जानिये आखिर क्या हुआ था शरीर से अलग होने के बाद हंसने लगा था मेघनाद का सिर, हाथों से लिखे शब्द
जैसा हम सभी जानते हैं कि भगवान श्री राम पर आधारित रामायण महर्षि बाल्मीकि द्वारा लिखी गई है. रामायण में सभी देवी-देवताओं के अलावा असुरों का भी उल्लेख है. माता सीता, हनुमान, रावण, दशरथ आदि का उल्लेख रामायण में बखूबी किया गया है. लंकापति रावण को मारने के लिए तो खुद भगवान विष्णु धरती पर आये थे. उन्होंने पहली बार मानव का अवतार लिया था. रामायण में रावण के अलावा और भी कई दुष्ट ताकतों का उल्लेख किया गया है.
रावण के पुत्र का नाम मेघनाद था जिसे इंद्रजीत के नाम से भी जाना जाता था. उसका यह नाम भगवान इंद्र से जीत के उपरांत पड़ा और मेघनाद नाम उसे मेघों की आड़ में युद्ध करने के कारण मिला. मेघनाद एक दुष्ट राक्षस था जिसका वध लक्ष्मण के हाथों हुआ था. लेकिन मृत्यु के पश्चात मेघनाद का कटा हुआ सिर अचानक जोर-जोर से हंसने लगा. ऐसा क्यों हुआ, आईये जानते हैं.
मेघनाद एक दुष्ट शक्ति था. जब युद्ध के दौरान रावण ने अपने पुत्र मेघनाद को भगवान श्री राम और लक्ष्मण को मारने भेजा तब उनको मारने के मेघनाद के सारे प्रयास विफल जा रहे थे. इसी बीच लक्ष्मण का एक घातक बाण मेघनाद को जा लगा और उसका सिर उसके धड़ से अलग हो गया. उसके कटे हुए सिर को भगवान राम के आगे रखा गया. तब श्री राम ने उसके सिर को संभाल कर रखने के लिए कहा.
दरअसल, भगवान श्री राम चाहते थे कि मेघनाद की मृत्यु की सूचना उसकी पत्नी सुलोचना को मिल जाये. इसलिए भगवान राम ने एक बाण के द्वारा मेघनाद की भुजा को उसके महल में पहुंचा दिया. लेकिन पति की कटी हुई भुजा देखकर सुलोचना को इस बात पर यकीन नहीं हो रहा था कि उसके पति की मृत्यु हो गई है. उसने कहा कि यदि तुम ही मेरे पति की भुजा हो तो मेरी इस दुविधा को लिखकर दूर करो.
यह सुनते ही भुजा में हरकत होने लगी और उसने खड़िया से लक्ष्मण जी की प्रशंसा में शब्द लिखने शुरू कर दिए. यह देखकर सुलोचना को अपने पति की मृत्यु की खबर पर यकीन हो गया और वह रोने लगी. बाद में वह रावण से मिलने उसके महल पहुंची और रावण को मेघनाद की कटी हुई भुजा दिखाकर उसका सिर मांगने का अनुरोध करने लगी.
उसने कहा कि अब वह भी अपने पति के साथ ही सती हो जाना चाहती है. रावण ने उसे सांत्वना देते हुए इंतज़ार करने को कहा और कहा कि तुम प्रतीक्षा करो मैं मेघनाद का सिर शत्रु के सिर के साथ लेकर ही वापस आऊंगा. इस बात पर यकीन न करते हुए सुलोचना मंदोदरी के पास गई जिसने उसे भगवान श्री राम के पास जाने की सलाह दी.
सुलोचना राम के पास पहुंची और कहा कि आप मुझे मेरे पति का सिर लौटा दें ताकि मैं उनके साथ ही सती हो जाऊं. सुलोचना की यह हालत देखकर भगवान राम को दुख हुआ और उन्होंने मेघनाद को पुनर्जीवित करने का निर्णय लिया. लेकिन सुलोचना ने कहा कि मैं नहीं चाहती कि मेरे पति जीवित होकर संसार के कष्टों को भोगें. मैं आपके दर्शन पाकर धन्य हो गई, अब मुझ में जीने की इच्छा नहीं बची है.
फिर श्री राम के कहने पर सुग्रीव मेघनाद का सिर ले आये लेकिन सुग्रीव को इस बात पर यकीन नहीं हो रहा था कि आखिर एक कटा हुआ हाथ गुणगान कैसे कर सकता है. इस पर सुग्रीव ने कहा कि मैं सुलोचना की बात तभी मानूंगा जब ये नरमुंड हंस कर दिखायेगा. सुलोचना के सतीत्व के लिए यह बड़ी परीक्षा थी. सुलोचना ने अपने पति मेघनाद से हंसने का आग्रह किया. इस पर मेघनाद का कटा हुआ सिर जोर-जोर से हंसने लगा. सुलोचना की बात सत्य साबित हुई और वह अपने पति का कटा हुआ सिर लेकर चली गई.
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