IIT और IIM के छात्रों ने किया कमाल, गांव में शुरू किये गए स्टार्टअप को पहुंचाया 100 करोड़ पार
आपने अक्सर देखा होगा कि आजकल के युवा IIT और IIM जैसे बड़े-बड़े संस्थानों से पढ़ाई करने के बाद किसी मल्टीनेशनल कंपनी में अपना फ्यूचर देखते हैं और अपने सुखद भविष्य के लिए एक राह बनाते हैं. लेकिन आज हम आपको इससे जुड़ी एक ऐसी खबर बताने जा रहे हैं जिसे सुनने के बाद निश्चित रूप से आप भी हैरान रह जाएंगे. असल में ये मामला एक स्टार्टअप से जुड़ा हुआ है और वैसे भी इन दिनों हर तरफ स्टार्टअप का काफी क्रेज छाया हुआ है और हमारा देश भारत तो इस मामले में अव्वल नंबर पर है.
खैर, आपको बताते चलें कि युवाओं पर इन दिनों स्टार्टअप का इतना ज्यादा खुमार छाया हुआ है कि वो बड़े-बड़े ऑफर्स को ठुकरा कर गांव और खेतों में काम करने तक के लिए तैयार हो जा रहे हैं और उनका ये फैसला उन्हें निराश भी नही कर रहा, जिसकी वजह से अन्य भी इस तरह की राह पर आगे बढ़ रहे हैं. इन दिनों मध्य प्रदेश के “ग्रामोफोन” नामक एक स्टार्टअप वहां के किसानों के लिए बहुत ही शानदार काम कर रही है, जिसकी वजह से ना सिर्फ किसानों को कई तरह से बचत हो रही है बल्कि महंगे और अनावश्यक रासायनिक उत्पादों के इतेमाल में भी कमी आ रही है. सबसे खास बात तो ये कि ऐसा करते हुए इस स्टार्टअप ने देखते ही देखते मात्र 3 वर्षों में 100 करोड़ का टर्नओवर भी पार कर लिया है.
जी हां, 100 करोड़! एक वक़्त था जब इस स्टार्टअप को मात्र 6 लाख रुपये से शुरू किया गया था, आज इसमें काम करने वाले IIT और IIM से निकले सुशिक्षित युवाओं की पूरी टीम की कड़ी मेहनत और उनके स्किल कि वजह से उनकी यह शुरुवात इस मुकाम पर है. इन युवाओं का कहना है कि बेहतर शिक्षण संस्थानों से उच्च शिक्षा प्राप्त करने के बाद अच्छे पैकेज पर नौकरी के कई विकल्प थे, लेकिन इन्होंने कृषि और ग्रामीण क्षेत्र में उद्यम की संभावनों को चुना और देश की तरक्की में भागीदार बनना ज्यादा उचित समझा.
इस स्टार्टअप की शुरुवात करने वाले तौसीफ खान बताते हैं कि पढ़ाई के दौरान ही उन्होंने इस बात का निर्णय कर लिया था कि उन्हें देश के गांवों, किसानों और पर्यावरण संरक्षण के लिए कुछ बड़ा काम करना है. चूंकि उनके खुद के परिवार की पृष्ठभूमि भी गांव-कृषि होने की वजह से उन्हें इस काम को करने की और भी ज्यादा प्रेरणा मिलती रही. तौसीफ ने IIT खड़गपुर और इसके बाद IIM अहमदाबाद से डिग्री प्राप्त कर रखी है और इतने बड़े संस्थानों से निकल कर कृषि जैसे क्षेत्र में आने की सोचना भी बहुत ही ज्यादा बड़ा कदम था, मगर इन्होंने ना सिर्फ सोचा बल्कि उसे कर भी दिखाया. उनके साथ उनके कुछ अन्य साथी भी थे जो उन्ही के संस्थान से थे.
निशांत वत्स, हर्षित गुप्ता, आशीष सिंह और तैसिफ इन चार लोगों ने मिलकार सबसे पहले इस स्टार्टअप की शुरुवात वर्ष 2016 में की जिसका ऑफिस इंदौर में खोला. थोड़ा वक़्त बीता और 50 लोगों की टीम के साथ आसपास के कई गांवों में दायरा बढ़ाया, वहां खेती करने में आ रही परेशानियों को जाना. कुछ महीने पहले ही कंपनी को 24 करोड़ रुपये की फंडिंग भी मिली है और आज की तारीख में “ग्रामोफोन” नामक इस स्टार्टअप की वैल्यू 100 करोड़ की हो गई है.
मुख्य रूप से इनका काम होता है कि कम पढ़े-लिखे किसानों को जानकारी उपलब्ध करवाना. जैसे कि अगर फसल में बीमारी लग जाए तो इसके लिए कौन सा कीटनाशक कारगर है. किस कीटनाशक या खाद की कितनी मात्रा कब उपयोग की जानी चाहिए, इसका मृदा आधारित समुचित अध्ययन किसानों को मुहैया कराते हैं. उनकी इस मेहनत और प्रयासों के बाद जब पहली फसल आई तो पता लगा कि करीब 20 फीसद कम लागत में किसानों का 40 फीसद प्रोडक्शन बढ़ गया. इससे इनका मनोबल तो बढ़ा ही साथ ही साथ इस बात की जानकारी लगते ही नजदीक के गांवों से अगले एक साल में 5 हजार किसान जुड़े.
किसानों के तरह-तरह के सवाल का जवाब देने के लिए कॉल सेंटर भी स्थापित किया गया है. सिर्फ इतना ही नहीं आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस बेस्ड एप भी हैं, जो उनके मोबाइल में उनके साथ-साथ रहता है और कई तरह के जवाब भी देता है. आपकी जानकारी के लिए बता दें कि आज की तारीख में ना सिर्फ मध्यप्रदेश बल्कि नजदीक के कई अन्य राज्य जैसे छत्तीसगढ़, राजस्थान, उत्तर प्रदेश सहित कई राज्यों से 2.50 लाख से ज्यादा किसान जुड़ चुके हैं.