूजा को करने से पहले जरूर लें संकल्प, संकल्प के बिना अधूरी मानी जाती है पूजा
किसी भी पूजा या हवन को करने से पहले उसका संकल्प लिया जाता है और संकल्प लेने के बाद ही पूजा को शुरू किया जाता है। शास्त्रों में संकल्प जरूरी माना गया है और हर पूजा सकंल्प लेने के बाद ही शुरू की जाती है। वहीं क्यों पूजा को शुरू करने से पहले संकल्प लेना जरूर माना जाता है और संकल्प किस तरह से लिया जाता है। ये आज हम आपको इस लेख में बताने जा रहे हैं। तो आइए सबसे पहले जानते हैं, संकल्प क्या होता है।
क्या होता है संकल्प
किसी भी देवी-देवता की पूजा करने से पहले संकल्प लिया जाता है। हम किस चीज के लिए देवी-देवताओं की पूजा कर रहे हैं उस चीज का संकल्प पूजा के दौरान लिया जाता है। संकल्प लेने का अर्थ होता है कि हम अपने इष्टदेव और खुद को साक्षी मानकर पूजा करते हैं और पूजा का संकल्प लेते हैं।
संकल्प लेते समय हम अपनी कामना मन में बोलते हैं और भगवान से प्रार्थन करते हैं कि वो पूजा को स्वीकार करें और पूजा के संकल्प को पूरा करें। इसके अलावा हम भगवान से संकल्प लेते हुए इस चीज की भी माफी मांगते है कि अगर हमसे पूजा के दौरान कोई भूल हो जाए। तो भगवान उसे माफ कर दें।
संकल्प लेना होता है जरूरी
ऐसा माना जाता है कि जिस पूजा को संकल्प लिए बिना किया जाता है। उस पूजा को करने का लाभ नहीं मिलता है। इसलिए ये बेहद ही जरूरी होता है कि आप पूजा करते समय संकल्प लें और अपनी कामना अपने मन में बोलें।
इस तरह से लें संकल्प
संकल्प पंडितों द्वारा दिलाया जाता है। लेकिन आप कोई पूजा अगर बिना पंडित के कर रहे हैं। तो आप खुद से संकल्प ले सकते हैं। संकल्प लेते समय आप गणेश भगवान का नाम लें और अपने हाथ में जल और कुछ फूल रख लें। उसके बाद आप ये मंत्र बोल दें।
‘ऊँ विष्णु र्विष्णुर्विष्णु : श्रीमद् भगवतो महापुरुषस्य विष्णोराज्ञया प्रवर्त्तमानस्य अद्य श्री ब्रह्मणोऽह्नि द्वितीय परार्धे श्री श्वेत वाराह कल्पै वैवस्वत मन्वन्तरे अष्टाविंशतितमे युगे कलियुगे कलि प्रथमचरणे भूर्लोके जम्बूद्वीपे भारत वर्षे भरत खंडे आर्यावर्तान्तर्गतैकदेशे (अपने नगर का नाम लें) ग्रामे वा बौद्धावतारे विजय नाम संवत्सरे श्री सूर्ये दक्षिणायने वर्षा ऋतौ महामाँगल्यप्रद मासोत्तमे शुभ भाद्रप्रद मासे शुक्ल पक्षे चतुर्थ्याम् तिथौ भृगुवासरे हस्त नक्षत्रे शुभ योगे गर करणे तुला राशि स्थिते चन्द्रे सिंह राशि स्थिते सूर्य वृष राशि स्थिते देवगुरौ शेषेषु ग्रहेषु च यथा राशि स्थान स्थितेषु सत्सु एवं ग्रह गुणगण विशेषण विशिष्टायाँ चतुर्थ्याम् शुभ पुण्य तिथौ (अपने गोत्र का नाम लें, अपने माता पिता का नाम लें) दासो ऽहं मम आत्मनः श्रीमन् महागणपति प्रीत्यर्थम् यथालब्धोपचारैस्तदीयं पूजनं करिष्ये।”
ये बोलने के बाद हाथ का जल किसी पात्र में छोड़ दें और अपने मन में अपनी कामना बोल दें और भगवान से विनती करें की वो आपकी पूजा को स्वीकार करें और आपको पूजा का फल दें। ऐसा कहा जाता है कि अगर सच्चे मन से संकल्प लिया जाता है, तो भगवान पूजा का फल जल्द ही दे देते हैं और आपकी हार कामना पूर्ण हो जाती है।