महाराष्ट्र चुनाव: 9 नवंबर तक नहीं बनी सरकार तो केंद्र लेगी बड़ा फैसला, ये बन सकते हैं सीएम
महाराष्ट्र विधानसभा चुनावों के नतीजे घोषित हो जाने के बाद शिवसेना और बीजेपी के बीच लगातार तनातनी बनी हुई है और इसी वजह से राजनीतिक गलियारे में भी हलचल काफी तेज़ हो गयी है. दोनों पार्टी की तरफ से एक के बाद एक बयानबाजी हो रही है और इसी सब के दौरान सरकार बनाने का सस्पेंस बना हुआ है. इस गहमागहमी के बीच महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस सुबह दिल्ली पहुंचे और केंद्रीय गृह मंत्री तथा भाजपा अध्यक्ष अमित शाह से मुलाक़ात की. वहीं दूसरी तरफ शिवसेना के नेताओं ने सोमवार की शाम मुंबई में राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी से मुलाक़ात की और कुछ महत्वपूर्ण मुद्दों पर चर्चा भी की. मुलाकातों का दौर यहीं तक नहीं सिमित था बल्कि राष्ट्रवादी कांग्रेस (NCP) प्रमुख शरद पवार ने कांग्रेस की कार्यकारी अध्यक्ष सोनिया गांधी से मुलाक़ात कर कुछ गंभीर मुद्दों पर चर्चा की और इस सब के बीच इस बात पर संशय और भी ज्यादा बढ़ते जा रहा है कि महाराष्ट्र में किसकी सरकार बनने वाली है. मगर अभी तक इस पर किसी की तरफ से कोई नतीजा निकलकर सामने नहीं आया है.
आपकी जानकारी के लिए बता दें महाराष्ट्र विधानसभा में कुल 288 सीटें हैं और हाल ही में हुए चुनावों में भारतीय जनता पार्टी को कुल 105, शिवसेना को 56, राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी को 54 और कांग्रेस को 44 सीटें मिली हैं. इन मुख्य राजनीतिक पार्टियों के अलावा समाजवादी पार्टी को 2, एमआईएम को 2, एमएनएस व सीपीआई को एक-एक और अन्य को 23 सीटें मिली हैं. फिलहाल तो आपको ये बता दें कि बहुमत के लिए 145 सदस्यों का समर्थन चाहिए लेकिन बहुमत की संख्या इस बात पर निर्भर करती है कि बहुमत साबित करते समय विधानसभा में कितने सदस्य मौजूद हैं.
मौजदा स्थिति को देखते हुए यह कहा जा सकता है कि फिलहाल बीजेपी और शिवसेना के गठबंधन को स्पष्ट बहुमत प्राप्त है मगर सामने जिस तरह की तस्वीरें दिख रही हैं उससे तो ये पता चल रहा है कि उनके साथ मिलकर सरकार बनाने को लेकर स्थिति साफ़ नहीं दिख रही है. फिलहाल तो महाराष्ट्र में राजनीतिक माहौल काफी ज्यादा उलझन भरा बना हुआ है. अब देखना ये है कि अगर 9 नंवबर तक स्थितियां ऐसी ही बनी रहीं तो इस स्थिति में क्या विकल्प निकाला जायेगा, किसकी सरकार बनेगी और यदि नहीं बनती है तो उस स्थिति में क्या होगा.
9 नंवबर को नई विधानसभा का गठन
जैसा कि असीम सरोदे के अनुसार राज्य विधानसभा का कार्यकाल भारतीय संविधान की धारा 172 निर्धारित करती है और इस धारा में यह साफ-साफ बताया गया है कि अगर विधानसभा अपने पांच साल के कार्यकाल से पहले भंग नहीं होती, तो उसे पूरे पांच साल काम करना होगा और अगर वह पूरे पांच साल काम कर लेती है, तो उसके बाद उसे भंग माना जाएगा और तब उस स्थिति में एक नई विधानसभा का गठन किया जायेगा.
जानकारी के लिए बता दें कि साल 2014 के चुनाव के बाद 10 नवंबर 2014 को महाराष्ट्र विधानसभा का गठन हुआ था, इस तरह से विधानसभा को 9 नवंबर 2019 को भंग हो जाना चाहिए और फिर तत्काल चुनाव नतीजों के अनुसार जिस पार्टी ने सबसे ज़्यादा सीटें हासिल की है वह आगे आकर सरकार बनाने का दवा कर सकता है या फिर राज्यपाल उसे सरकार बनाने का न्योता दे सकते हैं मगर फिलहाल ताजा स्थिति को देख कर तो ऐसा साफ लग रहा है कि इनमें से कुछ भी होता नजर नहीं आ रहा.
महाराष्ट्र के राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी
महाराष्ट्र विधानसभा के पूर्व सचिव अनंत कल्से के अनुसार अगर राज्यपाल और सबसे अधिक सीटें पाने वाली पार्टी सरकार के गठन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं, लेकिन ताजा स्थितियों को देखते हुए अगर 9 नवंबर तक कोई भी पार्टी सरकार बनाने का दावा नहीं पेश कर पाती है, तो उस परिस्थिति में किसी भी पार्टी को बहुमत न मिलने पर बीजेपी को राज्यपाल को सरकार बनाने का दावा करते हुए पत्र देना चाहिए या फिर ऐसे में खुद राज्यपाल उन्हें इसके लिए न्योता दे सकते हैं और महाराष्ट्र में स्थिति को देखते हुए तो ऐसा ही कहा जा सकता है कि राज्यपाल बीजेपी को सरकार बनाने का निमंत्रण दे सकती है. ऐसे में अगर बीजेपी के नेता सरकार बनाने का न्योता स्वीकार करते हैं, तो उन्हें बहुमत साबित करने के लिए 15 दिनों का समय भी मिलेगा और यदि किसी भी कारणवश बीजेपी या फिर अन्य दल सरकार बनाने से इनकार करते हैं, तो फिर एक ही विकल्प बचता है और वह है राष्ट्रपति शासन. जी हां, उस स्थिति में राज्य में अस्थायी राष्ट्रपति शासन लागू हो जाएगा.
जैसा कि पूर्व निर्धारित होता है उसके अनुसार राष्ट्रपति शासन की अवधि छह महीने से लेकर एक वर्ष तक की होती है, लेकिन अगर राष्ट्रपति शासन को एक साल पूरा होने के बाद भी बढ़ाने की स्थिति बनती है तो ऐसे में चुनाव आयोग की अनुमति लेनी होती है. यदि चुनाव आयोग भी इसके लिए सहमत हो जाता है तब राष्ट्रपति शासन बढ़ा दिया जाता है, मगर यहां पर ध्यान देने वाली बात ये है कि यह अवधि किसी भी परिस्थति में तीन वर्ष से ज़्यादा की नहीं हो सकती. राष्ट्रपति शासन के दौरान भी राज्यपाल राजनीतिक पार्टियों को बहुमत साबित करने के लिए न्योता दे सकता है.
कार्यवाहक सरकार
फिलहाल तो आपको बता दें कि चुनाव संपन्न होने के बाद से वर्तमान में मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस महाराष्ट्र सरकार के ‘कार्यवाहक मुख्यमंत्री’ के तौर पर हैं और कार्यवाहक सरकार कोई नीतिगत निर्णय नहीं ले सकती. कुर्सी पर रहते हुए भी वे सिर्फ़ सरकार के दैनिक प्रशासनिक कामकाज देख सकते हैं ना कि किसी तरह का कोई आदेश दे सकते हैं. खैर, फडणवीस की कार्यवाहक सरकार 9 नवंबर तक रहेगी और उसके बाद देखना यह है कि वह दुबारा से अपनी कुर्सी हासिल कर पाते हैं या फिर महाराष्ट्र की राजनीति का क्या होता है, क्योंकि जिस तरह की स्थितियां बनी हुई है उसे देखते हुए कुछ भी अनुमान लगा पाना काफी कठिन हो चुका है.
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